ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा फ्राँसिस ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा फ्राँसिस  (ANSA)

ईश्वर हमसे एक खुला हृदय की मांग करते हैं जो दया से पूर्ण हो

वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने विश्वासियों को निमंत्रण दिया कि वे मुक्ति की कृपा को न भूलें जो हृदय को ईमानदार एवं करुणा से पूर्ण बनाता है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 18 फरवरी 2020 (रेई)˸ संत पापा ने प्रवचन में कहा कि "कठोर हृदय को चंगा करने की दवाई है स्मृति।"

प्रवचन में संत पापा फ्राँसिस ने संत मारकुस रचित सुसमाचार पाठ (मार. 8: 14-21) पर चिंतन किया जहाँ येसु अपने शिष्यों को समझाते हैं जो रोटियाँ लेना भूल गये थे, और नाव में उनके पास एक ही रोटी थी। वे आपस में विवाद कर रहे थे क्योंकि उनके पास पर्याप्त रोटी नहीं थी। येसु इस बात को जानकर उन्हें चेतावनी देते हैं, ''तुम लोग यह क्यों सोचते हो कि हमारे पास रोटियाँ नहीं है, इसलिए वे ऐसा कहते हैं? क्या तुम अब तक नहीं जान सके हो? नहीं समझ गये हो? क्या तुम्हारी बुद्धि मारी गयी है? क्या आँखें रहते भी तुम देखते नहीं? और कान रहते भी तुम सुनते नहीं? क्या तुम्हें याद नहीं है-जब मैंने उन पाँच हजार लोगों के लिए पाँच रोटियाँ तोड़ीं, तो तुमने टुकड़ों के कितने टोकरे भरे थे?'' शिष्यों ने उत्तर दिया, ''बारह''। ''और जब मैंने चार हजार लोगों के लिए सात रोटियाँ तोड़ीं, तो तुमने टुकड़ों के कितने टोकरे भरे थे?'

करुणा की कमी होने पर, मूर्तिपूजा एवं विचारधारा का प्रवेश

संत पापा फ्राँसिस ने शिष्यों के समान कठोर हृदय एवं प्रभु के समान करुणावान हृदय के बीच अंतर स्पष्ट किया। उन्होंने कहा, "प्रभु हमारे हृदय में दया का भाव चाहते हैं।" ‘मैं बलिदान नहीं बल्कि दया चाहता हूँ’।" संत पापा ने कहा कि जिस हृदय में दया का अभाव होता, तो वह मूर्तिपूजक हृदय है। एक आत्मनिर्भर हृदय अपने स्वार्थ में निरंतर आगे बढ़ता जाता और केवल विचारधाराओं में मजबूत होता है।

येसु के समय में विचारधारा को मानने वाले चार दलों (फरीसी, सदुकी, एस्सैन, जीलोट)  के बारे बतलाते हुए संत पापा ने कहा कि उन्होंने अपना हृदय कठोर कर लिया था ताकि उस योजना को बढ़ा सकें जो ईश्वर की नहीं थी क्योंकि उसमें दया के लिए कोई स्थान नहीं था।  

येसु कठोर हृदय के लिए एक तमाचा

संत पापा ने बतलाया कि कठोर हृदय को चंगा करने के लिए एक दवाई है स्मृति। यही कारण है कि आज के सुसमाचार पाठ में और सुसमाचार के कई अन्य पाठों में, स्मृति की मुक्तिदायी शक्ति की आवश्यकता बतलायी गयी है। हमें इस कृपा की याचना करनी है क्योंकि यह हमारे हृदय को खुला एवं निष्ठावान बनाता है।   

जब हृदय कठोर हो जाता है व्यक्ति मुक्ति की कृपा एवं मुफ्त वरदान को भूल जाता है। एक कठोर हृदय के कारण झगड़ा, युद्ध, स्वार्थ और भाई-बहन का संबंध नष्ट हो जाता है क्योंकि इसमें दया का अभाव है। संत पापा ने कहा कि मुक्ति का सबसे बड़ा संदेश है कि ईश्वर ने हम पर दया की है। सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि येसु लोगों को देखकर तरस खाये अथवा दुःखद परिस्थिति पर सहानुभूति प्रकट किये। येसु सभी कठोर हृदय वाले लोगों के लिए तमाचा हैं।  

एक खुला हृदय

संत पापा ने विश्वासियों को सलाह दी कि हम ऐसे हृदय को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करें जो कठोरता एवं विचारधारा से मुक्त हो बल्कि दुनिया की परिस्थिति के प्रति खुला एवं सहानुभूतिपूर्ण हो। इसी के आधार पर हमारा न्याय किया जाएगा न कि विचारों एवं विचारधारा के आधार पर।   

संत पापा ने कहा कि सुसमाचार में लिखा है, "मैं भूखा था और तुमने मुझे खिलाया, मैं कैदी था और तुम मुझसे मिलने आये, मैं पीड़ित था और तुमने मुझे सांत्वना दी।" यह दिल की कठोरता नहीं है बल्कि विनम्रता है। हमारे उद्गम एवं हमारी मुक्ति की याद हमें उस रास्ते पर चलने में मदद देती है।  

संत पापा ने कहा, "हम सभी में कुछ न कुछ कारण है जो हमारे हृदय को कठोर बनाता है।" उन्होंने प्रार्थना करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि प्रभु ही हमें धर्मी और उदार हृदय प्रदान करते हैं जिसमें वे निवास करते हैं। प्रभु कठोर एवं विचारधारा के हृदय में प्रवेश नहीं करते। वे केवल उन हृदयों में प्रवेश करते हैं जो उनके समान, दयालु और खुले हैं। प्रभु हमें उदार और खुला हृदय प्राप्त करने की कृपा दे।  

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18 February 2020, 17:06
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