संत मर्था में ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा संत मर्था में ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा  (Vatican Media)

प्रेम पर टिका होता है सच्चा ख्रीस्तीय जीवन

मर्था और मरियम आज सुसमाचार पाठ के मुख्य पात्र हैं जो हमें प्रेरणा देते हैं कि एक ख्रीस्तीय का जीवन कैसा होना चाहिए। संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित संत मर्था के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए ख्रीस्तीय जीवन पर चिंतन किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 9 अक्टूबर 2018 (रेई)˸ ख्रीस्तीय जीवन से विचलित नहीं होने की कुँजी है "प्रभु से प्रेम" एवं "उनके कार्यों से प्रेरणा लेना"।

गलातियों को लिखे पत्र में संत पौलुस ख्रीस्तीय जीवन के बारे बतलाते हैं कि इस जीवन में मनन-चिंतन एवं सेवा के बीच संतुलन होना चाहिए। ये दोनों सदगुण जिनका जिक्र आज संत लूकस रचित सुसमाचार में किया गया है मर्था एवं मरियम के जीवन में ठोस रूप से प्रकट होते हैं। वे दोनों बेथानिया के लाजरूस की बहनें थीं। उन्होंने अपने घर में अतिथि के रूप में येसु का स्वागत किया।

व्यस्त ख्रीस्तीय, प्रभु की शांति से रहित

संत पापा ने प्रवचन में कहा, "अपने व्यवहार द्वारा ये दोनों बहनें प्रेरणा देती हैं कि हमें ख्रीस्तीय जीवन में किस तरह आगे बढ़ना चाहिए। मरियम प्रभु के वचनों को सुन रही थी जबकि मर्था व्यग्र थी क्योंकि वह सेवा कार्य में व्यस्त थी।" संत पापा ने मर्था को एक दृढ़ नारी की संज्ञा दी जो अपने भाई लाजरूस की मृत्यु के शोक में रहते हुए भी प्रभु को जोर देकर अपनी बातें सुना सकती थी। वह प्रभु के सामने अपने को प्रस्तुत करना जानती थी। यद्यपि वह एक साहसी महिला थी तथापि वह चिंतन नहीं कर सकती थी, न ही प्रभु की ओर नजर डाल सकती थी।

संत पापा ने कहा कि कई ख्रीस्तीय ऐसे हैं जो रविवार को मिस्सा जाते किन्तु हमेशा व्यस्त रहते हैं। उनके पास अपने बच्चों के लिए समय नहीं है वे अपने बच्चों के साथ नहीं खेलते। पिताजी कहता है कि मुझे बहुत कुछ करना है मैं अत्यन्त व्यस्त हूँ। अंत में वह व्यस्तता के भगवान की पूजा करने लग जाता है। वह व्यस्त लोगों के दल में शामिल हो जाता है, जो हमेशा कुछ न कुछ करते रहते हैं... रूकने, प्रभु की ओर दृष्टि लगाने, सुसमाचार का पाठ करने, अपने हृदय में प्रभु की वाणी सुनने के लिए उनके पास समय नहीं होता। संत पापा ने कहा कि अच्छा काम करने के कारण अच्छे इंसान होते हुए भी वे अच्छे ख्रीस्तीय नहीं हैं क्योंकि वे चिंतन नहीं करते। मार्था में भी इसी बात की कमी थी। चूँकि वह साहसी थी हमेशा आगे रहती थी, जिम्मेदारियाँ लेती थी किन्तु उसमें शांति का अभाव था, प्रभु के पास आने के लिए उसके पास समय नहीं था।

मनन-चिंतन करने का अर्थ, खाली रहना नहीं

संत पापा ने कहा कि दूसरी ओर मरियम सभी कामों को छोड़कर येसु के पास बैठती है। वह प्रभु की ओर नजर डालती है क्योंकि प्रभु ने उसके हृदय का स्पर्श किया तथा इसी प्रेरणा से उसके लिए जिम्मेदारी मिली जिसको उसने बाद में पूरा किया।

संत पापा ने कहा कि यही संत बेनेडिक्ट का आदर्श वाक्य है "ओरा एत लाबोरा" प्रार्थना एवं कार्य जिसको मठवासी जीने का प्रयास करते हैं। वे इस जीवन शैली को अपना कर पूरा दिन स्वर्ग की ओर नजर लगाकर ताकते नहीं रहते, बल्कि प्रार्थना और कार्य करते हैं।

संत पापा ने विश्वासियों को चिंतन हेतु प्रेरित करते हुए कहा कि प्रार्थना और सेवा ही हमारे जीवन का रास्ता है। हम प्रत्येक अपने आप पर चिंतन करें कि हरेक दिन कितना समय हम येसु के रहस्य पर चिंतन करते हुए व्यतीत करते हैं। मैं किस तरह कार्य करता हूँ? क्या मैं बहुत अधिक काम करता हूँ जो मेरे विश्वास के विपरीत होता है अथवा क्या मेरा काम मेरे विश्वास के अनुरूप है? सुसमाचार हमें अपने कार्यों को सेवा के मनोभाव से करने हेतु प्रेरित करता है क्योंकि उसी के द्वारा हम सही तरीके से काम कर सकते हैं।

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09 October 2018, 17:36
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