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लिथुअनिया में धर्मसमाजियों को संदेश देते संत पापा लिथुअनिया में धर्मसमाजियों को संदेश देते संत पापा 

ईश्वर के लिए कराह को शांत होने न दें, धर्मसमाजियों से संत पापा

संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 23 सितम्बर को, बाल्टिक देशों की प्रेरितिक यात्रा के दौरान तिथुआनिया के कौनास स्थित संत पेत्रुस एवं संत पौलुस महागिरजाघर में पुरोहितों, धर्मसमाजियों एवं गुरूकुल छात्रों से मुलाकात की तथा उन्हें चिंतन हेतु प्रेरित किया कि प्रभु उनसे क्या चाहते हैं?

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

महागिरजाघर में उपस्थित लोगों को सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, "आपके देश में मेरी पूरी यात्रा का साराँश इन शब्दों में व्यक्त होता है, "येसु हमारी आशा।" संत पापा ने उन्हें धीरज के साथ आशा बनाये रखने का निमंत्रण दिया क्योंकि संत पौलुस कहते हैं "ईश्वर उनके कल्याण के लिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है।" संत पापा ने कहा, "आज मैं आप लोगों के सामने आशा के कुछ पहलुओं को रखना चाहता हूँ जिनको एक पुरोहित, गुरूकुल छात्र, एवं धर्मसमाजी के रूप में हमें आत्मसात करना है।"

संत पौलुस द्वारा तीन बार "कराहना" शब्द का प्रयोग

आशा के लिए निमंत्रण से पूर्व संत पौलुस तीन बार "कराहना" शब्द को दुहराते हैं। सृष्टि कराहती है, स्त्री और पुरूष कराहते हैं, आत्मा हमारे अंदर कराहती है। (रोम. 8:22-23.26) संत पापा ने कहा कि यह कराहना भ्रष्टाचार की दासता से आती है, पूर्णता को प्राप्त करने की चाह से। आज हम अपने आप से पूछ सकते हैं कि क्या हम भी भीतर ही भीतर कराहते हैं अथवा क्या हमारी आत्मा शांत हो गई है, क्या यह जीवन्त ईश्वर के लिए कोई आह नहीं भरती? हमें भी उस प्यासे हिरण की तरह ईश्वर के रहस्य, उनकी सच्चाई एवं सुन्दरता की खोज करनी चाहिए जो जलस्रोत के लिए तरसता है। शायद हमारा समृद्ध समाज हमें तृप्त कर देता हो तथा हमें हर प्रकार की सेवाओं एवं भौतिक वस्तुओं से घेरे रखता हो जिसके कारण हमारे पास सब कुछ भरापूरा हो, फिर भी हम किसी चीज से भरे नहीं होते।

सिर्फ प्रभु में आराम

विशेष रूप से समर्पित व्यक्ति होने के कारण हमें उस आंतरिक कराह, हृदय की बेचैनी को कभी नहीं खोना चाहिए, जो अपना आराम सिर्फ प्रभु में पाता है। (संत अगुस्टीन) कोई भी तात्कालिक समाचार अथवा संचार, हमारी ठोस, लम्बे एवं दैनिक आवश्यकता को पूर्ण नहीं कर सकता, इसके लिए हमें प्रार्थना एवं आराधना के माध्यम से प्रतिदिन प्रभु से बातचीत करना चाहिए। हमें ईश्वर को पाने की चाह को सदा जागृत रखना चाहिए। जैसा कि क्रूस के संत जॉन लिखते हैं, "प्रार्थना में निरंतर बने रहने का प्रयास करें तथा अपने शारीरिक कार्यों के बीच भी उसे न त्यागें। चाहे आप खायें, पीयें, दूसरों से बातचीत करें अथवा कुछ भी करें, हमेशा प्रभु के पास रहें और अपने हृदय को उनके साथ संयुक्त रखें।"   

संत पापा ने कहा कि इस कराह का कारण हमारे आसपास की वस्तुओं पर चिंतन, हमारे गरीब भाई बहनों की असंतुष्ट जरूरतों के विरूद्ध आवाज, युवाओं में जीवन की सार्थकता का अभाव, वयोवृद्धों की एकाकी तथा सृष्टि का दुरूपयोग भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह कराह हमारे देश और शहरों में आयोजन को आकार प्रदान करे, विपक्ष दल की तरह नहीं जो सत्ता पाने के लिए दबाव डालता है बल्कि सभी की सेवा के लिए।

मूसा के समान कराह से प्रभावित होना

हमें भी मूसा की तरह अपने लोगों की कराह से प्रभावित होना चाहिए जो जलती हुई झाड़ी से प्रभावित था जिसमें से प्रभु ने अपने लोगों की पीड़ा के बारे उनसे बातें की थी। (निर्गम, 3:9) प्रार्थना में ईश्वर की आवाज सुनना, हमें दूसरों के दुःख को देखने, सुनने और समझने की क्षमता प्रदान करता है ताकि उनके दुखों को दूर किया जा सके। हमें उस समय का भी ख्याल रखना चाहिए, जब लोग कराहना बंद कर दें, अपनी प्यास बुझाने के लिए लोग पानी खोजना छोड़ दें। वैसे समय में हमें आत्मजाँच करने की आवश्यकता है कि कौन सी बात है जो लोगों की आवाज को शांत कर रही है।

हम पर लोगों की आशा

उस आवाज को शांत नहीं होना चाहिए जो हमें प्रार्थना एवं आराधना में प्रभु की ओर लौटने हेतु प्रेरित करती तथा भाई बहनों की पुकार के प्रति संवेदनशील बनाती है। लोग अपनी आशा हम पर रखते हैं और चाहते हैं कि हम सावधानी पूर्वक आत्मजाँच करें तथा साहसपूर्वक और रचनात्मक रूप से प्रेरितिक पहुँच की योजना बनायें। इस तरह हमारी उपस्थित अव्यवस्था का कारण न बने किन्तु ईश प्रजा की आवश्यकताओं का सही उत्तर दे सके और हम आंटे में खमीर का काम कर सकें।  

संत पापा ने संत पौलुस के शब्दों को पुनः याद दिलाते हुए कहा, "प्रेरित (संत पौलुस) धीरज की भी बात करते हैं, वे हमें पीड़ा में स्थिर तथा अच्छाई में बने रहने की प्रेरणा देते हैं। हमें ईश्वर को अपने केंद्र में रखने तथा ईश्वर से संयुक्त रहने एवं उनकी प्रजा के प्रेम में दृढ़ता रहने का निमंत्रण देते हैं।

विश्वास की धरोहर

संत पापा ने इतिहास की याद दिलाते हुए कहा कि नागरिक एवं धार्मिक स्वतंत्रता के लिए हिंसा, कैद और निर्वासन ने भी येसु ख्रीस्त में विश्वास को कम नहीं कर सका। उन्होंने बुजूर्ग धर्मसमाजियों से कहा कि उनके पास छोटों को सलाह देने के लिए बहुत कुछ है किन्तु वे किसी का न्याय किये बिना उनकी गलतियों को बतलायें। दूसरी ओर युवा धर्मसमाजी, जब उन्हें असफलताओं से होकर गुजरना पड़े तो वे निराश होकर अपने आप में बंद न हो जाए बल्कि अपने मूल में जाएँ तथा अपने पूर्वजों के रास्ते को अपनायें। विपत्ति, ख्रीस्तीय आशा को नष्ट कर देना चाहती है क्योंकि जब आशा सिर्फ मानवीय होती है तब यह निराशा एवं असफलता लाती है। जबकि ख्रीस्तीय आशा में ऐसा नहीं होता, कठिनाई में पड़कर हम नवीकृत एवं शुद्ध बनते हैं।

संत पापा ने कठिनाइयों को एक-दूसरे को बांटने की सलाह देते हुए कहा कि यह सच है कि हम अलग समय एवं परिस्थितियों में जी रहे हैं किन्तु यह भी सच है कि यह सलाह हमारे लिए बड़ा मददगार हो सकता है जब कठिनाइयाँ महसूस करने वाले उसे सिर्फ अपने पास न रखकर दूसरों को बांटते हैं।

येसु में हमारी आशा

अंततः येसु में हमारी आशा का अर्थ है अपने आपको उनसे जोड़ना, उनके साथ अपनी बातों को साझा करना क्योंकि संत पौलुस के अनुसार जिस मुक्ति की आशा हम कर रहे हैं वह केवल नकारात्मक चीजों से नहीं बल्कि आंतरिक एवं बाह्य, ऐतिहासिक या मानसिक परेशानियों से मुक्ति है। यह उन सबसे बढ़कर ख्रीस्त के महिमामय जीवन की सहभागिता है। (1 थेस. 5:9-10) उनके राज्य में शामिल होना है, हमारे शरीर की मुक्ति है, हम प्रत्येक को ईश्वर के उस महान रहस्य को देखने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि ईश्वर के कार्यों को कोई भी पूरी तरह समझ नहीं सकता। फिर भी वे हमें बुलाते हैं ताकि हम उनके पुत्र की छवि को प्रस्तुत कर सकें। जिसके लिए हमें उनपर आशा बनाये रखना है।

कलीसिया की प्रेरिताई में पवित्र आत्मा से शक्ति

संत पापा ने कहा कि प्रभु हमें बुलाते, हमें न्यायसंगत ठहराते तथा सारी सृष्टि के साथ महिमान्वित करते हैं जबकि बहुधा हम अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को इतना अधिक महत्व देते कि सामुदायिक जिम्मेदारी पृष्ठभूमि बनकर रह जाती है। पवित्र आत्मा हमें एक साथ लाता, हमारी विविधताओं में तालमेल कराता तथा कलीसिया की प्रेरिताई में आगे बढ़ने की शक्ति देता है।  

संत पापा ने संत पेत्रुस एवं संत पौलुस का उदाहरण देते हुए कहा कि वे बहुमूल्य वरदान जिनको उन्होंने प्राप्त किया था वे उनके प्रति सचेत थे। उन्होंने अलग-अलग परिस्थितियों में और भिन्न-भिन्न तरह से उनका प्रयोग किया।

संत पापा ने कहा कि उन्हीं की तरह हम प्रत्येक भी कलीसिया रूपी नाव पर सवार हैं। हम भी कठिनाइयों में निरंतर येसु को पुकारना तथा हमारी आशा की उत्तम वस्तु की तरह उन्हें पाना चाहते हैं। यह नाव अपने मिशन के केंद्र में पुनर्जीवन ख्रीस्त का लोगों के बीच महिमा की घोषणा करना चाहती है, महिमा जो एक दिन पूर्ण हो जाएगी, सारी सृष्टि की कराह ईश्वर के पुत्र में प्रकट होगी। यही इस समय की चुनौती है जो हमें सुसमाचार प्रचार हेतु भेजती है। यही हमारी आशा एवं आनन्द का आधार है।

उन्होंने कहा कि आज कलीसिया में अनेक चुनौतियाँ हैं, फिर भी, हमें पुनः एक बार चिंतन करने की आवश्यकता है कि प्रभु हमसे क्या मांग रहे हैं? वे कौन से क्षेत्र हैं जहाँ हमारी पहुँच की आवश्यकता है ताकि हम उनके बीच ख्रीस्त की ज्योति ला सकें। अन्यथा, कौन यह विश्वास करेगा कि येसु ख्रीस्त ही हमारी आशा हैं? संत पापा ने कहा कि केवल हमारे जीवन का साक्ष्य ही, उनमें हमारी आशा के कारण को प्रकट करेगा।

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23 September 2018, 15:11