संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  (Vatican Media)

अपने को पापी स्वीकारना येसु को जानने का पहला कदम

अपने आप को पापी स्वीकार करें तथा ख्रीस्त के प्रेम को पहचानें अर्थात् केवल शब्दों से ख्रीस्तीय नहीं बनें। यह अह्वान संत पापा फ्राँसिस ने संत मर्था प्रार्थनालय में बृहस्पतिवार को ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन के दौरान की।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

उन्होंने कहा, यदि हमसे कोई पूछे कि येसु कौन हैं तो हम जवाब देंगे कि वे दुनिया के मुक्तिदाता हैं, ईश्वर के पुत्र हैं आदि जिसको हमने धर्मशिक्षा में सीखा अथवा प्रेरितों के धर्मसार में बोलते हैं। किन्तु येसु मेरे लिए कौन हैं इस सवाल का उत्तर देना जरा कठिन है। यह सवाल परेशान करता है क्योंकि इसका उत्तर देने के लिए मुझे अपने हृदय में झांक कर देखना होगा अर्थात् अपने अनुभवों पर गौर करना होगा। 

संत पौलुस येसु के उस अनुभव को बांटने के लिए व्याकुल थे जहाँ वे घोड़े से गिर पड़े थे जब प्रभु ने उन्हें पुकारा था। वे ईशशास्त्र की पढ़ाई कर ख्रीस्त के बारे नहीं जानते थे फिर भी वे सुसमाचार प्रचार करने निकले। संत पौलुस ने जो आवाज सुनी उसे आज हमें सुनने की आवश्यकता है। पौलुस ने अनुभव किया कि प्रभु उसे प्यार करते हैं तथा उन्होंने उनके लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया है। संत पौलुस चाहते थे कि यही अनुभव एफेसियुस के ख्रीस्तीय करें। 

आज के पहले पाठ में संत पौलुस एफेसियों को लिखे पत्र में कहते हैं, ख्रीस्त के प्रेम में आपकी जड़ें गहरी हों ताकि आप ख्रीस्त के प्रेम की लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई और गहराई को समझ सकें। (एफे 3:14-21), इस प्रकार ईश्वर की पूर्णता तक पहुँच कर आप स्वयं परिपूर्ण हो जायेंगे। संत पापा ने येसु ख्रीस्त को जानने के लिए दो रास्तों को प्रस्तुत किया – अपने आप को जानना कि मैं पापी हूँ। उन्होंने कहा कि अपनी गलतियों को स्वीकार किये बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते। दूसरा है प्रभु से प्रार्थना करना जो येसु के रहस्य को प्रकट करता है कि वे दुनिया में आये।

पापी किन्तु प्रेम के लिए चुने गये 

संत पौलुस के समान अनुभव करना जिसको उन्होंने येसु के साथ अनुभव किया था उसे प्राप्त करने के लिए संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि प्रेरितों के धर्मसार को दोहराने से मदद मिल सकती है किन्तु उससे भी बढ़कर हम अपने को पापी स्वीकार करने के द्वारा येसु को जान सकते हैं। संत पापा ने कहा कि यह पहला कदम है। जब संत पौलुस कहते हैं कि येसु ने अपने आप को मेरे लिए अर्पित किया, इसका अर्थ है उन्होंने कीमत चुकायी। संत पौलुस अपने आपको पापी स्वीकार करते हैं क्योंकि उन्होंने ख्रीस्तियों पर अत्याचार किया था। इस प्रकार पापी होते हुए भी प्रेम किये जाने के एहसास द्वारा उन्होंने नये जीवन की शुरूआत की। ख्रीस्त को जानने का पहला कदम है उनके रहस्य में प्रवेश करना, यह अपने पापों को देख पाना है। 

संत पापा ने कहा कि पापस्वीकार संस्कार में हम अपने को पापी स्वीकार करते हैं। उन्होंने पापों को बतलाने एवं स्वीकार करने में अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि पापों को बतला देना एक बात है जबकि उसे स्वीकार करना अलग है। पापों को स्वीकार करने का अर्थ है कुछ कर पाने की क्षमता। संत पौलुस ने अपनी अकड़ता में इसका अनुभव करते हुए यह महसूस किया था कि उन्हें मुक्त किये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने अनुभव किया था कि ईश्वर का पुत्र कहलाने के लिए, किसी के द्वारा कीमत चुकाये जाने की आवश्यकता है। हम सभी पापी हैं किन्तु उसे महसूस करने के लिए हमें ख्रीस्त के बलिदान में सहभागी होना है।

ख्रीस्त को जानना न कि शब्दों के ख्रीस्तीय बनना

येसु को जानने के लिए एक दूसरा उपाय भी है, हम उन्हें मनन-चिंतन एवं प्रार्थना के द्वारा भी जान सकते हैं। संत पापा ने एक संत की प्रार्थना का उदाहरण दिया जिन्होंने इस प्रकार प्रार्थना की थी, "प्रभु मुझे आपको एवं अपने आपको जानने की कृपा दीजिए"। उन्होंने कहा कि हमें येसु की तीन अथवा चार अच्छाइयों को बोलकर संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए क्योंकि येसु को जानना एक साहसिक कार्य है क्योंकि येसु का प्रेम असीम है। 

संत पौलुस कहते हैं कि हम जितना मांगते हैं उससे कई गुणा अधिक वे हमें प्रदान करते हैं। वे शक्तिशाली हैं किन्तु हमें मांगने की आवश्यकता है, "प्रभु कि मैं आपको जान सकूँ ताकि जब मैं आपके बारे बोलूँ मेरे शब्द तोते के समान रटे-रटाये  न हों, बल्कि अपने अनुभव से बोल सकूँ। जिससे कि मैं भी संत पौलुस के समान दृढ़ता से कह सकूँ, उन्होंने मुझे प्यार किया है तथा अपने आपको मुझे दिया है। यही हमारी शक्ति है, हमारा साक्ष्य।" शब्दों के ख्रीस्तियों के पास भले ही बहुत सारे शब्द हों किन्तु उनमें शुद्धता का अभाव है। शुद्ध होने का अर्थ है ख्रीस्तीय जो जीवन में काम करते तथा येसु द्वारा हृदयों में बोयी गयी शिक्षा पर चलते हैं। 

येसु और अपने आपको जानने के लिए हर दिन प्रार्थना करें

प्रवचन के अंत में, संत पापा ने कहा कि येसु ख्रीस्त को जानने के लिए दो रास्तों को अपनाने की आवश्यकता है–अपने आप को जानना कि मैं पापी हूँ। इस आंतरिक समझ से रहित एवं अपनी गलतियों को स्वीकार किये बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते। दूसरा उपाय है प्रभु से प्रार्थना करना जो अपने सामर्थ्य से येसु के रहस्य को प्रकट करते हैं। येसु एक आग के समान है जो दुनिया में भेजे गये हैं।  

संत पापा ने प्रतिदिन इस प्रकार प्रार्थना करने की सलाह दी, "प्रभु मुझे आपको तथा अपने आपको जानने की कृपा दे।" 

 

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25 October 2018, 17:03
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