संत मैक्सिनिलियन कोल्बे संत मैक्सिनिलियन कोल्बे  

संत मैक्सिमिलयन के नाम दिवस पर संत पापा फ्राँसिस का ट्वीट

पोलैंड के फ्राँसिसकन पुरोहित ने नाजी हुकूमत के दौरान औश्वित्ज़ के यातना शिविर में फ्रान्सिजेक के स्थान पर मरना स्वीकार किया। बिना भोजन पानी के बहुत दिनों तक काल कोठरी में प्रार्थना करते पाये गये। अंत में 14 अगस्त, 1941 के दिन उन्हें कार्बोलिक एसिड का इंजेक्शन देकर मार दिया गया।

माग्रेट सुनीता मिंज - वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार 14 अगस्त 2018 (रेई) : काथलिक कलीसिया 14 अगस्त को अपने पड़ोसी के लिए प्राणों का बलिदान देने वाले महान संत मैक्सिनिलियन कोल्बे का त्योहार मनाती है। इस दिन संत पापा फ्राँसिस ने ट्वीट प्रेषित कर विश्वास के लिए सताय़े जाने वालों के साहस की प्रशंसा की।

संदेश में उन्होंने लिखा, “आज भी बहुत सारे शहीद हैं, बहुतों को येसु में विश्वास और प्रेम के खातिर सताया जाता है। वे ही कलीसिया की असली ताकत हैं!”

संत मैक्सिमिलियन कोल्बे

संत मैक्सिमिलियन कोल्बे (1894-1941) पोलैंड के फ्रांसिस्कन पुरोहित थे। नाजी हुकूमत के दौरान उन्हें जर्मनी की खुफिया पुलिस ‘गेस्टापो’ ने बंदी बना लिया। उन्हें पोलैंड के औश्वित्ज़ के यातना शिविर में भेज दिया गया।

एक दिन यातना शिविर में दैनिक हाजिरी के दौरान एक बंदी कम पाया गया। अधिकारियों ने यह तय किया कि उस बंदी के बदले उसी बैरक के दस बंदियों को मृत्युदंड दे दिया जाए ताकि कोई दूसरा बंदी भागने का प्रयास करने का साहस न करे। जिन दस बंदियों का चयन किया गया उनमें फ्रान्सिजेक गज़ोनिव्ज़ेक भी था। जब उसने अपनी मृत्यु के बारे में सुना तो वह चीत्कार उठा– “हाय मेरी बेटियाँ, मेरी बीबी, मेरे बच्चे! अब मैं उन्हें कभी नहीं देख पाऊँगा!”–वहां मौजूद सभी बंदियों की आँखों में यह दृश्य देखकर आंसू आ गए।

फादर कोल्बे आगे आये और उसे ले जानेवालों से बोले–“मैं एक काथलिक पुरोहित हूँ। मैं उसकी जगह लेने के लिए तैयार हूँ। मैं बूढ़ा हूँ और मेरा कोई परिवार भी नहीं है।”

फ्रान्सिजेक के स्थान पर कोल्बे की मरने की फरियाद स्वीकार कर ली गई। फादर कोल्बे के साथ बाकी नौ बंदियों को एक काल कोठरी में बंद करके भूखा-प्यासा मरने के लिए छोड़ दिया गया। फादर कोल्बे ने सभी बंदी साथियों से उस घड़ी प्रार्थना की और ईश्वर में अपनी आस्था दृढ़ रखा। भूख और प्यास से एक के बाद एक बंदी मरते गये। फादर कोल्बे अंत तक जीवित रहे और सबके लिए प्रार्थना करते रहे।

दो सप्ताह बाद काल कोठरी को खोलकर देखा गया तो फादर कोल्बे जीवित मिले। 14 अगस्त, 1941 को उन्हें बाएँ हाथ में कार्बोलिक एसिड का इंजेक्शन देकर मार दिया गया। जिस काल कोठरी में फादर कोल्बे की मृत्यु हुई अब वह औश्वित्ज़ जानेवाले यात्रियों के लिए पावन तीर्थ की भांति हैं।

संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने 1982 में फादर कोल्बे को संत की उपाधि दी तब फ्रान्सिजेक अपने परिवार के साथ उपस्थित थे। फादर कोल्बे द्वारा जीवनदान दिए जाने के 53 वर्ष बाद फ्रान्सिजेक गज़ोनिव्ज़ेक की मृत्यु 95 वर्ष की उम्र में 1995 में हुई।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

14 August 2018, 16:11