संत मर्था में ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा संत मर्था में ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा  (ANSA)

ख्रीस्तीय आशा वायु के समान, संत पापा

आशा के व्यक्ति होने के लिए हमें किसी चीज से आसक्त नहीं होना बल्कि प्रभु से मुलाकात हेतु खिंचाव के साथ जीना है। यदि हम इस भावना को खो देते हैं तो जीवन स्थिर और अचल हो जाता है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019 (रेई)˸ ख्रीस्तयाग के दौरान ख्रीस्तीय आशा पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा कि आशा समुद्र के दूसरे तट पर लंगर डालने के समान है। इस प्रतीक की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए संत पापा ने विश्वासियों को प्रभु से मुलाकात की ओर खिंचाव के साथ जीवन जीने का प्रोत्साहन दिया। अन्यथा हम भ्रष्टाचार में फंस जायेंगे और ख्रीस्तीय जीवन दर्शनशास्त्रीय सिद्धांत बनने के जोखिम में पड़ जायेगा।  

प्रवचन में संत पापा ने रोमियों के नाम लिखे संत पौलस के पत्र पर चिंतन किया जिसमें संत पौलुस आशा का गीत सुनाते हैं। संत पापा ने कहा, "निश्चय ही कुछ रोमी शिकायत करने आये होंगे जिन्हें संत पौलुस आगे देखने के लिए प्रोत्साहित किये। उन्होंने कहा, "मैं समझता हूँ कि हम में जो महिमा प्रकट होने को है, उसकी तुलना में इस समय का दुःख नगण्य है; क्योंकि समस्त सृष्टि उत्कण्ठा से उस दिन की प्रतीक्षा कर रही है, जब सब ईश्वर के पुत्र प्रकट हो जायेंगे।"

संत पापा ने कहा कि आशा यही है, प्रभु के प्रकट होने की ओर अभिमुख होकर जीना, उनसे मुलाकात की ओर खिंचाव होना। आप कष्ट और पीड़ाएँ सह रहे होंगे किन्तु आने वाले कल में सुरक्षा की प्रतिज्ञा है जो पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा है। वे हमारा इंतजार करते एवं अभी से हमारे लिए कार्य करना शुरू कर चुके हैं। आशा वास्तव में समुद्र के दूसरे तट पर लंगर डालने के समान है और रस्सी के सहारे दृढ़ बने रहना है। न केवल हम बल्कि समस्त सृष्टि आशा में मुक्त कर दी जायेगी और ईश्वर की संतान की महिमा में प्रवेश करेगी। "सृष्टि ही नहीं, हम भी भीतर-ही-भीतर कराहते हैं।"

आशा का अर्थ 

आशा का अर्थ खिंचाव या तनाव में जीना है, यह जानते हुए कि हम यहाँ आश्रय नहीं बना सकते। एक ख्रीस्तीय का जीवन यात्रा का जीवन है जो लगातार आगे बढ़ रहा है यदि वह अपना दृष्टिकोण खो देता है तब उसका जीवन स्थिर हो जाता है और चीजें अचल होकर निष्क्रिय हो जाते हैं।

हम जल की कल्पना करें, जब यह स्थिर रहता, नहीं बहता और आगे नहीं बढ़ता है तब यह दूषित हो जाता है। ख्रीस्तीय जो दूसरों की पहुँच से बाहर होते हैं, तनाव में नहीं जीते हैं तो वे कुछ खो देते हैं वे अंत में गतिहीन हो जाते हैं। उसके लिए ख्रीस्तीय जीवन एक दर्शनशास्त्रीय सिद्धांत मात्र है। वे उसे उसी तरह जीयेगे और कहेंगे कि विश्वास है किन्तु आशा के बिना नहीं है।

आशा येसु में बने रहना

तब संत पापा ने गौर किया कि आशा को समझना कितना कठिन है। उन्होंने कहा कि यदि हम विश्वास की बात करते हैं तो यह ईश्वर पर हमारा विश्वास है जिन्होंने हमारी सृष्टि की है। येसु पर विश्वास जिन्होंने हमारी मुक्ति की है और प्रेरितों के धर्मसार की विन्ती एवं विश्वास की ठोस बातों को जानना है। यदि हम प्रेम की बात करें तो यह हमारे पड़ोसियों की भलाई करने से संबंधित है किन्तु आशा को समझना कठिन है। यह सबसे दीन सदगुण है जो केवल गरीब लोगों के पास हो सकता है।  

यदि हम विश्वास के व्यक्ति बनना चाहते हैं तब हमें गरीब और खुला बनना होगा और किसी चीज से आसक्त नहीं होना होगा। आशा विनम्र होता है। यह एक ऐसा सदगुण है जिसको प्राप्त करने के लिए हमें प्रतिदिन मेहनत करनी पड़ती है। पीछे लौटकर देखना पड़ता है कि क्या लंगर सही तरीके से बंधा हुआ है और क्या मैं मजबूती से पकड़ा हुआ हूँ। हमें रोज दिन याद करना है कि हमारी एक सुरक्षा है पवित्र आत्मा जो हममें छोटी छोटी चीजों के द्वारा कार्य करता है।

आशा राई के दाने स्वरुप 

आशा में किस तरह जीना है उसको स्पष्ट करने के लिए संत पापा ने सुसमाचार पाठ में येसु की शिक्षा का संदर्भ लिया। जहाँ येसु ईश्वर के राज्य की तुलना राई के दाने से करते हैं जिसे बोया जाता है। उसके बाद उसके बढ़ने का इंतजार किया जाता है। हम पौधे को हर रोज देखने नहीं जाते फिर भी वह बढ़ता है अर्थात् आशा में धीरज रखने की आवश्यकता है। हम जानते है कि हमने बो दिया है किन्तु ईश्वर उसे बढ़ाते हैं। आशा को समझने के लिए हम येसु द्वारा बतलाये गये खमीर के दृष्टांत को ले सकते हैं। एक महिला उसे लेकर तीन पसेरी आंटे में मिलाती है। खमीर को फ्रीज में नहीं रखा जाता बल्कि गूँथा जाता है, ठीक उसी तरह जिस तरह कि बीज जमीन के अंदर दफना दिया जाता है।  

आशा हमें निराश नहीं     

यही कारण है कि आशा का सदगुण दिखाई नहीं पड़ता। यह अंदर से कार्य करता है और हमें आगे बढ़ाता। आशा में जीना आसान नहीं है लेकिन यह एक हवा के समान है जिसको ख्रीस्तीय सांस लेते हैं। दूसरी ओर आशा के बिना हम नहीं चल सकते क्योंकि हम नहीं जानते कि किधर बढ़ना है। आशा सच्ची है यह हमें सुरक्षा प्रदान करती है। यह निराश नहीं करती। यदि हम आशा करते हैं तो हम कभी निराश नहीं होंगे। हम प्रभु की प्रतिज्ञा के लिए अपने आप को खोलें, उस प्रतिज्ञा को जानें किन्तु हम यह भी जाने कि हममें पवित्र आत्मा है जो सदा कार्य करता है।  

संत पापा ने प्रार्थना की कि प्रभु हमें खिंचाव में जीने की कृपा दे, एक तनाव में जो नस की समस्या नहीं है बल्कि पवित्र आत्मा का खिंचाव है जो हमें दूसरे तट की ओर ले चलता है और आशा में बनाये रखता है।  

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29 October 2019, 17:25
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