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लिथुआनिया में नागरिक अधिकारियों को संदेश देते संत पापा लिथुआनिया में नागरिक अधिकारियों को संदेश देते संत पापा 

विकास हेतु युवाओं पर विशेष ध्यान दें, अधिकारियों से संत पापा

संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 22 सितम्बर को बाल्टिक देशों में अपनी यात्रा की शुरूआत करते हुए लिथुआनिया के राष्ट्रपति डालिया ग्रैबौस्काईते, राजनायिकों एवं नागरिक अधिकारियों को सम्बोधित किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

सम्बोधन में संत पापा ने लिथुआनिया की आजादी की 100वीं बरसी की याद की तथा देश के विकास हेतु युवाओं पर विशेष ध्यान देने की सलाह दी।

आजादी की 100वीं वर्षगाँठ पर प्रेरितिक यात्रा

उन्होंने कहा, "यह यात्रा एक राष्ट्र के रूप में, आपके जीवन में एक महत्वपूर्ण समय में हो रही है क्योंकि आप इस वर्ष अपनी आजादी की 100वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं।" यह शताब्दी आपके असंख्य कठिनाइयों एवं पीड़ाओं-जैसे, कैद, विस्थापन एवं शहादत की याद दिलाती है। आजादी की 100वीं वर्षगाँठ मनाने का अर्थ है रूकना तथा उन अनुभवों को पुनः याद करना। इस तरह, आप उन सभी के संपर्क में रहेंगे जो आपको राष्ट्र का रूप देता है। इस प्रकार आप वर्तमान चुनौतियों का आकलन करने की कुँजी प्राप्त करते हुए और सभी लोगों के साथ भविष्य को वार्ता तथा एकता की भावना से देखते हुए, सावधानी पूर्वक यह सुनिश्चित करें कि कोई भी बाहर न रहे।

संत पापा ने कहा कि हम नहीं जानते कि कल क्या होगा, फिर भी हम जानते हैं कि हर युग का कर्तव्य है, आत्मा को उनके लिए संजोकर रखना जिसने इसकी सृष्टि की है, दुःख एवं अन्याय की हर परिस्थिति को अवसर में बदल दिया है, उन जड़ों को पोषित किया और स्वस्थ रखा है जिनका फल आज हम प्राप्त कर रहे हैं। संत पापा ने कामना की कि देश के पुत्र-पुत्रियाँ अतीत के अनुभव से बल तथा शक्ति प्राप्त कर सकें।

लिथुआनिया का गौरवमय इतिहास

संत पापा ने लिथुआनिया की प्रशंसा करते हुए कहा कि अपने पूरे इतिहास में इसने विभिन्न धर्मों एवं जाति के लोगों का स्वागत किया और उन्हें शरण दिया, जहाँ विभिन्न देशों के काथलिक, ऑर्थोडॉक्स, प्रोटेस्टंट, पुराने काथलिक, मुस्लिम एवं यहूदी एक साथ शांति से रहते थे किन्तु जब कुलवादी विचारधाराओं का आगमन हुआ, जिसने हिंसा एवं अविश्वास का प्रचार किया तब उसने दूसरों का स्वागत करने की क्षमता को कम कर दिया।

संत पापा ने कहा कि अतीत से शक्ति प्राप्त करने का अर्थ है, उन जड़ों को खोजना तथा उन सभी को सजीव रखना जो प्रामाणिक और विशिष्ट हैं जो सहिष्णुता, आतिथ्य, सम्मान और एकजुटता की भावना पर राष्ट्र के रूप में बढ़ने देते तथा उसे दबोच नहीं लेते हैं।

विश्व की आधुनिक स्थिति

संत पापा ने आज के विश्व की परिस्थिति की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि आज विभाजन एवं विरोध की आवाज बहुत अधिक सुनाई पड़ रही है, बहुधा शोषण, असुरक्षा एवं संघर्ष के कारण, यह आवाज कह रही है कि सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा संस्कृति को बनाये रखने की संभावना केवल दूसरों को खत्म करने एवं उन्हें भगा देने में है।

संत पापा ने लिथुआनियावासियों को सम्बोधित कर कहा कि विश्व को सहयोग देने के लिए उनके पास अपना शब्द है "विविधता को स्वीकारना"। वार्ता, खुलापन एवं समझदारी के द्वारा ही वे पूर्वी एवं पश्चिमी यूरोप के बीच सेतु का निर्माण कर सकते हैं जो उनके प्रौढ़ इतिहास का परिणाम है जिसको वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दे सकते हैं और खासकर, यूरोपीय समुदाय को।

व्यक्ति की प्रतिष्ठा को पहचानना

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें का हवाला देते हुए संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि "सार्वजनिक भलाई की चाह तथा न्याय एवं उदारता की मांग की ओर बढ़ने में हम जितना अधिक सार्वजनिक भलाई को सुरक्षित रखने का प्रयास करते हुए, हमारे पड़ोसियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास करेंगे, उतना ही अधिक उनके प्रति हमारा प्रेम सच्चा होगा। उन्होंने व्यक्ति की प्रतिष्ठा को पहचानना, सभी संघर्षों का स्थायी समाधान बतलाया जिसके लिए हम प्रत्येक को अपनी क्षितिज चौड़ी करने तथा वृहद सार्वजनिक भलाई को देखने की आवश्यकता है।

विकास हेतु युवाओं पर विशेष ध्यान देना

संत पापा ने देश के युवाओं पर विशेष ध्यान देने की सलाह देते हुए कहा, "अतीत से शक्ति प्राप्त करने के लिए आवश्यक है युवाओं पर विशेष ध्यान देना जो न केवल देश के भविष्य हैं किन्तु वर्तमान भी हैं यदि वे लोगों के मूल से जुड़े हों। ऐसे लोगों के मूल से जिनमें युवा विकास तथा नौकरी के अवसर पा सकें, यह अनुभव कर सकें कि समाज एवं समुदाय की संरचना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। यह सभी को आशा के साथ भविष्य को देखने का अवसर प्रदान करेगा। उनकी यह आशा तभी पूर्ण होगी जब युवाओं को समाज में सक्रिय सहभागी होने हेतु प्रोत्साहन दिये जाने की नीतियों को अथक रूप से बढ़ावा दिया जा सकेगा।

संत पापा ने अपने सम्बोधन के अंत में लिथुआनिया को काथलिक कलीसिया के सहयोग का आश्वासन दिया ताकि यह एकता एवं आशा के सेतु के रूप में अपनी बुलाहट को पूर्ण कर सके।

अपनी चार दिवसीय यात्रा में संत पापा लातविया एवं एस्तोनिया का भी दौरा करेंगे।

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22 September 2018, 17:18