खोज

धर्मसभा आध्यात्मिक साधना का पाँचवाँ प्रवचनः अधिकार

धर्मसभा की आध्यात्मिक साधना में दोमेनिकन उपदेशक पुरोहित तिमोथी पीटर रैडक्लिफ ने “अधिकार” के अर्थ पर चिंतन करने हुए धर्मसभा के प्रतिभागियों को अपना प्रवचन दिया।

वाटिकन सिटी

हमारे बीच वार्ता तब तक फलहित नहीं होंगे जब तक हम अपने में इस बात को नहीं पहचानते कि हम अधिकार के साथ एक एक-दूसरे के संग वार्ता करते हों। हमें येसु ख्रीस्त में, पुरोहित, नबी और राजा के रुप में बपतिस्मा प्राप्त हुआ है। अंतराष्ट्रीय ईशशास्त्रीय सम्मेलन विश्वास के संबंध में संत योहन को उदृधृत करते हुए कहा है, “तुम लोगों को मसीह की ओर पवित्र आत्मा मिला है और तुस सभी लोग सत्य को जानते हो, तुम लोगों को मसीह से जो पवित्र आत्मा मिला, वह तुममें विद्यमान रहता है इसलिए तुम को किसी अन्य गुरू की आवश्यकता नहीं, वह तुम्हें सब कुछ सिखलाता है” (1.यो.2.20.27)।

धर्मसभा की तैयारी के क्रम में बहुत से लोगों ने अपने को अचंभित पाया क्योंकि धर्मसभा के दौरान वे दूसरों के द्वारा पहली बार सुने जायेंगे। उन्हें अपने अधिकार से संबंध में संदेह था और वे अपने में सवाल करते है,“क्या मैं कुछ दे सकता हूँ”ॽ लेकिन ये केवल लोकधर्मी नहीं जो अपने में अधिकार की कमी महसूस करते हैं। हम पूरी कलीसिया को अधिकार के इस संकट से प्रभावित होता पाते हैं। एक एशियन धर्माध्यक्ष ने इस बात की शिकायत की कि उसका कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा, “पुरोहित अपने में स्वतंत्र नवाब हैं, वे मेरी ओर कोई ध्यान नहीं देते हैं।” कई पुरोहित भी कहते हैं कि उन्होंने अपना सारा अधिकार खो दिया है। यौन शोषण ने हमें बदनाम कर दिया है।

हमारी पूरी दुनिया अधिकार के एक संकट से ग्रस्ति है। हमारे सारे संस्थानों ने अधिकारों को खो दिया है। राजनीतिज्ञों, कानूनों, प्रेस ने अपने अधिकारों को खो दिया है, वे अपने में खोखले लगते हैं। अधिकार दूसरों के हाथों में चला गया है, जहाँ हम तानाशाहों को विभिन्न स्थानों में या संचार माध्यमों या प्रसिद्ध और प्रभावकारी लोगों में पाते हैं। दुनिया आवाज की भूखी है जो अधिकार के साथ हमारे जीवन का अर्थ बतला सके। खतरनाक आवाज हमारे लिए खालीपन को भरने का भय उत्पन्न करते हैं। यह एक ऐसी दुनिया है जो अधिकार से नहीं बल्कि अनुबंधों से संचालित होती है - यहां तक कि परिवार, विश्वविद्यालय और कलीसिया भी।

अतः कलीसिया कैसे अधिकार प्राप्त कर सकती और हमारी दुनिया से बातें कैसे कर सकती है जो सच्ची आवाजों की भूखी हैॽ संत लूकस हमें बतलाते हैं कि जब येसु ने शिक्षा दी, तो वे उनकी शिक्षा से चकित हुए, क्योंकि वे अधिकार के साथ बोलते थे” (लूका 4.32)। वह दुष्ट आत्माओं को आदेश देते और वे उसका पालन करते हैं। यहाँ तक कि हवा और समुद्र भी उनकी आज्ञा मानते हैं। यहां तक कि उनके पास अपने मृत मित्र को भी जीवित करने का अधिकार है: लाजरूस, बाहर आओ”  (यो. 11. 43) मत्ती के सुसमाचार के अंत में हम सुनते हैं, “मुझे स्वर्ग और पृथ्वी पर सारा अधिकार दिया गया है।”

सिनोपटिक सुसमाचार के मध्य, कैसारिया फिलीपी प्रांत में, हम अधिकार के एक बहुत बड़े संकट को पाते हैं, जिसके सम्मुख हमारे समकालीन संकट कुछ भी नहीं के समान हैं। वे अपने निकटवर्ती मित्रों से कहते हैं कि उन्हें येरूसालेम जाना होगा, जहाँ वे दुःख उठायेंगे, मार डाले जायेंगे और मृतकों में से पुनः जी उठेंगे। वे इन शब्दों को स्वीकार नहीं करते हैं। अतः वे उन्हें पर्वत की ऊंचाई पर ले चलते और अपने रूपांतरित स्वरुप को दिखलाते हैं।

उनके अधिकार को हम ज्योति में महिमामंडित मूसा और एलिसा के बीच प्रकट होता पाते हैं। यह एक अधिकार है जो उनके कानों और उनकी आंखों, उनके दिल और उनके दिमाग को स्पर्श करता है। उनकी कल्पना को, आख़िरकर वे उनकी बातों को मान लेते हैं। 

पेत्रुस खुशी से फूला नहीं समाता है, यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है। तेइलहार्ड डी चार्डिन के प्रसिद्ध कथन,“आनंद ईश्वर की उपस्थिति का अचूक संकेत है।” सिस्टर मरिया इनिशिया ने आज सुबह इसी खुशी का जिक्र किया, मरियम की खुशी। खुशी के बिना, हममें से कोई भी अपने में अधिकार को नहीं पाता है। कोई भी एक दुखी ख्रीस्तीय पर विश्वास नहीं करता है। रूपांतरण में, यह आनंद तीन स्रोतों से प्रवाहित होता है: सौंदर्य, अच्छाई और सच्चाई। हम अन्य दूसरे स्वरूपों की भांति उल्लेख कर सकते हैं। इंस्ट्रुमेंटम लाबोरिस में गरीबों के अधिकार पर जोर दिया गया है। हम परंपरा और पदानुक्रम के अधिकार को पाते हैं। 

अधिकार अपने में विस्तृत और परास्परिक रुप में अपने को विस्तार करता है। इसमें हमे प्रतियोगिता की कोई जरुरत नहीं होती है, मानों लोकधर्मियों को अपने में अधिक अधिकार प्राप्त होता यदि धर्माध्यक्षों को पास अधिकार कम होते या रूढ़िवादी प्रगतिवादियों के साथ अधिकार के लिए प्रतिस्पर्धा करते हों। हम अपने को विरोधी स्वरुप में देखने वालों के ऊपर अग्नि की वर्षा करने के प्रलोभन में पड़ जाते हैं जैसे सुसमाचार में शिष्य अनुभव करते हैं(लूका.9.51-56)। लेकिन तृत्व में कोई प्रतियोगिता नहीं है। पिता, पुत्र और पवित्र  आत्मा के बीच में शक्ति की कोई प्रतियोगिता नहीं है, वैसे ही जैसे कि चारो सुसमाचार में कोई प्रतियोगिता नहीं है।

इस धर्मसभा में यदि हम प्रतिस्पर्धा की भावना से परे जाते तो हम अपनी खोई हुई दुनिया के बारे में अधिकार के साथ बातें करेंगे। तब दुनिया उस चरवाहे की आवाज को पहचानेगी जो उन्हें जीवन के लिए बुलाता है। आइए हम पहाड़ के दृश्य को देखें और सत्ता के विभिन्न रूपों के बीच अधिकार के क्रियाकलाप को देखें।

सुन्दरता

सबसे पहले हम सुन्दरता या महिमा को पाते हैं। ये दोनों ईब्रानी भाषा में एक-दूसरे के पूरक हैं। धर्माध्यक्ष रोबर्ट बार्रोन ने कहीं पर कहा- मुझे माफ करें, धर्माध्यक्ष बोब, यदि मैं गलत उद्धरित कर रहा हूँ- कि सुंदरता उन लोगों के पास पहुंचती है जो दूसरे तरह के अधिकारों का परित्याग करते हैं। एक नैतिक दृष्टि को नैतिकतावादी के रूप में माना जा सकता है: “तुम्हें मुझे यह बताने की हिम्मत कैसे हुई कि मुझे अपना जीवन कैसे जीना हैॽ” सिद्धांत के अधिकार को दमनकारी के रूप में खारिज किया जा सकता है। “तुम्हें मुझे यह बताने की हिम्मत कैसे हुई कि मुझे क्या सोचना हैॽ” लेकिन सुंदरता एक अधिकार है जो हमारी अंतरंग स्वतंत्रता को छूती है।

सुन्दरता हमारी कल्पना को खोलती है जो हमें परे ले जाती है, जहाँ हम अपनी मातृभूमि के लिए तरते हैं। येसु समाजी कवि जेरार्ड मैनली हॉपकिंस ईश्वर के बारे में कहते हैं, “सुंदरता के स्वरुप और सुंदरता के दाता”। अक्वीनस कहते हैं यह हमारे जीवन के अंतिम क्षण को व्यक्त करता है जैसे की तीरंदाज लक्ष्य पर निशान साधता हो।

इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि पेत्रुस कुछ कहने की स्थिति में नहीं होते हैं। सुन्दरता हमें शब्दों के परे ले जाती है। ऐसा माना गया है कि हर किशोर को अपने में दिव्य सुंदरता का कुछ अनुभव है। यदि उनके लिए कोई मार्गदर्शन नहीं जैसे कि शिष्यों के लिए मूसा और एलियस थे तो वह क्षण गुजर जाता है। जब मैं 16 साल का एक युवा, बेनेदिटाईन विद्यालय में था, मुझे महान एब्बे के गिरजे घर में एक ऐसी अनुभूति हुई, और उसे समझाने हेतु मेरे पास एक विवेकी मठवासी था। लेकिन सारी सुन्दरता ईश्वर के बारे में नहीं कहती हैं। नाजी नेताओं को क्लासिक संगीत से प्रेम था। रुपांतरण पर्व के दिन, एक दैवीय प्रकाश के रुप में हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया गया था। सुंदरता धोखा दे सकती है और बहका सकती है। येसु ने कहा, “धिक्कार तुम्हें शास्त्रियो और फरीसियो। क्योंकि तुम लीपी हुई कब्रों के समान हो जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं, परन्तु भीतर मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की अशुद्धता से भरी हुई हैं (मत्ती.23.27)।”

लेकिन पर्वत पर दिव्य सुन्दरता पवित्र शहर के बाहर चमकेगी जब क्रूस पर ईश्वर की माहिम प्रकट होगी। ईश्वर का सौदर्य उन चीजों में अत्यधिक चमकता है जो अपने में सबसे कुरूप लगते हैं। कोई भी व्यक्ति में ईश्वरीय सुन्दर को दुःख भरे स्थानों में देख सकता है।

एट्टी हिल्सम, एक रहस्यमय यहूदी, जो ख्रीस्तीयता की ओर आकर्षित हुआ इसे नाजी के सतावट भरे कैदखानों में भी पाया। “मैं वहाँ रहना चाहता हूँ जिसे लोग “डरावन” कहते हैं और फिर भी कह सकूँ, “जिंदगी खूबसूरत है।” कलीसिया का हर नवीनीकरण एक सौंदर्यवादी पुनरुद्धार के साथ हुआ है: रूढ़िवादी आइकनोग्राफी, ग्रेगोरियन संगीत, काउंटर-रिफॉर्मेशन बारोक (मेरा पसंदीदा नहीं।)। सुधार कुछ हद तक सौंदर्यवादी दृष्टिकोण से कुछ हद तक एक तरह का टकराव था। उत्कृष्टता की झलक पाने के लिए आज क्या हमें किस सौंदर्यात्मक नवीनीकरण की आवश्यकता है, विशेषकर उजाड़ और पीड़ा वाले स्थानों मेंॽ हम क्रूस की सुंदरता को कैसे देख सकते हैंॽ

दोमेनिकन जब 16वीं सदी में ग्वेटेमाला पहली दफा पहुंचे, सुंदरता ने उनके लिए स्थानीय मूलवासियों के साथ सुसमाचार साझा करने का रास्ता खोल दिया। उन्होंने स्पानी योद्धाओं के द्वारा सुरक्षा लेने से इनकार किया। भिक्षुओं ने स्थानीय मूलवासियों व्यापारियों को ख्रीस्तीय गीत सिखलाए, जिसे उस समय गाया जा सकता था जब वे अपना सामान बेचने के लिए पहाड़ों में यात्रा करते थे। इससे उन भाइयों के लिए रास्ता खुला जो तब उस क्षेत्र में सुरक्षित रूप से प्रवेश कर सकते थे जो वेरा पाज़, सच्ची शांति के नाम से जाना जाता है। लेकिन अंतत सैनिक आये और न केवल मूल निवासियों को मार डाला बल्कि हमारे भाइयों को भी जिन्होंने उनकी रक्षा करने की कोशिश की थी।

युवाओं के नये महाद्वीप में कौन-से गाने प्रवेश कर सकते हैंॽ हमारे संगीतकार और कवि कौन हैंॽ अतः सुंदरता कल्पना के अवर्णनीय यात्रा को खोल देती है। लेकिन हम भी पेत्रुस की तरह वहाँ रहने के लिए प्रलोभन में पड़ जाते हैं। हमारे लिए दूसरी कल्पनाशील बातों की आवश्यकता है जो हमें येरुसलेम के मार्ग में पहली धर्मसभा हेतु पहाड़ से नीचे लाता है। शिष्यगण उस दृश्य में दो व्याख्याओं को पाते हैं मूसा और एलियस, संहिता और नबियों, या अच्छाई और सच्चाई।

अच्छाई

मूसा ने इस्रराएलियों को गुलामी से स्वत्रंता की ओऱ ले चला। इस्रराएली वहीं नहीं जाना चाहते थे। वे मिस्र में सुरक्षा के भूखे थे। वे मरूभूमि की स्वतंत्रता से भयभीत थे जैसे कि शिष्य येरूसालेम की यात्रा के लिए भयभीत थे। दोस्तोवस्की द्वारा लिखित द ब्रदर्स करमाज़ोव में, ग्रैंड इनक्विसिटर यह दावा करता है कि “मानवता और समाज के लिए स्वतंत्रता से अधिक असहनीय कुछ भी नहीं है... अंत में, वे अपनी स्वतंत्रता को हमारी चरणों में रखेंगे और हमसे कहेंगे; "बेहतर होगा कि आप हमें गुलाम बना लें, लेकिन हमें खाना खिलाएं।”

संतों में साहस का अधिकार है। वे हमें राहों में ले चलते हैं। वे हमें अपने साथ पवित्रता के जोखिम भरे सहासिक कार्य के लिए निमंत्रण देते हैं। क्रूस की संत बेनेदिक्ता का जन्म एक चौकस यहूदी परिवार में हुआ था, लेकिन अपनी किशोरावस्था में वह नास्तिक बन गई। लेकिन जब संयोग से उसने अविला की संत तेरेसा के आत्मकथा को पढ़ा, तो वह उसे पूरी रात पढ़ती रही। उसने कहा, “जब मैंने किताब पूरी कर ली, तो मैंने खुद से कहा: यह सच्चाई है।” इसी कारण ऑशविट्ज़ में उसकी मृत्यु हो गई। यही पवित्रता का अधिकार है। यह हमें अपने जीवन पर नियंत्रण रखने और ईश्वर को, ईश्वर बने रहने देने का आहृवान करता है। 

बीसवीं सदी की सबसे लोकप्रिय किताब जे. आर. आर. टॉल्किन की द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स थी। यह एक पक्का काथलिक उपन्यास है। उन्होंने दावा किया कि यह परमप्रसाद का रोमांस था। शहीदगण कलीसिया के शुरुआती अधिकारी थे, क्योंकि उन्होंने साहसपूर्वक सब कुछ दे दिया। जी.के. चेस्टरटन कहते हैं, “साहस शब्दों में लगभग एक विरोधाभास है। इसका अर्थ है जीने की तीव्र इच्छा रखते हुए मरने की तैयारी करना”। क्या हम अपने विश्वास की खतरनाक चुनौती को पेश करने से डरते हैंॽ हर्बर्ट मैककेब ओपी कहते हैं, “यदि आप प्रेम करते हैं, तो आपको चोट लगेगा, शायद मार डाले जायेंगे। यदि आप प्रेम नहीं करते हैं, तो आप पहले से ही मर चुके हैं।” युवा हमारे विश्वास की ओर आकर्षित नहीं होते, यदि हम इसे पालतू बनाते हैं।

“सर्वश्रेष्ट प्रेम भय दूर करता है”(1यो.4.18)।. फ्रांसिसंकन धर्मसमाज के पूर्व परमअधिकारी, धर्मबंधु माइकल एंथोनी पेरी ओएफएम कहते हैं, “बपतिस्मा में, हमने डर का परित्याग करने की धोषणा की है। “मैं कहूंगा कि हमने डर के गुलाम होने का परित्याग किया है। साहसी डर को जानते हैं। हमारी डरावनी दुनिया में हमारा अधिकार तभी होगा यदि हम सारी चीजों को जोखिम में डालेंगे। जब यूरोपीय भाई-बहनों ने चार सौ साल पहले एशिया में सुसमाचार का प्रचार करने गये, उनमें से आधे लोग पहुँचने के पहले ही बीमारी, जहाज़ दुर्घटना, समुद्री डकैती से मर गए। क्या हम उनके जैसे पागलपन साहस दिखा पाएंगेॽ

हेनरी ब्यूरिन डी रोज़ियर्स (1930-2017) ब्राज़ीलियाई अमाजोन में स्थित एक फ्रांसीसी दोमेनिकन वकील थे। वे उन महान ज़मींदारों को अदालत में ले गये जो अक्सर गरीबों को गुलाम बनाते थे, उन्हें विशाल खेती-बारी क्षेत्रों में काम करने को मजबूर करते थे, और अगर वे भागने की कोशिश करते तो उन्हें मार दिया जाता था। हेनरी को कई बार जान से मार डाले जाने की धमकियाँ मिलीं। उसे पुलिस सुरक्षा की पेशकश की गई थी, लेकिन वह जानता था कि संभवतः वे ही उसे मार डालेंगे। जब मैं उसके साथ रुका, तो उसने मुझे ठहरने के लिए अपना कमरा दिया। अगले दिन उसने मुझसे कहा कि उसे नींद नहीं आयी, यह विचार करते हुए कहीं वे उसे पकड़ने आए और गलती से मुझे पकड़ लें।

अतः सुंदरता का अधिकार यात्रा के अंत की बात करता है, उस मातृभूमि की जिसे हमने कभी नहीं देखा है। पवित्रता का अधिकार उस यात्रा की बात करता है जिसे हमें करने की जरुरत है यदि हम वहाँ पहुंचने की चाह रखते हैं। यह उन लोगों का अधिकार है जो अपना जीवन ही कुर्बान कर देते हैं। आयरिश कवि पैड्रिग पियर्स ने कहा, “मैंने उन शानदार वर्षों को बर्बाद कर दिया है जिसे ईश्वर ने मुझे युवावस्था में दिए थे- असंभव चीजों का प्रयास करने में, उन्हें अकेले ही परिश्रम के लायक समझा। ईश्वर, यदि उन्हें मुझे पुनः देते तो मैं उन्हें फिर से बर्बाद कर दूंगा। मैं उन्हें अपने से दूर कर देता हूँ।”

सच्चाई

और तब हम एलिजा को पाते हैं। नबियों को हम सत्य के भविष्यवाक्ता स्वरुप पाते हैं। उन्होंने बाल के भविष्यवक्ताओं की कल्पनाओं को देखा और पहाड़ पर शांति की धीमी आवाज सुनी। वेरितास, सत्य,, दोमेनिकन धर्मसमाज का आदर्श वाक्य है। दोमेनिकनों से मिलने के पूर्व ही इसने मुझे उनकी ओर आकर्षित कर लिया था, जो शायद ईश्वरीय योजना थी।

हमारी दुनिया को सच्चाई के प्रेम से बाहर हो गई हैः फर्जी खबरें, इंटरनेट पर बेतुके दावे, अर्थहीन साजिशें। फिर भी मानवता में सत्य के लिए एक अविनाशी प्रवृत्ति दबी हुई है, और जब इसे घोषित किया जाता है, तो इसमें अधिकार के कुछ अंतिम अवशेष होते हैं। इंस्ट्रुमेंटम लाबोरिस उन चुनौतियों के बारे में बोलने से नहीं डरता है जिन्हें हमें बोलने की आवश्यकता है। यह ईश प्रजा की आशाओं और दुखों, क्रोध और खुशी के बारे में खुलकर बातें करता है। यदि हम अपने बारे में सच्चे नहीं हैं तो हम लोगों को उनकी ओर कैसे आकर्षित कर सकते हैं जो सत्य हैंॽ

मैं केवल दो तरीकों का उल्लेख करना चाहता हूँ जिसके अनुरूप हमें सत्य-कथन को घोषित करने की आवश्यकता है। सबसे पहले, संसार के सुखों और कष्टों के बारे में सच्चाई से बोलना। हिस्पानियोला में, बार्टोलोम डी लास कैसास, औसत दर्जे का जीवन जी रहे थे, जब उन्होंने 1511 के आगमन काल में एंटोनियो डी मोंटेसिनो ओपी द्वारा प्रचारित धर्मोपदेश पढ़ा, जिसमें उन्होंने स्वदेशी लोगों की दासता के साथ विजय प्राप्त करने वालों का सामना किया, “मुझे बताओ, किस प्रकार उचित या न्याय की व्याख्या करते हुए आप इन भारतीयों को इतनी क्रूर और भयानक गुलामी में रखते हैंॽ आपने किस अधिकार से उन लोगों के खिलाफ ऐसे घृणित युद्ध छेड़े हैं जो कभी अपनी ही भूमि पर इतने मौन और शांति से रह रहे थेॽ लास कैसस ने इसे पढ़ा, और जाना कि यह सच है, और उन्होंने पश्चाताप किया। इसलिए इस धर्मसभा में, हम उन लोगों को सुनेंगे जो “हमारे समय के लोगों की खुशियों और आशाओं, दुःख और पीड़ा” के बारे में सच्चाई से बातें करते हैं” (गौदियुम एत स्पेस1)।

सच्चाई हेतु, हमें अनुशासित शिक्षा की भी आवश्यकता है जो हमारे अपने उद्देश्यों के लिए ईश्वर के वचन और कलीसिया की शिक्षाओं का अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उपयोग का विरोध करती है। “भगवान सही होंगे क्योंकि वह मुझसे सहमत हैं।” उदाहरण के लिए, बाइबिल के विद्वान हमें मूल पाठों को उनकी अपरिचितता, उनकी अन्यता के साथ प्रस्तुत करते हैं। जब मैं अस्पताल में था, तो एक नर्स ने मुझसे कहा कि यदि उसे  लैटिन भाषा का ज्ञान होता तो वह मूल भाषा में बाइबल पढ़ लेती। मेंने कुछ नहीं कहा। सच्चे विद्वान हमारे व्यक्तिगत परियोजनाओं के लिए धर्मग्रंथों या परंपरा को सूचीबद्ध करने के किसी भी सरल प्रयास का विरोध करते हैं। ईश्वर का वचन ईश्वर का वचन है। उसे सुनो। हमारे पास सच्चाई नहीं है। सत्य हमारा स्वामी है।

प्रेम हमें दूसरे की सच्चाई से परिचित कराता है। हमें इस बात का पता चलता है कि कैसे वे एक अर्थ में अज्ञात बने रहते हैं। हम उन पर कब्ज़ा नहीं कर सकते और उन्हें अपने उद्देश्यों के लिए उपयोग नहीं कर सकते हैं। हम उन्हें उनकी अन्यता में, उनकी पूरी स्वतंत्रता में प्यार करते हैं।

अतः पर्वत पर रूपान्तरण, शिष्यों को विभिन्न प्रकार के अधिकारों से विभूषित होने का आहृवान करता है जिससे वे कैसेरिया फिलीपी प्रदेश के उस बड़े संकट से परे जा सकें। ये सभी चीजें और अन्य बातें आवश्यक हैं। सत्य के बिना सौंदर्य अधूरा हो सकता है। जैसा कि किसी ने कहा है, “सौंदर्य सत्य में है, जैसे स्वादिष्टता भोजन में है।” अच्छाई के बिना, सुंदरता धोखा दे सकती है। सत्य के बिना अच्छाई भावुकता में बदल जाती है। अच्छाई के बिना सत्य न्यायिक जांच की ओर ले जाता है। संत जॉन हेनरी न्यूमैन ने खूबसूरती के विभिन्न रूपों शासन, तर्क और अनुभव के बारे में बहुत ही सुदंर तरीके से जिक्र किया है।

हम सभी के पास अधिकार है, लेकिन अलग-अलग तरीके से। न्यूमैन लिखते हैं कि यदि सरकार का अधिकार निरंकुश हो जाता है, तो वह अत्याचारी होगा। यदि तर्क ही एकमात्र अधिकार बन जाता है, तो हम शुष्क तर्कवाद में पड़ जाते हैं। यदि धार्मिक अनुभव ही एकमात्र प्राधिकार होता, तो अंधविश्वास जीत जाएगा। धर्मसभा एक ऑर्केस्ट्रा की तरह होती है, जिसमें विभिन्न वाद्ययंत्रों का अपना संगीत होता है। यही कारण है कि येसु संघी आत्म-परख परंपरा इतनी उपयोगी है। बहुमत के आधार पर सत्य तक नहीं पहुंचा जा सकता है।

नेतृत्व का अधिकार निश्चित रूप से यह सुनिश्चित करती है कि कलीसिया की वार्ता फलदायी होगी, कोई भी एक आवाज हावी न हो और वह दूसरों को न दबाये। यह छुपे हुए सामंजस्य की परख करता है। ग्रेट ब्रिटेन के प्रमुख रब्बी जोनाथन सैक्स ने लिखा,“अशांत समय में, धार्मिक नेताओं के लिए टकराव का प्रलोभन एकदम प्रबल होता है। न केवल सत्य की घोषणा की जानी चाहिए बल्कि असत्य का परित्याग भी किया जानना चाहिए। विकल्पों को स्पष्ट विभाजनों के रूप में निर्धारित किया जाना चाहिए। निंदा न करना छोड़ देना है।” लेकिन, वह दावा करते हैं, “एक भविष्यवक्ता एक नहीं बल्कि दो जरूरी बातों को सुनता है: मार्गदर्शन और करुणा, प्रेम की सच्चाई और उन लोगों के संग एकजुटता जिनके लिए वह सच्चाई लुप्त हो गई है। परंपरा को संरक्षित करना और साथ ही उन लोगों की रक्षा करना जिनकी दूसरे निंदा करते हैं, एक अधार्मिक युग में धार्मिक नेतृत्व का कठिन, आवश्यक कार्य है।”

हमारे लिए सभी शक्ति तृत्वमय ईश्वर से आती हैं, जिसमें सारी चीजें साझा होती हैं। इतालवी धर्मशास्त्री लियोनार्डो पेरिस का दावा है, “पिता अपनी शक्ति साझा करते हैं। हर किसी के साथ। और वह सारी शक्ति को साझा स्वरूप का आकार देते हैं... संत पौलुस को उद्धृत करना अब संभव नहीं है – “अब कोई यहूदी या यूनानी नहीं है; अब कोई गुलाम या आज़ाद नहीं है; अब नर-नारी नहीं रहे; क्योंकि हम सब मसीह येसु में एक है" (गला.3.28)- और बिना यह पहचाने कि इसका मतलब ठोस ऐतिहासिक रूपों को खोजना है, ताकि हरएक को वह शक्ति प्राप्त हो जिसे पिता उसे सौंपना चाहता हैं।”

यदि कलीसिया वास्तव में पारस्परिक सशक्तिकरण का समुदाय बन जाती है, तो हम प्रभु के अधिकार से बात करेंगे। ऐसी कलीसिया बनना दर्दनाक और खूबसूरत होगा।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

13 October 2023, 12:13