उटोया अतिवादी आक्रमण की बरसी पर धर्माध्यक्ष फॉर्डन दुखी
जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी
नॉर्वे, शुक्रवार, 23 जुलाई 2021 (वाटिकन न्यूज़): नार्वे के काथलिक धर्माध्यक्ष एरिक फॉर्डन ने ऑस्लो के उटोया द्वीप पर दस वर्ष पूर्व हुए आतंकवादी आक्रमण की स्मृति पर "दुख और व्याकुलता" व्यक्त की है, जिसमें 77 लोग मारे गये थे तथा कई अन्य घायल हो गये थे।
दस वर्षों पूर्व नॉर्वे में, ऑस्लो के उटोया द्वीप पर हुए आतंकवादी हमले में 77 लोग मारे गये थे, जो द्वितीय युद्ध के बाद से देश में हुई सबसे घातक हिंसा थी। आठ व्यक्तियों की मौत तब हुई थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जेन्स स्टोलटेनबेर्ग के कार्यालय के बाहर एक कार बम विस्फोट किया गया था। इसके दो घण्टों बाद ही एक बंदूकधारी हथियारे ने सत्तारूढ़ नॉर्वेजियन लेबर पार्टी द्वारा आयोजित ग्रीष्मकालीन शिविर पर हमला कर 69 लोगों को मार डाला था तथा 100 से अधिक लोगों को घायल कर दिया था।
समझ से बाहर
हमले की दसवीं बरसी पर नार्वे में ट्रन्डहाईम के काथलिक धर्माध्यक्ष ने वाटिकन रेडियो से बातचीत में कहा कि देश अभी भी इस हादसे से उभर नहीं पाया है। उन्होंने कहा कि नॉर्वे जैसे शान्तिपूर्ण देश में यह हमला इतना अधिक क्रूर और बर्बर था कि इसे समझना बहुत मुश्किल काम है। उन्होंने कहा कि हम इस क्षण दुख और व्याकुलता में एक हैं तथा प्रार्थना करते हैं कि ऐसा हिंसक कृत्य फिर कभी न हो।
धर्माध्यक्ष फॉर्डन ने बताया कि उक्त हमले की याद में नॉर्वे के कई गिरजाघरों में प्रार्थना समारोहों का आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा, "हम दु:ख और व्याकुलता में और इस आक्रोश में भी एकजुट हैं कि ऐसा कुछ यहाँ क्योंकर हुआ।"
काथलिक कलीसिया की भूमिका
धर्माध्यक्ष फॉर्डन ने कहा कि नॉर्वे की छोटी सी काथलिक कलीसिया की भूमिका भी इसमें अत्यन्त महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से, वह बहु-सांस्कृतिक एवं बहुजातीय समाज में शान्ति को प्रोत्साहन देने में अहं भूमिका निभा रही है।
ग़ौरतलब है कि नॉर्वे की कुल आबादी के केवल पाँच प्रतिशत लोग ही काथलिक धर्मानुयायी हैं। लगभग 70 प्रतिशत जनता आप्रवासी हैं, जिनकी पैदाईश नार्वे की नहीं है। नार्वे में निवास करनेवाले काथलिक आप्रवासी जर्मनी, फ्राँस, पोलैण्ड, चिली, फिलिपिन्स, वियतनाम एवं श्री लंका के मूल निवासी हैं।
उदारता में एकजुट
धर्माध्यक्ष ने कहा, "मुझे लगता है कि बहुलता के आधार पर उदारता, पुनर्मिलन, समझदारी और भाईचारे की रचना में हमारा प्रयास सम्पूर्ण देश के लिये एक मॉडल सिद्ध हो सकता है, जिससे देश के समक्ष प्रस्तुत महान चुनौती का सामना किया जा सकता है।" उन्होंने कहा, "प्रत्येक राष्ट्र को रचनात्मक दृष्टिकोण से अपनी पहचान बनाने की ज़रूरत है, जिसमें नकारात्मक दृष्टिकोण, पूर्वधारणाओं तथा भेदभाव की कोई जगह नहीं होनी चाहिये।"
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