संत पापा फ्राँसिस ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए संत पापा फ्राँसिस ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए 

संत पापा ने दवाखानों में काम करने वालों के लिए प्रार्थना की

वाटिकन के प्रेरित आवास संत मर्था में बृहस्पतिवार को ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने दवाखानों में काम करने वालों के प्रति आभार प्रकट किया जो महामारी के इस समय में बीमार लोगों की सेवा कर रहे हैं। उपदेश में उन्होंने कहा कि सुसमाचार प्रचार हेतु हमारे लिए बड़ी शक्ति है प्रभु का आनन्द, जो पवित्र आत्मा का फल है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 16 अप्रैल 2020 (रेई)- पास्का अठवारे के दौरान बृहस्पतिवार को ख्रीस्तयाग शुरू करते हुए संत पापा ने दवाखानों में काम करने वालों की याद की। उन्होंने कहा, “इन दिनों कुछ लोगों ने मुझे गाली दी क्योंकि मैं एक दल को धन्यवाद देना भूल गया था, जो काम करते हैं... मैंने डॉक्टरों, नर्सों और स्वयंसेवकों को धन्यवाद दिया... किन्तु दवाखानों में काम करने वालों को भूल गया। वे भी मरीजों के ठीक होने के लिए बहुत काम करते हैं। हम उनके लिए प्रार्थन करें।

 पुनर्जीवित ख्रीस्त का शिष्यों को दर्शन

उपदेश में संत पापा ने संत लूकस रचित सुसमाचार पाठ ( लूक 24, 35-48) पर चिंतन किया जिसमें पुनर्जीवित ख्रीस्त शिष्यों को दर्शन देते हैं। शिष्य उन्हें देखकर, विस्मित और भयभीत हो गये क्योंकि उन्हें लगा कि वे कोई प्रेत देख रहे। येसु उनके मन को खोल दिए और धर्मग्रंथ का मर्म समझाया जिसको वे आनन्द के मारे समझ नहीं पाये। संत पापा ने आनन्द के भर जाने को रेखांकित करते हुए कहा कि यह बहुत अधिक सांत्वना महसूस करना है। यह प्रभु की उपस्थित को अनुभव करना है, पवित्र आत्मा का फल है और एक कृपा है। संत पापा पौल छाटवें के प्रेरितिक विश्व पत्र एवंजेली नुनसियांदी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यह सुसमाचार प्रचार हेतु हमारे लिए बड़ी शक्ति है। यह जीवन के साक्ष्य से प्रकट होता है, प्रभु का आनन्द है और पवित्र आत्मा का फल है।

विस्मय एवं संदेह        

संत पापा ने कहा, “इन दिनों जब येरूसालेम के लोग, डर, विस्मय और संदेह जैसे कई अनुभवों से गुजर रहे थे। ऐसे समय में लंगड़े को चंगा करना पेत्रुस और योहन के प्रति लोगों में अधिक विस्मय डाल दिया। (प्रे. च. 3:11) संत पापा ने कहा कि वहाँ एक असमान वातावरण था क्योंकि लोग उन दिनों की घटना को ठीक से नहीं समझ पाये थे। प्रभु अपने शिष्यों के पास गये। शिष्य जानते थे कि प्रभु जी उठे हैं, पेत्रुस भी जानता था क्योंकि उसने सुबह में उनसे बात की थी। एम्माउस से लौटे शिष्य अच्छी तरह जान रहे थे फिर भी जब येसु दिखाई दिये तो वे डर गये। वे विस्मित और भयभीत हो गये क्योंकि उन्हें लगा कि वे कोई प्रेत देख रहे हैं। (लूक. 24,37) झील में उन्होंने वही अनुभव किया था जब येसु पानी पर चल रहे थे जबकि पेत्रुस ने साहस करके प्रभु की ओर बढ़ने की कोशिश की थी। आज वह मौन था। प्रभु ने कहा, "तुम लोग घबराते क्यों हो? मेरे हाथ और पैर देखो... फिर वे अपना घाव दिखलाते हैं।" (लूक. 24,38-39) उन्होंने कहा, "मुझे स्पर्श कर देख लो, प्रेत के मेरे जैसे हाड़-मांस नहीं होता।"

आनन्द जो विश्वास में बाधा डालता

संत पापा ने कहा कि उसके बाद का वाक्य मुझे बहुत प्रभावित करता है, “इसपर भी शिष्यों को आनन्द के मारे विश्वास नहीं हो रहा था।” (लूक 24:41), शिष्य विस्मय और आनन्द से इतने भर गये थे कि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था। संत पापा ने कहा कि बहुत अधिक आनन्द जो विश्वास करने से रोकता है वह सच्चा आनन्द नहीं हो सकता। पौलुस रोम में अपने लोगों के लिए आनन्द की कामना करते हैं। "आशा का ईश्वर आपको आनन्द से भर दे।" (रोम 15,13) आनन्द से भरा हुआ महसूस करना सांत्वना महसूस करना है। यह प्रसन्नचित, सकारात्मक अथवा पुलकित होने से अलग है। आनन्दित होना, आनन्द से भर जाना, प्रभु की कृपा द्वारा ही संभव हो सकता है इसी की आशा पौलुस करते हैं जब वे कहते हैं, "आशा का ईश्वर आपको आनन्द से भर दे।"

आनन्द से भरना

आनन्द से भर जाने की बात कई बार कही गयी है। उदाहरण के लिए जब पौलुस ने कारावास के अधिकारी के जीवन को बचा लिया था जो भुकम्प से द्वार खुलने के कारण आत्म हत्या करने वाला था और उसके बाद सुसमाचार की घोषणा करते हुए पौलुस ने उसे बपतिस्मा दिया था। धर्मग्रंथ बतलाता है कि उन्होंने आनन्द मनाया। उसी तरह इथोपियाई खोजे के साथ भी हुआ, जब फिलीप ने उसे बपतिस्मा दिया तब वह आनन्द से अपने रास्ते पर आगे बढ़ा।( प्रे.च. 8:39) पेंतेकोस्त के दिन भी यही हुआ। शिष्य येरूसालेम लौटे, वे आनन्दित थे।

सच्चा आनन्द का अर्थ

संत पापा ने कहा कि इसका अर्थ है पूर्ण सांत्वना प्राप्त करना, यह ईश्वर की पूर्ण उपस्थित महसूस करना है, क्योंकि, जैसा कि संत पौलुस गलातियों से कहते हैं, "आनन्द पवित्र आत्मा का फल है" (गला. 5:22), यह उस भावना का परिणाम नहीं है जो अनोखी चीजों को देखने से उत्पन्न होती। सच्चा आनन्द पवित्र आत्मा का फल है। पवित्र आत्मा के बिना इस आनन्द को प्राप्त नहीं किया जा सकता। आत्मा के आनन्द को प्राप्त करना एक कृपा है।

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16 April 2020, 17:31
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