संत मार्था में संत पापा का ख्रीस्तयाग संत मार्था में संत पापा का ख्रीस्तयाग  (ANSA)

पौलुस मन से कठोर हृदय से नहीं

संत पापा फ्रांसिस ने वाटिकन के संत मार्था अपने प्रार्थनालय में प्रातकालीन मिस्सा बलिदान के दौरान कोत्तेलेंगो की धर्मबहनों और इरिट्रिया के पुरोहितों को संत पौलुस के मनपरिवर्तन पर चिंतन करते हुए हृदय खुला रखने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी,10 शुक्रवार 2019 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने मिस्सा बलिदान के प्रवचन में कहा कि दमिश्क की राह में संत पौलुस के मनपरिवर्तन द्वारा ईश्वर अपने मुक्ति योजना के द्वारा को सारी मानव जाति के लिए खोलते हैं।

उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि गैर-ख्रीस्तियों के बीच सुसमाचार के प्रेरित संत पौलुस तीन दिनों तक दमिश्क में बिना भोजन और पानी के पड़ा रहा, जब तक ईश्वर अनानीयस नामक व्यक्ति को भेज कर उसे पुनः देखना की कृपा प्रदान नहीं करते हैं। यह उनके जीवन में एक नई शुरूआत लाती और वह “पवित्र आत्मा के वशीभूत” सुसमाचार का प्रचारक बन जाता है।

स्थिरता और नम्रता

पौलुस अपने में “एक शक्तिशाली” और “ईश्वर के नियमों को शुद्धता में पालन” करने वाला व्यक्ति था। अपने में “मिजाजी” होने के बावजूद वह “ईमानदार” और “सुसंगत” व्यक्तिक्त पुरूष था।

ईश्वर के प्रति खुले हृदय व्यक्ति होने के फलस्वरुप वह अपने में दृढ़ स्वभावी था। यदि वह ख्रीस्तियों को सताता था तो इसका कारण यही थी कि वह बात से आश्वस्त थी कि ईश्वर ऐसा चाहते हैं। उसके हृदय में ईश्वर के प्रति उत्साह भरी हुई थी, वह ईश्वर की महिमा करने को अतुर था। उसका हृदय ईश्वर की वाणी हेतु खुला था। इस तरह वह जोखिम उठाता और आगे बढ़ता जाता है। उनके स्वभाव की दूसरी बात यह थी कि वह अपने में हठी नहीं वरन नम्र व्यक्ति था।

जिद्दी लेकिन हृदय से नहीं

संत पापा ने कहा कि हम कह सकते हैं कि वह अपने स्वभाव में जिद्दी था लेकिन हृदय से नहीं। वह ईश्वर के निर्देशों हेतु खुला हुआ था। वह ख्रीस्तियों को जेल में बंद करता और मार डालता था लेकिन “ईश्वर की वाणी को सुनने के बाद वह एक बालक की भांति बन जाता और अपने को ईश्वर द्वारा संचालित होने देता है”।

अंधे व्यक्ति के रुप में वह अपने को येरुसलेम ले जाने देता और तीन दिनों तक उपवास करते हुए ईश्वरीय वाणी की प्रतीक्षा करता है। “प्रभु, मुझे क्या करना चाहिए”ॽ वह दमिश्क में एक बच्चे की भांति धर्मशिक्षा ग्रहण करता और बपतिस्मा संस्कार ग्रहण करता है। वह भला चंगा होता लेकिन अपने में चुपचाप रहता है। उसमें नम्रता है जिसके कारण वह ईश्वरीय वाणी हेतु खुला है। यह हमारे लिए एक उदाहरण है आप धर्मबहनों के लिए जो अपने संस्थान की 50वीं सालगिरह मना रहे हैं। ईश्वर के वचनों को सुनने और आप की नम्रता हेतु धन्यवाद।

संत पापा ने कहा,“कोत्तेलेंगो की नारियों की नम्रता” संत फ्रांसिस की याद दिलाती है जहाँ उन्होंने 70वीं सदी में पहली यात्रा की थी। कोत्तेलेंगो के संत जोसेफ बेन्देतो की आध्यात्मिकता विश्व भर के मानसिक और शारीरिक रुप से असक्षम और बीमार लोगों का स्वागत करती है। वे एक धर्मबहन के निर्देशानुसार एक कमरे से दूसरे कमरे का दौरा करती और पीड़ितों और समाज से परित्यक्त लोगों की सेवा करती हैं। दृढ़ता और विनम्रता के बिना यह संभंव नहीं है।  

ख्रीस्तीय मनोभाव

संत पापा ने कहा कि दृढ़ता ख्रीस्तीय मनोभव है। उन्होंने कोत्तेलेंगो की धर्मबहनों और इरिट्रिया, इटली में सेवा के कार्य में संलग्न पुरोहितों हेतु कृतज्ञता के भाव व्यक्त किये जो अपनी जीवन को जोखिम में डालते हुए अपने प्रेरिताई कार्यों को पूरा करते औऱ नये मार्ग की खोज करते हैं। “लेकिन नये मार्गों की खोज करनी पाप नहीं हैं”ॽ संत पापा कहा, “नहीं, यह पाप नहीं है, क्योंकि इसके द्वारा हम दूसरों की भलाई करते हैं”। आप अपनी प्रार्थना की गहराई, नम्रता और ईश्वर के प्रति अपना हृदय खुला रखते हुए आगे बढ़ें। हमारे द्वारा किये जाने वाला छोटा और बड़ा कार्य कलीसिया में परिवर्तन लायेगा।

अपने प्रवचन के अंत में संत पापा ने संत पौलुस को समर्पित प्रार्थना करते हुए सभों का आहृवान करते हुए कहा, “ख्रीस्तियों के रुप में हमें अपने में छोटे और बड़े मनोभावों को धारण करने की जरुरत है।” हम नम्रता की कृपा मांगते हुए अपने हृदय को ईश्वर की वाणी हेतु खुला रखें और अच्छे कार्यों को करने में भयभीत न हों। हम अपनी नम्रता में छोटी चीजों की भी देखरेख करें।

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10 May 2019, 16:47
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