संत पापा फ्राँसिस आमदर्शन समारोह के दौरान लोगों को सम्बोधित करते हुए संत पापा फ्राँसिस आमदर्शन समारोह के दौरान लोगों को सम्बोधित करते हुए 

परिपूर्ण जीवन की चाह

संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को संहिता की आज्ञा पर अपनी धर्मशिक्षा दी।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

आज हम एक नई विषयवस्तु पर अपनी धर्मशिक्षा माला की शुरुआत करेंगे जो कि संहिता की शिक्षा पर आधारित है। इस संदर्भ में हमें अपने को धर्मग्रंथ की उस परिस्थिति से अवगत कराने की जरूरत है जहाँ एक युवक येसु के पास आ कर घुटने टेकते हुए यह सवाल करता है कि अनंत जीवन की प्राप्ति हेतु उसे क्या करना चाहिए। (मकु. 10.17-21) संत पापा ने कहा कि इस सवाल के परिपेक्ष में हम अपने जीवन की सारी चुनौतियों को पाते हैं, सम्पूर्ण, अनंत जीवन की चाह, उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता हैॽ वहां जाने हेतु कौन-सा रास्ता हैॽ एक सच्चा जीवन जीने की चाह, जिसकी खोज हेतु आज कितने ही युवक अपने को भटकता हुआ पाते और जीवन की क्षणभंगुर चीजों का शिकार हो जाते हैं।

संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि बुहत से ऐसे हैं जो अपने को इससे दूर रखने की सोच लेते हैं  क्योंकि वे इसे अपने जीवन में खतरनाक पाते हैं। मैं युवाओं से कहना चाहूँगा कि हमारे जीवन में सबसे बड़ा शत्रु हमारी जटिल कठिनाइयाँ नहीं हैं, चाहे वे कितनी भी गंभीर और नाटकीय क्यों न हो, वरन हमारे जीवन का सबसे बड़ा बैरी जीवन के प्रति हमारी अनुकूलनता है, जहाँ हम अपने में विनम्रता या सौम्यता के बदले कायरता और चलता है के मनोभावों को धारण करते हैं। धन्य पियेर जोर्जियो फ्रस्ती कहते हैं कि हमें अपने जीवन को विश्वास और भरोसे में मजबूती से जीने की जरूरत है न कि जीवन में घसीट-घसीट कर चलने की। हमें आज के युवाओं के लिए ईश्वर पिता से प्रार्थना करने की जरूरत है कि वे उन्हें अपनी साकरात्मक उत्तेजना से भर दें जिससे वे अपने जीवन को अच्छा और सुन्दर बनाये बिना अपने में संतुष्ट न रहें। संत पापा ने कहा कि यदि युवाओं में जीवन को सुन्दर बनाने की भूखा न हो तो मानवता किस ओर अग्रसर होगीॽ

हमारे जीवन का उद्देश्य

सुसमाचार में उस युवा के द्वारा पूछा गया सवाल हम सबों के जीवन का एक अंग है। हम अपने जीवन की सुन्दरता, अनंत जीवन को कैसे प्राप्त सकते हैंॽ येसु इसका उत्तर देते हुए युवा से कहते हैं, “तुम्हें संहिता की आज्ञाओं का ज्ञान है। इस प्रकार वे संहिता में निहित दस आज्ञाओं का जिक्र करते हैं। युवा के सवाल से हमें पता चलता है कि उसमें सम्पूर्ण जीवन का अभाव है। वह येसु को उत्तर में कहता है,“मैंने अपने युवाकाल से ही इन सारी बातों का अनुपालन किया है।”

संत पापा फ्रांसिस ने कहा, “आप युवावास्था से प्रौढता को कैसे प्राप्त करते हैंॽ” जब हम अपनी खाम्मियों को स्वीकार करना शुरु करते हैं। हम अपने में तब व्यस्क होते हैं जब हम अपने जीवन में “किसी बात की कमी” का एहसास करते हैं। उस युवा को येसु विचार करने हेतु विवश करते हैं कि उसके द्वारा किये गये कार्य अपने में प्रर्याप्त नहीं हैं।

स्त्री और पुरूष के रुप में मानव जीवन कितना सुन्दर है। हमारा जीवन कितना मूल्यवान है। लेकिन इसके बावजूद मानवीय इतिहास की सच्चाई यही है कि हमने अपने जीवन की खाम्मियों को अब तक नहीं स्वीकारा है।

असल जीवन का चुनाव

येसु सुसमाचार में हमें अपना संदेश देते हुए कहते हैं,“यह न समझो कि मैं संहिता अथवा नबियों के लेखों को रद्द करने आया हूँ। मैं उन्हें रद्द करने नहीं बल्कि पूरा करने आया हूँ।” (मत्ती. 5.17) येसु दुनिया में अपने आने की बात को हमें बतलाते हैं। उस युवक को अपने आप से बाहर निकलने की जरूरत थी जो उसे अपने कार्यों और अपने जीवन को अपने लिए नहीं वरन ख्रीस्त के मनोभवानुसरण जीने की मांग करता था। येसु उसे करीब से देखते और अपना अनुसरण करने हेतु निमंत्रण देते हैं यह कहते हुए, “तुम में एक बात की कमी है, जाओ, अपना सब कुछ बेच कर गरीबों को दे दो, और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूंजी रखी रहेगी। तब आकर मेरा अनुसरण करो।” (माकु. 10. 21) संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हममें से कौन अपने जीवन में असली और नकली के बीच चुनाव कर सकता हैॽ यह हमारे लिए एक चुनौती है। आप अपने जीवन में असली बातों का चुनाव करें, नकली का नहीं। येसु हमें नकली नहीं वरन असल जीवन का दान, सच्चा प्रेम और सच्चा धन प्रदान करते हैं। युवा अपने विश्वास में कैसे सच्चे जीवन का चुनाव कर सकते हैं यदि हम उन्हें वास्तविक जीवन को नहीं दिखलाते, यदि वे हमें जीवन की दुविधा भरी स्थिति में पड़ा हुआ पाते हैं। संत इग्नासियुस इसे अपने जीवन में “मैजिस” और अधिक, बेहतर की संज्ञा देते हैं। यह अपने में एक तरह की आग है, किसी कार्य को करने का जोश, जो हमें अपनी निद्रा की स्थिति में झकझोर देता है।”

हमें अपने जीवन की सच्चाई से शुरू करने की आवश्यकता है जो हमें अपने “जीवन की कमी” के पार ले जायेगी। हम अपने जीवन में साधारण चीजों का परिक्षण करें जो हमें असाधरण चीजें को पूरा करने हेतु मदद करेगा।

संत पापा ने कहा इस धर्मशिक्षा में हम मूसा के द्वारा ख्रीस्तियों के लिए निर्धारित दो पाट्टियों को देखते हैं , जो हमें युवावास्था के मोह से स्वर्ग राज्य के धन की ओर ले चलती है, जहाँ हम येसु का अनुसरण करते हैं। संहिता की दोनों आज्ञाओं में पिता ईश्वर स्वर्ग के द्वार को हमारे लिए खोलते हैं क्योंकि येसु ख्रीस्त जो  स्वयं उसमें से हो कर गुजरे हैं हमें सच्चे जीवन की ओर ले चलते हैं। यह उनका जीवन है जो हमें उनके पुत्र-पुत्रियाँ बनाता है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासी समुदाय का अभिवादन किया।

उन्होंने विशेष रुप से युवाओं, बुजुर्गों, बीमारों और नव विवाहितों की याद की।  संत पापा ने कहा कि हम आज पादुआ से संत अन्तोनी, कलीसिया के आचार्य की याद करते हैं जो गरीबों के संरक्षक संत हैं। वे हमें निष्ठा और उदारतापूर्ण प्रेम की शिक्षा देते हैं। अपने पड़ोसियों को उनकी तरह प्रेम करने से हम अपने आस-पड़ोस में असहाय लोगों को नहीं पाते जो हमें अपने जीवन की कठिन परिस्थिति में मजबूत बने रहने को मदद करती है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के साथ हे हमारे पिता प्रार्थना का पाठ किया और सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

 

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09 July 2018, 16:57