खोज

आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा  

संत पापा, बाल्टिक देशों की यात्रा का विवरण

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में बाल्टिक देशों की अपनी प्रेरितिक यात्रा का विवरण दिया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 26 सितम्बर 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को बाल्टिक देशों की अपनी प्रेरितिक यात्रा का संक्षिप्त विवरण दिया।  संत पापा ने कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

मैंने फिलहाल ही बाल्टिक देशों की स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर लिथुवानिया, लातविया और एस्तोनिया की अपनी प्रेरितिक यात्रा पूरी की। अपनी स्वतंत्रता को सौ साल पूर्व उन्होंने पहले नाजी और बाद में सोवियत संघ की गुलामी का दंश झेला। वहाँ के लोगों ने अपने जीवन में घोर कष्ट का समना किया है और इसी कारण ईश्वर ने उनकी ओर अपनी कृपा दृष्टि फेरी है। संत पापा ने तीनों देशों के राष्ट्रपतियों और नागर अधिकारियों के अति-सुन्दर आतिथ्य हेतु धन्यवाद अदा किया। उन्होंने धर्माध्यक्षों के प्रति अपनी कृतज्ञता के भाव अर्पित किये जिन्होंने इस प्रेरितिक यात्रा को सफल बनाने हेतु अपना महत्वपूर्ण सहयोग दिया।

सुसमाचार हमारी शक्ति

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि उनकी यह प्रेरितिक यात्रा का संदर्भ संत पापा योहन पौल दवितीय के संदर्भ से एकदम भिन्न था अतः मैंने अपनी इस प्रेरिताई के तहत लोगों को सुसमाचार की खुशी और करूणा, कोमलता की क्रांति का संदेश दिया क्योंकि केवल स्वतंत्रता हमारे जीवन को अर्थ पूर्ण नहीं बनाती और न ही पूर्णत प्रदान करती, यदि हम प्रेम ईश्वर के प्रेम से अपने को अछूता रखते हैं। सुसमाचार हमारी आत्मा को शक्ति प्रदान करती है जब हम अपने जीवन को कठिन परिस्थितियों से गुजरता हुआ पाते हैं। जीवन की स्वतंत्रता में यह हमारी जीवन यात्रा, परिवारों औऱ समाज के लिए एक ज्योति बनती है। यह हमारे लिए नमक का कार्य करती जिसके फलस्वरुप हम अपने को दैनिक जीवन के व्यक्तिगत स्वार्थ, घिसे-पिटे मनोभाव की भ्रष्टता से सुरक्षित रखते हैं।

लिथुवानिया में कथलिकों की संख्या अधिक है जबकि लातविया और एस्तोनिया में लुथरन और ऑथोडक्स, लेकिन उनमें बहुतों ने अपने को धार्मिक जीवन से दूर कर लिया है। अतः मेरे लिए चुनौती यह थी कि कैसे ख्रीस्तीय विश्वासियों के बीच एकता स्थापित की जाये जो घोर सतावट के समय से ही उनके बीच में विकसित हुई है। वास्तव में अंतरधार्मिक कलीसियाई एकता का आयाम इस प्रेरितिक यात्रा का एक अहम हिस्सा था जो रीगा के महागिरजाघर में प्रार्थना सम्मेलन और ताल्लिन में युवाओं से मिलन द्वारा अपनी पराकाष्ठा में पहुँची।

बुजूर्गो से वार्तो पर बल

संत पापा ने कहा कि तीनों देशों के प्रशासनिक अधिकारियों को संबोधित करने के क्रम में मैंने इस बात पर जोर दिया कि वे देश में मानवता और सामाजिक मूल्यों के प्रसार में ध्यान दें। मैंने अपने संबोधन में युवा पीढ़ी को बुजूर्गों के साथ वार्ता करने हेतु प्रोत्साहन दिया क्योंकि “जड़ों” से अपने को संयुक्त करना हमारे वर्तमान और भविष्य को निरंतर फलहित करता है। उन देशों की रीतियों के अनुरूप मैंने उन्हें स्वतंत्रता को सदैव एकात्मता औऱ अतिथि-सत्कार से संयुक्त करने पर बल दिया।

हमारी नम्रता पवित्र आत्मा में

दो विशिष्ट क्रार्यकमों में मैंने युवाओं और बुजूर्गों से मुलाकात की, विलिनियस में युवा से और रीगा में बुजूर्गों से। विलिनियस के प्रांगण में युवाओं का दल, जो लिथुवानिया के आदर्श वाक्य, “येसु ख्रीस्त हमारी आशा” से जमा थे। युवाओं के द्वारा दिया गया साक्ष्य सुन्दर प्रार्थना और गीतों के बीच प्रस्तुत किया गया, जहाँ आत्मा ईश्वर के लिए खुली रहती, दूसरों की सेवा में खुशी का अनुभव करती, अपने अहम के बंधन से बाहर निकलती, गिरने के बात अपने में उठती है। लातविया में बुजूर्गों को मैंने आशा और धैर्य में बने रहने का संदेश दिया जिन्होंने अपने जीवन में अधिक कठिनाइयों का सामना किया है, वे उनकी जड़े हैं वे ईश्वर की कृपा से सुरक्षित रहें जिससे उनमें नई टहनियों का विकास हो जो अपने में फल उत्पन्न कर सके। वे जो उम्र को प्राप्त कर रहें हैं उनके लिए चुनौती उनकी आंतरिक कठोरता नहीं वरन युवा मन औऱ दिलों के प्रति अपने को खुला रखने का है। यह अपने में तब संभंव है जब प्रार्थना में ईश्वर के वचनों को सुनते हुए वे अपने को पवित्र आत्मा के “रस” वरदानों के लिए खुला रखते हैं।

शहीदों की याद हमारी प्रेरणा

लिथुवानिया में पुरोहितों और गुरूकुल को विद्यार्थियों से मिलते हुए मैंने उन्हें ईश्वर के प्रेम में  अपने को केन्द्रित करते हुए आश में बने रहने का आहृवान किया। अतीत में उन्होंने अपने जीवन के द्वारा बहुत बड़ा साक्ष्य दिया है और अब भी दे रहे हैं। उन्हें कई रुपों में कष्ट झेलने पड़े हैं लेकिन उन्होंने अपने को विश्वास में सुदृढ़ रखा है।  मैंने उन्हें प्रोत्साहित करते हुए शहीदों की याद करने को कहा जिससे वे उनके उदहारणों पर चल सकें।

विलिनियस में मैंने हजारों यहूदी की याद करते हुए उन्हें अपनी श्रद्धाजंलि अर्पित की जो लिथुवानिया में आज से ठीक 75 साल पूर्व नरसंहार का शिकार हुए थे। वही मैंने देश की स्वतंत्रता हेतु लड़ाई से संबंधित संग्रहलय की भेंट की और स्वतंत्रता संग्रम के दौरान बंदी, प्रताड़ित और मारे गये लोगों के कमरों में प्रार्थना की।

माता मरिया हमारी सहायता

संत पापा ने कहा कि साल बीत जाते हैं, शासन खत्म हो जाता है लेकिन विलिनियस की आशा का द्वार, करुणा की माता मरियम वहाँ के लोगों को अपनी प्रेम भरी निगाहों से देखती हैं जो उनके लिए आशा और सांत्वना की निशानी है।

उन्होंने कहा कि करूणा के कार्य हमेशा ही सुसमाचार की ठोस सजीव निशानी है। ईश्वर वहाँ भी अपने प्रेम की भाषा द्वारा लोगों की सेवा और जरूरतमंदों की सहायता करते हैं, जहाँ संप्रदायिकता मजबूत स्थिति में है। इस तरह हम हृदयों को खुलता और चमत्कारों को होता देखते हैं, मरूभूमि में  नये जीवन का उदय होता है।

संत पापा ने कहा कि लिथुवानिया के कौनास, लातविया के अगलोना और एस्तोनिया के ताल्लिन में अर्पित किये गये तीनों यूख्रारिस्त बलिदान में ईश्वर की पवित्र प्रजा ने ईश्वर के प्रति अपनी आशा “हाँ” को नवीकृत किया। उन्होंने माता मरियम से साथ जो सदा अपने बच्चों की चिंता करती हैं विशेष रुप से जो दुःख सह रहे होते हैं, अपने को ईश्वरीय चुनी हुई प्रजा, देश और पवित्र याजकवर्ग के रुप नवीन किया, जिनके हृदयो में ईश्वर बपतिस्मा के वरदानों को उड़ेलते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने बाल्टिक देशों की अपनी प्रेरितिक यात्रा का वृतांत अंत किया और सभों का अभिवादन करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

26 September 2018, 15:12