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संत पापा वाटिकन के प्रार्थनालय में संत पापा वाटिकन के प्रार्थनालय में  (Vatican Media)

संस्कारों की मूल्य सूची नहीं होती

संत पापा फ्रांसिस ने वाटिकन के प्रार्थनालय संत मार्था में प्रातःकालीन ख्रीस्ताय के दौरान सुसमाचार में “मंदिर के शुद्धिकरण” के संदर्भ में गिरजाघरों के प्रति “उत्साह और श्रद्धा” को बनाये रखने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा ने कहा कि “ईश्वर का घर” कोई बाजार या सामाजिक सैलून नहीं जो दुनियादारी से भरा हो। येसु ख्रीस्त अपने पिता के प्रेम से प्रेरित हो कर मंदिर की सफाई “उत्साह” में करते हैं जो कि एक खरीद-बिक्री का स्थल बन गया था।

मूर्तिपूजा की गुलामी

येसु मंदिर में प्रवेश करते हैं जहाँ “बैल, भेड़-बकरी औऱ कबूतर” की बिक्री हो रही थी। पैसा लेन-देन करने वालों की उपस्थिति उन्हें इस बात का अभास दिलाती है कि प्रार्थना का स्थल, ईश्वर की आराधना करने के बदले लूटेरों का अड्डा बन गया है। संत पापा ने कहा, “पैसा के पीछे हम मूर्ति पूजा को पाते हैं जो सदैव सुनहले होते हैं। ये मूर्तिपूजा हमें गुलाम बनाती है।”   

यह हमें आकर्षित करती है और इसके द्वारा हम अपने में इस बात पर विचार कर सकते हैं कि ईश्वर के निवास स्थल, मंदिर के बारे में हमारी सोज किस प्रकार की है। क्या हम वास्तव में ईश्वर के घर, प्रार्थना के स्थल, ईश्वर से मिलने हेतु आते हैं। क्या हमारे गिरजाघर बाजार के रुप में दिखलाई देते हैं। संत पापा ने कहा कि रोम में और अन्य स्थानों पर भी मैंने दाम की सूची देखी है। “संस्कारों का मूल्य हम कैसे ले सकते हैंॽ हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि यह एक उपहार है।” उन्होंने कहा कि यदि कोई दान देने की चाह रखता हो तो वह उसे दान पेट्टी में गुप्त रुप से दे सकता है जिसे कोई नहीं देखता कि आप क्या दे रहे हैं। गिरजाघर को प्रार्थना का स्थल बनाये रखना आज हमारे लिए एक चुनौती है। संत पापा ने इस बात पर जोर देते हुए कहा, “जी हाँ, यह सत्य है।” हमें इसे विश्वासियों के लिए प्रार्थना का स्थल बनाये रखने की जरुरत है न की दान गृह जहाँ हम मूल्य की सूची पाते हैं।  

गिरजागर बाजार न बने

संत पापा फ्रांसिस ने गिरजाघर को दुनियादारी का स्थल बनाने से सचेत किया। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में हम कुछ संस्कारों के अनुष्ठान पर चिंतन कर सकते हैं, शायद सालगिराह। यदि हम इसे देखें तो हमें पता नहीं चलेगा की ईश्वर का निवास प्रार्थना का स्थल है यह कोई सामाजिक सभागार। हमारे कुछ समारोह दुनियादारी की ओर अभिमुख हो गये हैं। उन्होंने कहा कि यह उचित है कि समारोह अपने में सुन्दर हो। लेकिन सुन्दर का अर्थ आधुनिकता नहीं क्योंकि आधुनिकता पैसे पर आधारित है जो अपने में एक मूर्ति पूजा है। यह हमें विचार करने को बाध्य करती है कि गिरजाघर के प्रति हमारा उत्साह कैसा है, हम उसका कितना आदर करते जहाँ हम प्रवेश करते हैं।

हमारा हृदय मंदिर बने

संत पापा ने संत पौलुस द्वारा कुरिथियों को लिखे गये पत्र पर चिंतन करते हुए कहा कि हममें से प्रत्येक का हृदय ईश्वर का निवास स्थल, “एक मंदिर” है। हमें अपने हृदय की थाह लेते हुए अपने आप से यह पूछने की जरुरत है कि क्या यह “दुनियावी और मूर्तिपूजक” हैं। उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं कहता तुम्हारे पाप क्या हैं, हमने क्या पाप किया है। मैं यह पूछता हूँ कि क्या मेरे हृदय के अन्दर कोई मूर्ति तो नहीं है, यह पैसा रुपी कोई मालिक तो नहीं। संत पापा ने कहा क्योंकि पाप की स्थिति में जब हम येसु के पास आते तो वे अपनी करूणा में हमारे पापों को क्षमा करते हैं। लेकिन यदि हमारे हृदय में पैसा का भगवान व्याप्त है तो हम मूर्तिपूजक हैं। यह हमारी भ्रष्टता है, यह हमें पापी केवल नहीं वरन् हम अपने में भ्रष्ट भी बनाता है। हमारी भ्रष्टता हमें मूर्तिपूजक बनाती है जिसके फलस्वरुप हम अपने हृदय को पैसे, शक्ति के लिए बिक्री कर देते हैं।

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09 November 2018, 17:06
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