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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  (AFP or licensors)

कलीसिया पीड़ितों की मदद करती है, संत पापा

संत पापा ने उन परिवारों के लिए प्रार्थना की जो कोविड-19 महामारी से पीड़ित हैं। संत मर्था के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए उन्होंने उन पुरोहितों एवं धर्मबहनों की याद की जो अपने लोगों की याद करते एवं इस समय भी गरीबों एवं बीमारों की मदद कर रहे हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 28 मार्च 2020 (रेई)˸ संत पापा फ्राँसिस द्वारा संत मर्था में ख्रीस्तयाग के लाईव प्रसारण का आज 20वाँ दिन था। संत पापा ने इसकी शुरूआत कोरोना वायरस की महामारी के कारण इटली एवं कई अन्य देशों में सार्वजनिक रूप से ख्रीस्तायाग में भाग लेने पर रोक लगाये जाने के बाद की है।

संत पापा ने कहा, "इन दिनों विश्व के कुछ हिस्सों में महामारी के परिणामों में से एक परिणाम है भूख। हम कुछ लोगों को देख रहे हैं जो भूखे हैं क्योंकि वे काम नहीं कर सकते, उनकी नौकरी स्थायी नहीं है और कई अन्य परिस्थितियाँ हैं। हम उन परिवारों के लिए प्रार्थना करें जो महामारी के कारण अभाव महसूस कर रहे हैं।"

प्रवचन में संत पापा ने सुसमाचार पाठ (योहन 7:40- 53) पर चिंतन किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पुरोहित एवं धर्मबहनें ऐसी स्थिति में भी गरीबों और बीमारों की मदद करने में अपना हाथ गंदा कर, अच्छा काम कर रहे हैं। पुरोहित वर्ग को कभी भी कुलीन व्यक्ति बनकर लोगों से अलग, धार्मिक सेवा में बंद नहीं हो जाना चाहिए। उन्हें लोगों के नजदीक रहने एवं उनकी सेवा करने को कभी नहीं भूलना चाहिए।  

संत पापा ने सुसमाचार पर चिंतन करते हुए कहा, "और सब अपने घर लौट गये।" विवाद के बाद सभी अपने-अपने घर चले गये। यहाँ लोगों में मतभेद थी ˸ जो लोग येसु पर विश्वास करते थे वे उनकी सुनते थे, नहीं जानते हुए कि वे कब से उन्हें सुनने लगे हैं क्योंकि येसु का वचन उनके हृदय में प्रवेश किया था, उधर संहिता के पंडित येसु का बहिष्कार करते थे क्योंकि उनके अनुसार येसु संहिता का पालन नहीं करते थे। वहाँ लोगों के दो दल थे। एक दल जो येसु से प्रेम करता एवं उनका अनुसरण करता था और दूसरा दल जो संहिता के पंडितों का था वे इस्राएल के नेता एवं जनता के अगुवे हैं। यह स्पष्ट है जब प्यादे महायाजकों और फरीसियों के पास लौटे तो उन्होंने उनसे पूछा, उसे क्यों नहीं लाये? प्यादों ने उत्तर दिया। जैसा वह मनुष्य बोलता है वैसा कभी कोई नहीं बोला। इस पर फरीसियों ने कहा, क्या तुम भी उसके बहकावे में आ गये हो? क्या नेताओं अथवा फरीसियों में किसी ने उस में विश्वास किया है? भीड़ की बात दूसरी है। वह संहिता की परवाह नहीं करती और शापित है।" संहिता के पंडितों का यह दल येसु का तिरस्कार करता था किन्तु जनता के प्रति भी नीच की भावना रखता था। वे उनके बारे सोचते थे कि वे अज्ञानी हैं और कुछ नहीं जानते।

ईश्वर की पवित्र प्रजा येसु पर विश्वास करती और उनका अनुसरण करती थी जबकि कुलीन एवं संहिता के पंडित जनता से अपने को दूर रखते थे। वे येसु को भी स्वीकार नहीं करते थे। संत पापा ने कहा कि ये लोग बुद्धिमान थे, उन्होंने अध्ययन किया था किन्तु उनमें एक बड़ी त्रुटि थी और वह त्रुटि थी, अपने लोगों के प्रति अपनेपन की याद खो देना।          

ईश्वर की प्रजा येसु का अनुसरण करती है वह इसकी व्याख्या नहीं कर पाती किन्तु वह उनका अनुसरण करती, उनके हृदय में प्रवेश करती और कभी नहीं थकती है। रोटियों के चमत्कार के दिन पर गौर करें। वे दिनभर येसु के साथ थे यहाँ तक कि येसु के चेले भी कहने लगे, उन्हें छोड़ दीजिए ताकि वे भोजन खरीद सकें। चेले भी लोगों से दूरी बनाकर रहे। उन्होंने उनका तिरस्कार नहीं किया किन्तु ईश्वर की प्रजा पर ध्यान नहीं दिया। तब येसु ने चेलों से कहा, "तुम ही उन्हें कुछ खाने को दो।" वे लोगों को फिर उनके पास लाते हैं।

धार्मिक नेताओं एवं दूर से आने वाले लोगों के बीच यह दरार एक नाटक है। हम पुराने व्यवस्थान में मंदिर में एली के पुत्रों के मनोभाव पर विचार करते हैं। वे ईश प्रजा का प्रयोग करते थे। वे लोगों का अपमान करते थे।    

संत पापा ने कहा कि कुलीन लोगों की समस्या के समान ही कुलीन पुरोहितों की समस्या भी है, वे ईश्वर की प्रजा के प्रति अपनेपन की याद खो देते हैं। वे जटिल होते और अलग समाजिक वर्ग में जा चुके हैं। वे सोचते हैं कि वे नेता हैं। यही याजकवाद है जो उस समय भी था।

संत पापा ने कहा, "मैंने इन दिनों कहते सुना है कि कई धर्मबहनें, पुरोहित जो स्वस्थ हैं गरीबों के पास जाते और उन्हें खिलाते हैं इसके द्वारा क्या वे कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं होंगे? सुपीरियर से बोलिए कि वे अपनी धर्मबहनों को बाहर जाने न दें, धर्माध्यक्षों से बोलिए कि वे अपने पुरोहितों को बाहर निकलने न दें। वे संस्कारों के लिए हैं। लोगों को खिलाना सरकार का काम है।" उन्होंने कहा कि इन दिनों हम इसी विषय पर बात कर रहे हैं और सोचते हैं कि वे द्वितीय श्रेणी के लोग हैं, हम प्रशासक वर्ग हैं, हमें गरीबों के साथ अपना हाथ गंदा नहीं करना चाहिए।  

कई बार मैं सोचता हूँ कि पुरोहित एवं धर्मबहनें जो बाहर जाने और गरीबों की सेवा करने का साहस नहीं करते, वे अच्छे हैं किन्तु उनमें कुछ चीज की कमी है। संहिता के पंडितों में जिस बात की कमी थी उसी बात की कमी इनमें भी है। येसु ने भीड़ के लिए  अपने हृदय में जो महसूस किया था, वह अनुभव उन्होंने खो दिया है। उन्होंने उस याद को खो दिया है जिसके बारे ईश्वर ने दाऊद से कहा था, "मैंने तुमको भेड़ों के झुंड के पास से लिया है।" संत पापा ने कहा कि उन्होंने अपनी भेड़ों के प्रति अपनापन खो दिया है।  

सुसमाचार में लोग मतभेद के साथ अपने-अपने घर लौटते हैं। निकोदिमुस जिन्होंने कुछ देख लिया था वह बेचैन था, शायद वह अधिक साहसी नहीं था या औपचारिक था पर परेशान था और येसु के पास गया। फिर भी वह जो कर सकता था उसमें वह निष्ठावान था। वह मध्यस्थ बनने तथा संहिता के साथ चलने का प्रयास करता और कहता है, "जब तक किसी की सुनवाई नहीं हुई और यह पता नहीं लगा कि उसने क्या किया है, तब तक क्या यह हमारी संहिता के अनुसार उचित है कि किसी को दोषी ठहराया जाए? उन्होंने उसे उत्तर दिया, कहीं आप भी तो गलीली नहीं हैं? पता लगाकर देख लीजिए कि गलीलिया में नबी नहीं उत्पन्न होते और यहीं कहानी का अंत होता है।

संत पापा ने कहा, "हम उन पढ़े लिखे स्त्री और पुरूषों की कल्पना करें जो ईश्वर की सेवा करते हैं, वे अच्छे हैं और लोगों की सेवा करते हैं। कई पुरोहित अपने आपको लोगों से अलग नहीं करते। दो दिनों पहले मैंने एक पुरोहित का फोटोग्राफ पाया। वह एक पहाड़ी प्रदेश का पल्ली पुरोहित है जहाँ हिमपात होता है। वह पावन संस्कार को लेकर गाँवों में जाता एवं लोगों को आशीष प्रदान करता है। वह बर्फ की चिंता नहीं करता, न धूप की और न ही उस धातु के ठंढ़ की जिसको वह अपने हाथों में लेता है। वह केवल लोगों तक येसु को पहुँचाने की बात सोचता है।

संत पापा ने चिंतन करने हेतु प्रेरित करते हुए कहा, "हम चिंतन करें कि हम किस ओर हैं अथवा क्या हम बीच में हैं? यदि हम ईश्वर की प्रजा के प्रति लगाव महसूस करते हैं तब हम कभी असमर्थ नहीं होंगे। उन कुलीन लोगों की भी याद करें जो ईश प्रजा से अपने को अलग करते हैं शायद यही कारण है कि पौलुस अपने शिष्य युवा धर्माध्यक्ष तिमोथी से कहते हैं, "अपनी माता एवं नानी की याद कर।" संत पौलुस ने इसीलिए यह सलाह दी क्योंकि वे कुलीनता की भावना के इस खतरे को जानते थे।

ख्रीस्तयाग के अंत में संत पापा ने पावन संस्कार की आराधना की तथा आशीष प्रदान किया।

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28 March 2020, 13:58
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