ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा फ्राँसिस ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा फ्राँसिस  (Vatican Media)

कलीसिया में पदवी में नहीं, सेवा में महानता है, संत पापा

संत पापा फ्राँसिस ने अत्याधिक उत्साह, ईर्ष्या एवं गपशप के विरूद्ध चेतावनी दी है। वाटिकन के प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में 25 फरवरी को ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि दुनियादारी ईश्वर का शत्रु है क्योंकि प्रभु हमें विनम्र बनने के लिए कहते हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 25 फरवरी 2020 (रेई)˸ संत पापा ने प्रवचन में सुसमाचार पाठ पर चिंतन किया जहाँ येसु शिष्यों से कहते हैं, "यदि कोई पहला होना चाहे तो वह सबका सेवक बने।" संत पापा ने कहा कि यदि हम सुसमाचार को जीने में किसी तरह का समझौता करते हैं तब हम दुनियादारी की भावना में बहक जायेंगे जो दूसरों पर शासन करने के लिए प्रेरित करता है और जो ईश्वर का विरोधी है जबकि दूसरी ओर येसु सेवा के रास्ते पर बढ़ने का निमंत्रण देते हैं।  

येसु जानते थे कि शिष्य महत्वाकांक्षा के कारण विवाद कर रहे थे कि उनके बीच कौन सबसे बड़ा है। संत पापा ने कहा कि बड़ा होने का यही मनोभाव दुनियादारी का मनोभाव है।

पहला पाठ जिसको संत याकूब के पत्र से लिया गया है संत पापा ने गौर किया कि दुनिया से प्रेम करने का अर्थ है ईश्वर से शत्रुता रखना। येसु कहते हैं या तो तुम मेरे साथ हो अथवा मेरे विरूद्ध हो। सुसमाचार में कोई संझौता नहीं हैं जो समझौता करते हैं वे अपने आपको दुनियादारी मनोभाव में पाते हैं।

ईर्ष्या ˸ एक कीड़ा है जो दूसरों को नष्ट करने के लिए दबाव डालता

संत पापा ने कहा, "युद्ध और झगड़े अधिकतर दुनियादारी की अभिलाषा और अत्याधिक उत्साह से उत्पन्न होते हैं।" उन्होंने कहा कि यह सही बात है कि दुनिया में आज कई युद्ध चल रहे हैं किन्तु हमारे बीच जो झगड़े हो रहे हैं उसका क्या मतलब है जैसे शिष्य आपस में झगड़ रहे थे? संत पापा ने कहा कि जो लोग दुनियादारी से संक्रमित हैं वे हमेशा ऊंचे पदों एवं ख्याति प्राप्त करने के लिए मेहनत करते हैं। यह दुनियादारी की भावना है जो ख्रीस्तीय मनोभाव के अनुकूल नहीं है। दुनियादारी में फंसे लोग कहते हैं कि अभी मेरी बारी है, मुझे अधिक पैसा और अधिक शक्ति प्राप्त करना है। संत पापा ने कहा कि यह दुनियादारी की भावना है और वहीं गपशप होने लगती है। यह कहाँ से आती है? यह ईर्ष्या से आती है। सबसे बढ़ा ईर्ष्यालु है शैतान। हम इसे जानते हैं क्योंकि बाईबिल में इसके बारे बतलाया गया है। शैतान के ईर्ष्या के कारण दुनिया में बुराई का प्रवेश हुआ। ईर्ष्या एक कीड़ा है जो गपशप करने के द्वारा दूसरों का विनाश करने के लिए दबाव डालता है।

कलीसिया में महानता सेवा द्वारा

कलीसिया में कौन सबसे महत्वपूर्ण है? पोप, धर्माध्यक्ष, मोनसिन्योर, कार्डिनल, बड़ी पल्लियों के पल्ली पुरोहित अथवा लोकधर्मी संगठनों के अध्यक्ष? उन्होंने कहा कि कलीसिया में सबसे बड़ा वही है जो अपने आपको सभी का सेवक बनाता है, न कि पदवी है। इसको समझाने के लिए येसु एक बालक को उनको सामने खड़ा कर, उसका आलिंगन करते और कहते हैं, जो इन नन्हों में से किसी एक का स्वागत करता है वह मेरा स्वागत करता है। संत पापा ने कहा कि इसका अर्थ है दीन लोगों का स्वागत करना जो सबसे अधिक सेवा करते हैं। दुनियादारी के खिलाफ यही एक भावना है, दीनता एवं दूसरों की सेवा करने का मनोभाव, अंतिम स्थान चुनने और ऊपर नहीं चढ़ने का मनोभाव।  

संत पापा ने सभी विश्वासियों को येसु के उन शब्दों पर ध्यान देने हेतु प्रेरित किया जिसमें वे विनम्र बनने का प्रोत्साहन देते हैं, "जो पहला होना चाहे, वह सबसे पिछला और सबका सेवक बने।"

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

25 February 2020, 16:57
सभी को पढ़ें >