गैर-दलित के सालेम धर्माध्यक्ष बनने से तमिलनाडु में मायूसी
माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी
पांडिचेरी, बुधवार 2 जून 2021 (एशिया न्यूज) : सालेम (तमिलनाडु) के नए धर्माध्यक्ष के रूप में एक और गैर-दलित की नियुक्ति ने स्थानीय काथलिकों को निराश किया है क्योंकि धर्मप्रांत में बहुमत दलित समुदाय है।
सोमवार 31 मई को, संत पापा फ्राँसिस ने पांडिचेरी-कुड्डालोर के महाधर्मप्रांत के 60 वर्षीय फादर अरुलसेल्वम रायप्पन को सालेम, तमिलनाडु का नया धर्माध्यक्ष नियुक्त किया।
1986 में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ। उन्होंने उर्बान विश्वविद्यालय, रोम से कैनन लॉ में डॉक्टरेट किया और भारत लौटकर मोन्सिन्योर रायप्पन ने बैंगलोर में सेंट पीटर पोंटिफिकल इंस्टीट्यूट का नेतृत्व किया। 2010 और 2018 के बीच, उन्होंने भारत के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीबीसीआई) के कैनन लॉ और कानून आयोग के सचिव के रूप में कार्य किया।
उनकी नियुक्ति ने भारत के काथलिक समुदाय के भीतर एक कच्ची तंत्रिका को छुआ है, अर्थात् जाति व्यवस्था, एक ऐसा मुद्दा जो अभी भी भारतीय समाज को और ख्रीस्तियों को भी प्रभावित कर रहा है।
सालेम का धर्मप्रांत पांडिचेरी-कुड्डालोर की कलीसियाई प्रांत में है, जहां इस साल की शुरुआत में दलित ख्रीस्तीय मुक्ति आंदोलन के सदस्यों ने प्रेरितिक राजदूत को एक दलित महाधर्माध्यक्ष नियुक्त करने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए थे।
फादर जेड. देवसहाय राज, सीबीसीआई के अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व राष्ट्रीय सचिव ने एशिया न्यूज से बातें करते हुए कहा, "हालाँकि, दलित स्थानीय समुदाय के 75 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन 300 से अधिक वर्षों में इस समुदाय से कोई महाधर्माध्यक्ष कभी नहीं आया।
दलितों को अब भी कितने साल इंतजार करना पड़ेगा?"
वर्तमान में, “तमिलनाडु में 17 काथलिक धर्माध्यक्षों में दलित समुदाय से केवल एक धर्माध्यक्ष है। दलित, जो अभी तक तमिलनाडु में बहुसंख्यक हाशिए पर हैं, वाटिकन से छह खाली धर्मप्रांतों में दलित धर्माध्यक्षों को नियुक्त करने का अनुरोध कर रहे हैं। नए प्रेरितिक राजदूत के भारत आने के बाद पहली नियुक्ति दलितों को निराश कर दिया है।
वंचित जातियों के अधिकारों के लिए एक कार्यकर्ता जेसुइट फादर ए.एक्स.जे. बॉस्को के लिए, "यह एक स्पष्ट अन्याय है।
उन्होंने एशिया न्यूज को बताया, "पिछले एक साल में कई जगहों पर प्रदर्शन और रैलियां आयोजित की गई। पुरोहितों ने धरना दिया और क्षेत्रीय धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के प्रतिनिधियों को साथ बैठकें भी हुई। कार्डिनल, प्रेरितिक राजदूत और वेटिकन को पत्र भेजे गए हैं, जिसमें हमेशा दलित धर्माध्यक्षों को नियुक्त करने का अनुरोध किया गया है।
"2004 से, आठ धर्माध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं और इस बहुमत समूह से एक उम्मीदवार को कभी नहीं चुना गया है। धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की दलित सशक्तिकरण नीति है जो कहती है कि जाति [व्यवस्था] एक पाप है, फिर भी ऐसा लगता है कि कलीसिया के नेता इस प्रणाली को संजोते हैं और ऐसा नहीं लगता कि यह ईसाई धर्म के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जाता है।
“डॉ अम्बेडकर (एक प्रसिद्ध जाति-विरोधी कार्यकर्ता) ने कहा कि दलितों ने स्वतंत्र होने के लिए ख्रीस्तीय धर्म अपना लिया था, लेकिन उन्हें धोखा दिया गया। दलित धर्माध्यक्षों के लिए लड़ने वाले हजारों लोग कड़वी निराशा से गुजर रहे होंगे और अब कलीसिया के नेतृत्व पर अविश्वास कर रहे होंगे।"
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