प्रवचन देते हुए संत पापा फ्राँसिस प्रवचन देते हुए संत पापा फ्राँसिस  (� Vatican Media)

आरोप लगाये जाने पर भी पुरोहित नम्र, दयालु होता एवं प्रार्थना करता है

येसु को जो अधिकार प्राप्त था वह सिद्धांत की शिक्षा देने का अधिकार नहीं था बल्कि उनकी विनम्रता एवं दीनता थी।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 18 सितम्बर 2018 (रेई)˸ वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में मंगलवार 18 सितम्बर को संत पापा फ्राँसिस ने ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में स्मरण दिलाया कि येसु एक चरवाहे के प्रतीक हैं जो विनम्र एवं दयालु हैं। उसी तरह आज के चरवाहों को भी अपनी प्रजा के करीब होना चाहिए न की एक सत्ताधारी अथवा विचारधारा के व्यक्ति की तरह, जो हमारी आत्मा को विषाक्त कर देता है।

संत पापा ने कहा कि एक चरवाहे के रूप में येसु का अधिकार उनकी विनम्रता, लोगों के करीब रहने तथा उनकी दयालुता से आता है जिसको उन्होंने दीनता एवं कोमलता द्वारा प्रकट किया और जब परिस्थितियाँ प्रतिकूल हो गईं तो वे मौन रहकर प्रार्थना किये।

विधवा के एकलौटे बेटे को जीवन दान

प्रवचन में संत पापा ने संत लूकस रचित सुसमाचार से लिए गये पाठ पर चिंतन किया जहाँ येसु एक विधवा के बेटे को जीवन दान देते हैं। संत पापा ने कहा कि येसु को जो अधिकार प्राप्त था वह सिद्धांत की शिक्षा देने का अधिकार नहीं था बल्कि उनका अधिकार उनकी विनम्रता एवं दीनता में थी। उन्होंने खुद नहीं कहा कि मैं मसीह हूँ अथवा कोई नबी हूँ और न ही किसी को चंगाई प्रदान करने पर उन्होंने किसी तरह का कोई शोर मचाया।

येसु के अधिकार का स्रोत

संत पापा ने कहा कि येसु का अधिकतर समय रास्ते पर ही व्यतीत होता था। वे लोगों से मिलते थे, उनका आलिंगन करते, उन्हें सुनते तथा उनकी आँखों में आँखें मिलाकर उन्हें देखते थे। उन्हें चंगा करते थे। पवित्र आत्मा की कृपा द्वारा वे उनके करीब  जाते। उनकी दीनता और लोगों के प्रति सेवा भावना ही उनके अधिकार का स्रोत था।  

येसु विनम्र थे

संत पापा ने कहा कि येसु ने उन्हीं चीजों की शिक्षा दी जिन्हें दूसरे लोग भी सिखलाते थे किन्तु उनकी शिक्षा देने का तरीका अलग था। येसु विनम्र थे और शोर नहीं मचाते थे। उन्होंने लोगों को सजा नहीं दिया। उन्होंने इस बात का शोर कभी नहीं मचाया कि वे एक मसीह अथवा नबी थे। सुसमाचार में जब येसु लोगों के साथ थे तब भी वे पिता के साथ प्रार्थना द्वारा जुड़े थे। पिता के प्रति उनकी नम्रता उस समय विशेष रूप से प्रकट हुई जब वे अपने पिता के घर गये और उन्होंने उसे बाजार के रूप में पाया। वे उन लोगों पर क्रुद्ध हो गये और उन्हें वहाँ से खदेड़ दिया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे पिता से प्यार करते थे और पिता के सामने विनीत थे।

येसु की करूणा प्रेरिताई की निशानी

येसु विधवा को देखकर दया से द्रवित हो गये। संत पापा ने कहा, “येसु अपने हृदय से सोचते हैं”, जो उनके सिर से अलग नहीं है। येसु करुणा में उसे स्पर्श करते और कहते है, “मत रोओ”। “यह एक प्रेरित होने की निशानी है।” एक प्रेरित के लिए येसु की  शक्ति और अधिकार जरूरी है, जिसमें हम नम्रता, कोमलता, सामीप्य को पाते जो उन्हें दयावान और प्रेम से ओत-प्रोत बनाता है।

शांति और प्रार्थना, अंतिम शब्द

संत पापा ने कहा कि भीड़ ने येसु के विरुद्ध चिल्लाते हुए कहा, “उसे क्रूस दिया जाये”। ऐसी स्थिति में येसु अपने में मौन थे क्योंकि उन्होंने लोगों को सत्ता के कारण दिग्भ्रमित पाया। अपनी मौत की मांग किये जाने पर भी वे शांत और मौन रह कर प्रार्थना कर रहे थे। यहां चरवाहा अपने लिए खमोशी का चुनाव करता है जबकि दोषारोपण करने वाला भीड़ के द्वारा उनपर दोषारोपण करता है। येसु “दुःख सहते, प्रार्थना करते हुए अपने जीवन का बलिदान चढ़ाते हैं। यह प्रार्थना की शक्ति थी जिसके कारण वे क्रूस पर लटके रहे, तथा क्रूस काठ पर भी पश्चतापी डाकू को अपनी ओर अकर्षित किया और उसके हृदय को चंगाई प्रदान की।

संत पापा ने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा कि हम पाठ को पुनः एक बार पढ़ें और देखें कि येसु का अधिकार किन चीजों में है। उन्होंने प्रार्थना करने का आह्वान किया कि सभी चरवाहों को पवित्र आत्मा की कृपा द्वारा सच्चा अधिकार प्राप्त हो।

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18 September 2018, 16:47
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