एशियाई धर्माध्यक्षों से कार्डिनल बो ˸ कलीसिया एशिया की आध्यात्मिकता से सीखे
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
कार्डिनल चार्ल्स बो ने एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (एफएबीसी) की 15 दिनों की सभा का उद्घाटन ख्रीस्तयाग के साथ किया। जहाँ सम्मेलन की 50वीँ वर्षगाँठ की भी याद की गई। वर्मा के कार्डिनल ने उस योगदान पर चर्चा की जिसको एशिया की आध्यात्मिकता एवं विविधता, कलीसिया के जीवन को प्रदान कर सकती है।
पूर्वी आध्यात्मिकता
कार्डिनल बो के उपदेश की मुख्य विषयवस्तु थी, एशिया की आध्यात्मिक परम्परा की समृद्धि। उन्होंने कहा, "जब परम्परागत ख्रीस्तीय क्षेत्र संसारी होते जा रहे हैं, पूर्वी कलीसिया पश्चिम के लिए एक बड़ा आकर्षण बन गयी है।"
"पिछले पचास वर्षों में पूर्वी आध्यात्मिक परंपराओं में रुचि का विस्फोट देखा गया है।" एशियाई धर्मों की आंतरिकता, सरल रहस्यवाद जिसने लाखों लोगों को प्रार्थना करने हेतु प्रेरित किया है, ध्यान साधना एवं सचेतन की लोकप्रियता, अनुभव के लिए एक महान प्यास की ओर संकेत दिया हैं। पूर्व ने व्याख्या पर नहीं बल्कि अनुभव पर अधिक जोर दिया है।"
कार्डिनल बो ने याद किया कि पोप फ्राँसिस ने एक अधिक ऊर्जावान कलीसिया पर जोर दिया है उन्होंने कहा, "यह हमारी बड़ी चुनौती है, शब्दों से क्रिया की ओर बढ़ना, संरचनाओं से अनुभव और आंतरिकता की ओर बढ़ना, अवधारणाएँ और शब्द लोगों को प्रभावित नहीं करते।"
विविधता की कलीसिया
एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन एक विशाल ख्रीस्तीय समुदाय की देखभाल करने के लिए जिम्मेदार है जो मंगोलिया से इंडोनेशिया, उजबेकिस्तान से जापान तक फैला है। धर्मविधि में भी काफी पृथकता है इस क्षेत्र के काथलिक लातीनी, सिरो-मलाबार और सिरो मलांकरा रीतियों में विभक्त हैं।
कार्डिनल बो ने कहा, "कभी-कभी, यह समस्या बन सकती है ˸ एशिया की कलीसिया में एक बड़ी बाधा, पर क्या ख्रीस्त कई लोगों के बीच विभाजित हैं।"
ऐसा नहीं होना चाहिए, इसलिए उन्होंने सुझाव दिया कि काथलिक कलीसिया को विविधताओं के बावजूद एक सर्वव्यापी पहुँच की जरूरत है। हमारी भिन्नता एक शक्ति है, अलग-अलग रीतियाँ विश्वास के महान वरदान हैं। एकता का अर्थ समरूपता नहीं है।
कार्डिनल ने पोप फ्राँसिस के संदेश में भिन्नताओं का सम्मान करने की बात पर जोर देते हुए कहा कि संत पापा ने अपने संदेश में इसी बात की ओर सम्मेलन का ध्यान खींचा है कि हरेक की विलक्षणता का सम्मान किया जाए। क्योंकि विश्वव्यापी कलीसिया एक समरूपता की कलीसिया नहीं है।
पीछे मुड़कर देखना, आगे बढ़ना
कार्डिनल बो ने विगत 50 वर्षों में प्राप्त विभिन्न सफलताओं के लिए धन्यवाद दिया तथा कई देशों के निर्माण में कलीसिया के योगदान, सभी चुनौतियों के बीच इसके अस्तित्व और वैश्विक व्यवसायों के एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में इसके उद्भव को याद किया।
हालांकि उन्होंने जोर दिया कि एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की 50वीं वर्षगाँठ एक नवीनीकरण का अवसर हो, उन्होंने धर्माध्यक्षों से अपील की कि वे "इस सदी को एशिया की सदी, ख्रीस्त की सदी बनाने की चुनौतियों को स्वीकार करें।"
एफएबीसी के पूर्व अध्यक्ष और भारत के कार्डिनल ऑस्वल्ड ग्रेशियस ने भी अपनी आशा व्यक्त की कि सम्मेलन "हमारे प्रेरितिक उत्साह को नवीनीकृत और पुनर्जीवित करें ताकि यह कलीसिया एक ऐसी कलीसिया बन सके जिसके बारे प्रभु कहते हैं ... एक जीवंत कलीसिया जो एक बेहतर एशिया के लिए काम करेगी।"
Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here