उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
संत पापा ने प्रवचन में पुराने व्यस्थान से नबी योना के ग्रंथ से लिए गये पाठ पर चिंतन किया, जिसमें ईश्वर और नबी योना के बीच संघर्षपूर्ण संबंध को दर्शाया गया है। ईश्वर नबी योना को निनीवे शहर भेजना चाहते थे ताकि वे वहाँ के लोगों को पश्चाताप का उपदेश दें किन्तु योना ईश्वर की आज्ञा का पालन नहीं करता और प्रभु से दूर भागने की कोशिश करता है क्योंकि यह कार्य उसके लिए बहुत कठिन था। वह एक नाव पर सवार होकर जाने लगता है किन्तु तुफान आने पर उसे समुद्र में फेंक दिया जाता है। वह समुद्र में डूबने से बच जाता है क्योंकि एक मछली उसे निगल जाती और तीन दिनों बाद तट पर उगल देती है। संत पापा ने कहा कि येसु भी उसी तरह तीन दिनों तक कब्र में रहने के बाद जी उठें।
पश्चाताप और ईश्वर का मन-परिवर्तन
योना को ईश्वर दूसरी बार बुलाते हैं और इस बार योना उनकी आज्ञा का पालन करता है। वह निनीवे जाता और लोगों को ईश्वर के वचन पर विश्वास करने एवं मन-परिवर्तन कर, ईश्वर की ओर लौटने का उपदेश देता है, अन्यथा शहर का विनाश हो जाएगा। संत पापा ने कहा कि इस बार हठी योना ने अपने कर्तव्य को अच्छी तरह पूरा किया।
ईश्वर की दया पर योना का रूठना
संत पापा ने कहा कि उपदेश सुनकर लोग मन-परिवर्तन करने लगे, जिसके कारण ईश्वर ने शहर को नष्ट करने का विचार छोड़ दिया। कहानी का अंत कल के पाठ में है जिसमें दिखलाया गया है कि योना ईश्वर की दयालुता पर नराजगी दिखलाता है क्योंकि उन्होंने अपनी चेतावनी के ठीक विपरीत काम किया।
योना ने प्रभु से कहा, "प्रभु, अब तू मुझे उठा ले जीवित रहने की अपेक्षा मेरे लिए मर जाना ही अच्छा है।" "मैं जानता हूँ कि तू दयालु और करुणामय ईश्वर है देर से क्रोध करने वाला, करुणा का धनी और दण्ड देने को अनिच्छुक।"
ऐसा कहते हुए योना नगर से निकल गया और अपने लिए एक छप्पर बनाया एवं यह देखने के लिए कि उस नगर का क्या होगा छाया में बैठ गया। तब प्रभु ने एक कुँदरू लता उगायी। वह योना के ऊपर छाया देने लगी योना का अच्छा लगा किन्तु दूसरे ही दिन कीड़ा लगा और लता तुरन्त सूख गयी।
लता के सूख जाने पर योना बेहोश होने लगा। वह उदास होकर फिर मरने की इच्छा प्रकट करने लगा। तब प्रभु ने योना से कहा, "क्या कुंदरू लता के कारण तुम्हारा क्रोध उचित है? तुम उस लता की चिंता करते हो। जिसके लिए तुमने कोई परिश्रम नहीं किया। तुमने उसे नहीं उगाया। वह एक रात में उगकर नष्ट हो गयी। तो क्या मैं इस महान नगर निनीवे की चिंता न करूँ?
संत पापा ने इस घटना में दो लोगों की दृढ़ता को देखा। योना एक ओर अपने विश्वास में दृढ़ बना रहता है वहीं ईश्वर अपनी दया में दृढ़ बने रहते हैं। वे हमें नहीं छोड़ते, वे अंत तक हमारा द्वार खटखटाते हैं।
योना हठी था क्योंकि वह अपने विश्वास में शर्त रखता है। वह उन ख्रीस्तियों का उदाहरण है जो हमेशा शर्त रखते हैं। वे बहाना बनाते हैं कि यह परिवर्तन उनके लिए नहीं हैं। संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय वे हैं जो ईश्वर, विश्वास और ईश्वर के कार्यों पर भरोसा करते हैं।
शर्त लगाने वाले ख्रीस्तीय बढ़ने से डरते हैं
संत पापा ने इस बात पर जोर दिया कि शर्त कई लोगों को अपने ही विचारों में ताला लगा देती है और वे विश्वास के बदले अपने विचारधारा के गलत रास्ते पर चलते हैं। उन्होंने कहा कि वे बढ़ने से डरते हैं। जीवन की चुनौतियों, प्रभु की चुनौतियों एवं इतिहास की चुनौतियों से दूर भागते एवं अपने ही विचारधाराओं में बंद रहते हैं। वे समुदाय से दूर रहते, अपने आपको ईश्वर के हाथों समर्पित करने से भय खाते और अपने हृदय की क्षुद्रता के कारण हर चीज का न्याय करते हैं।
संत पापा ने कहा कि योना आज की कलीसिया की दो छवियों को प्रस्तुत करता है। पहली जो अपनी ही विचाराधाराओं में दबी रहती है और दूसरी, जिसमें प्रभु उसकी हर परिस्थिति तक पहुँचते हैं। हमारे पाप उन्हें अपमानित नहीं करते। वे कोढ़ी और बीमार व्यक्ति के पास पहुँचकर उन्हें अपना स्नेह प्रदान करते हैं क्योंकि वे उन्हें दण्ड देने नहीं बल्कि चंगा करने और बचाने आये।