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संत मर्था में ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा संत मर्था में ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा  (ANSA)

धर्माध्यक्ष अपने पुरोहितों के निकट रहें, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने संत मार्था के प्रार्थनालय में शुक्रवार को मिस्सा बलिदान अर्पित करते हुए प्रवचन में धर्माध्यक्षों के लिए प्रार्थना का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 20 सितम्बर 2019 (रेई) संत पापा ने अपने प्रवचन में कहा कि धर्माध्यक्षगण अपनी प्रार्थनाओं के माध्यम से ईश्वर, अपने पुरोहितों और लोकधर्मियों के निकट रहते हैं। उनके ये वचन संत पौलुस द्वारा तिमथी को लिखे गये द्वितीय पत्र से लिए गये थे जो कल और आज के दैनिक पाठों की विषयवस्तु थी।

उन्होंने कहा कि कल के पाठ में धर्माध्यक्ष के उत्तरदायित्व को “प्रेरिताई एक उपहार” स्वरुप निरूपित किया गया। वहीं आज के पाठों में धन, परनिन्दा, अर्थहीन विवाद के बारे में जिक्र किया गया है जो एक धर्माध्यक्ष के उत्तरदायित्व को कमजोर बना देता है। पहले पाठ के संदर्भ में जहाँ धन को सभी बुराइयों की जड़ कहा गया है संत पापा ने कहा, “जब कोई पुरोहित, उपयाजक, धर्माध्यक्ष धन के प्रति असक्त हो जाता है तो वह अपने को सभी प्रकार की बुराइयों से घिरा हुआ पाता है।” (1तिमथी.6.2-12) उन्होंने कहा, “हमारे समय की बुजूर्ग महिलाएं कहती थीं, “शैतान थैली के माध्यम से हमारे जीवन में प्रवेश करता है।”

चार निकटता

संत पौलुस के द्वारा तिमथी को दिये गये सुझाव पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा कि वास्तव में सभी धर्माध्यक्षों, पुरोहितों और उपयाजकों को एक-दूसरे के निकट रहने की जरुरत है। इस संदर्भ में संत पापा ने चार तरह की निकटता का जिक्र किया। पहला, धर्माध्यक्ष को “ईश्वर के निकट रहने की जरुरत” है। उन्होंने इस बात की याद दिलाते हुए कहा कि विधवाओं और अनाथों की सेवा हेतु “डीकनों” (उपयाजकों) को नियुक्त किया गया। “धर्माध्यक्षों का प्रथम कार्य”  प्रार्थना करना है जहाँ उन्हें “शक्ति”  मिलती है जिसके फलस्वरुप वे अपने प्रेरिताई के उत्तरदायित्व को समझते और उसे पूरा करने में सक्षम होते हैं।

पुरोहितगण धर्माध्यक्षों के निकटतम पड़ोसी

धर्माध्यक्षों के लिए दूसरी निकटता अपने पुरोहितों, उपयाजकों और सहयोगियों के साथ करना है जो उनके निकटतम पड़ोसी हैं। संत पापा ने कहा, “आप अपने निकटतम पड़ोसी को पहले प्रेम करें जो कि आप के पुरोहित और उपयाजकगण हैं।”

इस बात पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि जब धर्माध्यगण अपने पुरोहितों को भूल जाते हैं तो अपने में बुरा लगता है। हमने बहुत बार पुरोहितों को इस बात की टिप्पणी करते हुए सुना है, “मैंने धर्माध्यक्ष से मिलने हेतु कुछ समय की मांग की लेकिन सचिव ने मुझ से कहा कि तीन महीने तक उनके क्रार्यक्रम पूरी तरह निर्धारित कर लिया गया है...।” एक धर्माध्यक्ष  जो अपने पुरोहित के निकट रहता है उसे मिलने हेतु समय देता है क्योंकि वह जानता है कि वह उसके लिए पितातुल्य है। अपने पुरोहितों के निकट कहना और पुरोहितों के एक-दूसरे के निकट रहना उनके बीच विभाजन नहीं लाता है। उसी विभाजन के द्वारा शैतान हमारे बीच प्रवेश करता और हमें विभाजित कर देता है।

वास्तव में, संत पापा ने कहा कि छोटे समुदाय में विचारों और सहानुभूति की कमी के कारण विभाजन की शुरूआत होती है। अतः तीसरी निकटता पुरोहितों को एक-दूसरे के निकट रहने का जरुरत है। वहीं चौथी निकटता हमें ईश प्रजा  के करीब रहने की मांग करता है।

अपनों से जुड़े रहें

संत पौलुस का तिमथी के नाम दूसरा पत्र उनसे अपनी माता और नानी के निकट रहने का आहृवान करता है अर्थात् हम अपने में इस बात को न भूले कि हम कहाँ से आते हैं। हम अपने लोगों को न भूलें। हम अपनी जड़ों से अलग न हों। धर्माध्यक्षों और पुरोहितों के रुप में हम सदा लोकधर्मियों से संयुक्त रहें। जब एक धर्माध्यक्ष अपने लोगों से दूर हो जाता तो वह विचारधाराओं का शिकार हो जाता जो उसके उत्तरदायित्व के निर्वाहन में सहायक नहीं होते हैं। वह अधिकारी नहीं वरन एक सेवक है। वह उदारता में मिले अपने उपहार को भूल जाता है।

अपने प्रवचन के अंत में संत पापा ने कहा कि हम अपने “चार निकटता” को न भूलें। उन्होंने इस बात पर भी बल देते हुए कहा कि आप अपने धर्माध्यक्षों और पुरोहितों के लिए प्रार्थना करें। “क्या हम उनके लिए प्रार्थना करते या सिर्फ उनकी शिकायतें करते हैंॽ” हम उनके लिए प्रार्थना करें कि वे अपने उपहार को न भूलें, जिससे कि वे हमारे अगुवे के रुप में हमें मुक्ति के मार्ग में ले चलें।

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20 September 2019, 13:55
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