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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

पिता के पास पहुँचने हेतु येसु हमारे मध्यस्थ, संत पापा

वाटिकन स्थित प्रेरित आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में रविवार 10 मई को संत पापा फ्राँसिस ख्रीस्तयाग अर्पित किया जहाँ उन्होंने यूरोप की एकता के लिए प्रार्थना की। उपदेश में उन्होंने धर्माध्यक्षों के सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य पर प्रकाश डाला।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 10 मई 2020 (रेई)- पास्का के पाँचवें रविवार को संत पापा फ्राँसिस ने ख्रीस्तयाग आरम्भ करते हुए विगत दिनों की दो वर्षगाँठों की याद की। पहला, रोबर्ट शुमन की घोषणा जिसके द्वारा यूरोपीय संघ की स्थापना हुई तथा दूसरा, युद्ध विराम की यादगारी। उन्होंने विश्वासियों को यूरोप के लिए प्रार्थना करने हेतु निमंत्रण दिया ताकि वह एक साथ भ्रातृत्व में बढ़ सके।  

अपने उपदेश में संत पापा ने संत योहन रचित सुसमाचार (यो. 14,1-12) से लिए गये पाठ पर चिंतन किया, जहाँ येसु हमारे लिए पिता से मध्यस्थता करते हैं। उसके बाद संत पापा ने पेत्रुस (प्रे.च.6,1-7) द्वारा प्रेरितों की भूमिका की व्याख्या पर भी प्रकाश डाला। यह भूमिका धर्माध्यक्षों के लिए भी लागू होती है। उनका पहला कर्तव्य है प्रार्थना करना, उसके बाद ईशवचन की घोषणा करना।  

मध्यस्थ के रूप में येसु की भूमिका

संत पापा ने कहा कि संत योहन के सुसमाचार का 14वां अध्याय हमारी ओर से पिता के पास येसु की मध्यस्थता करने की भूमिका को प्रस्तुत करता है। येसु ने कई बार हमारे लिए पिता के प्रेम के बारे बतलाया है। उन्होंने बतलाया है कि पिता हमारी उतनी ही चिंता करते हैं जितनी वे आकाश की पक्षियों एवं खेलों के फूलों के लिए करते हैं।  

"इस पाठ में येसु जोर देकर कहते हैं, "तुम मेरा नाम लेकर जो कुछ भी मांगोगे, मैं तुम्हें वही प्रदान करूँगा। जिस पिता के द्वारा पुत्र की महिमा प्रकट हो यदि तुम मेरा नाम लेकर मुझसे कुछ मांगोगे, तो मैं तुम्हें वही प्रदान करूँगा। (यो. 13-14)."

तब संत पापा ने याद दिलाया कि प्रार्थना के लिए साहस की जरूरत होती है और वही साहस सुसमाचार प्रचार के लिए भी आवश्यक है। अब्राहम और मूसा ने हमें उदाहरण दिया है। दोनों ने प्रभु के साथ समझौता किया था। अब्राहम ने उस समय समझौता किया था जब सोदोम और गोमोरा में आग बरसने वाली थी। (उत्पति. 18:16-33), मूसा ने उस समय प्रभु से आग्रह किया था जब प्रभु अपनी प्रजा को नष्ट करना चाहते थे। (निर्ग. 32:7-14)

उपयाजक एवं धर्माध्यक्ष

संत पापा ने पहले पाठ पर प्रकाश डाला जिसमें पेत्रुस ग्रीक भाषी ख्रीस्तियों द्वारा उनकी विधवाओं की उपेक्षा किये जाने की शिकायत के बाद, कलीसिया में सेवा के नये तरीके को अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं। पेत्रुस ने कहा, "यह उचित नहीं है कि हम भोजन परोसने के लिए ईश्वर का वचन छोड़ दें। अतः पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर पेत्रुस ने उपयाजकों को निमंत्रण दिया।

संत पापा ने कहा कि इस तरह समस्या का समाधान हुआ। जरूरतमंद लोगों की अच्छी तरह देखभाल की जानी चाहिए और प्रेरित भी प्रार्थना एवं वचन की घोषणा कर सकें।

धर्माध्यक्षों का पहला कर्तव्य

संत पापा ने धर्माध्यक्षों के कर्तव्यों पर प्रकाश जालते हुए कहा कि उनका पहला कर्तव्य है प्रार्थना करना। धर्माध्यक्ष पहला व्यक्ति है जिसे साहस एवं दृढ़ता के साथ पिता ईश्वर के पास जाना है जैसा कि येसु अपने लोगों को बचाने के लिए किये।  

संत पापा ने धर्माध्यक्षों को चेतावनी दी कि यदि प्रार्थना का स्थान कोई दूसरी चीज ले जाए तो यह सही नहीं है। उन्होंने याद दिलाया कि ईश्वर ही कार्यों को पूरा करते हैं जबकि हम बहुत थोड़ा कर पाते हैं। ईश्वर अपनी कलीसिया में कार्य करते हैं, अतः प्रार्थना ही कलीसिया को बढ़ाता है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि येसु अपने पिता के सामने खड़े होते हैं और उन्होंने प्रतिज्ञा की है कि "तुम मेरे नाम पर पिता से कुछ भी मांगोगे, मैं उसे प्रदान करूँगा जिससे कि पिता की महिमा प्रकट हो।"

संत पापा ने अपने उपदेश के अंत में कहा कि "कलीसिया उनके साहसपूर्ण प्रार्थना से बढ़ती है क्योंकि वह जानती है कि पिता के वरदान के बिना वह जीवित नहीं रह सकती।"

संत पापा का ख्रीस्तयाग 10 मई 2020

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10 May 2020, 15:44
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