रिगा में संत पापा द्वारा अंतरकलीसियाई समुदाय को संबोधन रिगा में संत पापा द्वारा अंतरकलीसियाई समुदाय को संबोधन 

सुसमाचार का संगीत प्रसारित करें, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने बाल्टिक देशों की अपनी प्रेरितिक यात्रा के तीसरे दिन लातविया के रीगा, लूथरन महागिराघर में ख्रीस्तीय एकतावर्धक समुदाय को संबोधित करते हुए सुसमाचार का संगीत बनने का संदेश दिया

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा ने कहा कि अपनी इस प्रेरितिक यात्रा में मुझे आप विभिन्न कलीसियाई समुदायों से मिल कर अत्यन्त खुशी हुई क्योंकि आप अपनी विशेष पहचान को बरकरार रखते हुए आपसी एकता में में बने रहते हैं। उन्होंने कहा कि यह “सजीव अंतरधार्मिक एकतावर्द्धक ख्रीस्तीय एकता” लातविया की विशेष पहचानों में से एक है जो हमारे लिए एक आशा है जिसके लिए हम निःसंदेह ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करते हैं।

ईश्वर का निवास आशीष का केन्द्र

विगत 800 सालों से शहर का यह महागिरजाघर ख्रीस्तीय जीवन का एक निवास स्थल रहा है। हमारे कितने ही विश्वासी भाई-बहनों ने अपने जीवन के अन्याय और दुःख भरे क्षणों में ईश्वर की आशा में बने रहने हेतु विश्वास के साथ यहाँ आकर प्रार्थना की और अपने जीवन में साहस का अनुभव किया है। यह आज हम सभों का स्वागत करती है जिससे पवित्र आत्मा हमें एकता में बनाये रखे जिसके फलस्वरूप हम अपने शहरों के लिए जहाँ हमारी विभिन्नता के आधार पर विभाजन की स्थिति है हम एकता के प्रवर्तक बन सकें। पवित्र आत्मा हमें वार्ता, समझ और आपसी भ्रातृत्व की पहचान रूपी हथियार से अंगीकृत करे।(ऐफि.16.13-18)

गिरजाघर हमारी पहचान

संत पापा ने कहा कि यह महागिरजाघर यूरोप के अति प्राचीनतम घरों में एक है जो अपने उद्घाटन के समय विश्व में सबसे बड़ा था। हम लोगों के जीवन में इस महागिरजाघर के सहचर्य, इसकी सृजनत्माकता की कल्पना कर सकते हैं जो इसकी गूंजन से धर्मिक कार्यों हेतु प्रभावित हुए। यह विश्वासियों के लिए वह निशानी बनी जिसकी मदद से उन्होंने अपनी आंखों को ईश्वर की ओर उठाया। आज यह महागिरजाघर इस शहर की एक पहचान बन गई है।

यहाँ जो निवास करते हैं उनके लिए यह एक विशाल रूप से बढ़कर है। यह उनके जीवन, संस्कृति और पहचान का एक अंग है। तीर्थयात्रियों के लिए यद्यपि यह एक कलाकृति सदृश लगती है जिसकी छाया वे उतारे हैं। यह हमारे लिए खतरे का कारण बनती है यदि हम “निवासी” होने के बदले “तीर्थयात्री” बनकर रह जाते हैं। हम इतिहास की उस वस्तु को अपने में धारण करते जो हमें पहचान प्रदान करती है, जो लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। यह हमें प्रचीन काल की एक उपल्बधि को दिखलाती है जिसका ऐतिहासिक मूल्य है, लेकिन यह हमारे हृदयों को रोमांचित करने में असफल होती है।

सुसमाचार की गूंज

संत पापा ने कहा कि विश्वास के साथ भी ऐसा ही हो सकता है। हम “स्थानीय निवासी” ख्रीस्तीय होने के बदले तीर्थयात्री बन सकते हैं। पूरा ख्रीस्तीय समुदाय इसका शिकार हो सकता है। एक संग्रहलाय के रुप में हमारा तब्दील हो जाना हमें अपने चारदीवारी में बंद कर देता है जिसके फलस्वरूप हम लोगों को अपने जीवन के द्वारा प्रभावित नहीं कर पाते हैं। फिर भी हमारा विश्वास जिस तरह हमने सुसमाचार में सुना अपने में छुपा नहीं रह सकता है वरन यह समाज के विभिन्न स्तरों पर अपने में गूंजित होता जिसके फलस्वरुप सभी इसकी सुन्दरता और इसके प्रकाश से अपने आप को आलोकित होता हुआ पाते हैं। (लूका.11.33)

संत पापा ने कहा कि यदि सुसमाचार का संगीत हमारे जीवन में सुनाई नहीं देता अथवा यह एकमात्र ऐतिहासिक वस्तु बन जाती तो यह हमारे जीवन से निरसता दूर नहीं कर सकती है जो हमारी आशा को खत्म कर देती और हमारे कार्यों को फलहीन बना देती है।

सुसमाचारीय संगीत का बंद होना

सुसमाचार संगीत जब हमारे जीवन में ध्वनित होना बंद हो जाता तो हम अपने जीवन में करूणा से उत्पन्न होने वाली खुशी, मातामयी प्रेम जो हमारे विश्वास के कारण प्रस्फुतिट होती, मेल-मिलाप की शक्ति जो हमें ज्ञान के द्वारा प्राप्त होती है जहाँ हम अपने पापों से क्षमा किये जाते और हम दूसरों के लिए भेजे जाते हैं, ये सारी चीजें समाप्त हो जाती हैं।

यदि सुसमाचार का संगीत हमारे घरों, चौराहों, कार्यस्थल, हमारी राजनीति और वित्तीय जीवन में गूंजित होना बंद हो जाता तो हमें अपने भाई-बहनों के जीवन से आने वाली पुकार को नहीं सुन पाते और न ही उनके सम्मान हेतु कार्य करने को योग्य रह जाते हैं, चाहे वे किसी भी वंश के क्यों न हों। इस तरह हम “मेरा” तक सीमित हो कर रह जाते और “हमारे” की भावना का हम तिरस्कार करते हैं।

संत पापा ने कहा कि सुसमाचार का संगीत यदि हम नहीं सुनते तो जीवन में ईश्वर की ओर से आने वाले निर्देश को हम खो देते और अपने जीवन के सबसे खराब बीमारी, अकेलेपन औऱ अलगाव की स्थिति से घिर जाते हैं। इस बीमारी को हम बुजूर्गों में पाते हैं जिन्हें अपने हालात पर छोड़ दिया जाता है। इसका शिकार युवा भी होते हैं जो भविष्य में अपने लिए अवसर की कमी को पाते हैं।

येसु की पिता से प्रार्थना

“पिता, जिससे सब एक हो जायें...जिससे संसार विश्वास करे”(यो. 17.21) इन वाक्यों के द्वारा ईश्वर की महिमा होती है जो हमारे बीच में लगातार गूंजता है। येसु इन शब्दों के द्वारा अपने दुःखभोग के पहले अपने लोगों के लिए प्रार्थना करते हैं। यह हमारे लिए एक राह तैयार करता है जिस पर हम चल सकते हैं। इस प्रार्थना को करते हुए हम ईश्वर की इच्छा को अपने जीवन में पूरा करने हेतु कृपा मांगते हैं जो हमें ख्रीस्तीय एकतावर्द्धक प्ररूप का एक अंग बनाता है। इस तरह हम अपने जीवन में दुःख रुपी क्रूस का सामना करने के योग्य बनते हैं।

हमारे प्रेरिताई कार्य में एकता एक अहम हिस्सा है। यह हम सभों से इस बात की मांग करती है कि हम अपने पुराने घावों और व्यक्तिगत सोच से संदर्भ से बाहर निकलें जिससे हम येसु ख्रीस्त की प्रार्थना पर अपना ध्यान क्रेन्दित कर सकें। हमारे प्रेरितिक कार्यों का उद्देश्य सुसमाचार के संगीत को चौराहों में सुनाना है।

सकारात्मक मानसिकता धारण करें

संत पापा ने कहा कि हममें से कुछ यह कह सकते हैं हमारे जीवन की परिस्थिति जहाँ हम रहते हैं जटिल और कठिन है। यह हमारे जीवन में सुरक्षात्मक मानसिकता को दिखलाती है, यहां तक की हमारे एक हत्तोसाहित स्वभाव को। हमें अपने जीवन में यह स्वीकार करने की जरूरत है कि यह वक्त हमारे लिए आसान नहीं है जहाँ हम अपने बहुत से भाई-बहनों को विभिन्न रुपों में कठिनाइयों का सामना करता हुआ पाते हैं। फिर भी उनके जीवन का साक्ष्य हमें यह बतलाता है कि ईश्वर हमें बुलाते हैं जिससे हम सुसमाचार के मूलभूत संदेश को खुशी औऱ कृतज्ञता में जी सकें। यदि येसु हमें अपने जीवन की कठिन परिस्थिति में जीवन जीने की शक्ति प्रदान करते तो हमें भयभीत नहीं होना चाहिए, वरन इस समय को निष्ठापूर्वक जीने की कोशिश करना चाहिए। येसु हमें अपनी शक्ति से पोषित करेंगे जिससे हम दूसरे के संग मेल-मिलाप का साधन बन सकें विशेष रुप से उनके साथ जो अपने को तुच्छ, परित्यक्त समझते हैं। यदि येसु ख्रीस्त हमें अपने संगीत को दूसरों तक ले जाने के योग्य हमें समझते हैं तो हम अपने में क्यों हताश होॽ

सुसमाचार जीवन की उमंग

संत पापा ने कहा कि जिस एकता में येसु हमें अपना जीवन जीने हेतु बुलाते हैं वह “प्रेरितिक” एकता है। यह हमें लोगों के दिलों, संस्कृतियों, आधुनिक समाज, जहाँ हम “नये प्ररूपों और तौर-तरीकों को बढ़ता हुआ पाते हैं” तक जाने को कहता है, ऐसा करने के द्वारा हम, “येसु के वचनों को शहरों के हृदय अतंस्थल तक ले जाते हैं। (प्रेरिक प्रबोधन, एभजेली गौदियुम 74) येसु की आत्मा से यदि हम अपने को संयुक्त करें तो हम अपने अंतरधार्मिक ख्रीस्तीय एकतावर्द्धक प्रेरिताई कार्यों को पूरा करते हैं। सुसमाचार के मूलरुप की ओर लौटना हमें नये उत्साह, ऊर्जा के भर देता और हम अपने जीवन के मार्ग को सृजनात्मक रुप में पाते हैं।

संत पापा ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि सुसमाचार का संगीत हमारे बीच गूंजता रहे। यह हमारे हृदयों को ख्वाब देखने हेतु प्रेरित करना बंद न करे, हमारी आंखें हमें अपने जीवन में चिंतन करने को मदद करें जिससे हम दुनिया में येसु के शिष्य बन सकें, जिसे जीने हेतु येसु हमें बुलाते हैं।

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24 September 2018, 11:14