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कोविड-19 से संक्रमित होने पर महाधर्माध्यक्ष बोकार्दो का अनुभव

इटली के मोनसिन्योर बोकार्दो ने कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद अपना अनुभव साझा किया है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

इटली, शनिवार, 12 दिसम्बर 2020 (वीएनएस) – "मैं तैयार नहीं था [...] मैंने अपने आपको एक दिन से दूसरे दिन और एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में एक गुलेल की तरह पाया, जिसमें अकेलापन था, लम्बी मौन थी, उलझन भरे विचार आये और प्रार्थना एवं ईश वचन के पाठ में लम्बे समय व्यतीत किये। थोड़ी पीड़ा भी झेलनी पड़ी।" उक्त बातें स्पोलेतो-नोर्चा के महाधर्माध्यक्ष एवं ओम्ब्रिया के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष महाधर्माध्यक्ष रेनतो बोकार्दो ने एक पत्र में लिखा है जिसको महाधर्मप्रांत के वेबसाईट में प्रकाशित किया गया है।

पत्र में उन्होंने कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद अस्पताल में गुजरे, समय का जिक्र किया है। अस्पताल में रहते हुए उन्होंने कई तरह के लोगों पर गौर किया, खासकर, बीमार और अस्पताल में भर्ती लोग, समर्पण और कुशलता के साथ रोगियों की देखभाल करनेवाले नर्स और डॉक्टर, अकेले मरण संकट से जूझते व्यक्तियों को, जिनके अनुभवों को उन्होंने गहराई से अनुभव किया। महाधर्माध्यक्ष ने कहा, "ऑक्सिजन मास्क के साथ लम्बे समय तक बेड पर पड़े रहकर, मैं चुपचाप अपनी जीवन यात्रा का पुनःअवलोकन कर सकता था। मौन और एकाकी में मेरे पास पर्याप्त समय थे जिसमें मैं अपने विचारों एवं रोजरी के दाने पर धर्मप्रांत की सभी सड़कों पर चल सकता था, सभी समुदायों का वास्तविक तीर्थयात्रा कर सकता था जो सचमुच एक वर्चुवल प्रेरितिक दौरा के समान था।"

स्पोलेतो-नोर्चा के महाधर्माध्यक्ष ने बतलाया है कि इस दौरान उन्होंने वहाँ के सभी परिवारों में दस्तक दी। उनके साथ, उन्होंने इस समय की दुर्बलता, आर्थिक घबराहट एवं नौकरी खोने के डर के बारे बातें की हैं। बुजूर्गों एवं एकाकी में रहने वाले लोगों से मुलाकात की हैं। युवाओं, अजनबी लोगों एवं अपने विश्वाससियों को विभिन्न परिस्थितियों में पाने पर चिंतन किया है।  

महाधर्माध्यक्ष ने कहा, "मैं एक लाल धागा को पहचानता हूँ जो मेरे जीवन के विभिन्न अध्यायों को एक साथ मिलाता और जोड़ता है। मैं बीते दिनों और कार्यों को देखता हूँ एवं विश्वास तथा कृपा के दृष्टिकोण से उन्हें पुनः जीता हूँ। आज मैं पहले के समान नहीं हूँ परन्तु अपनी लम्बी कहानी के अभाव में कुछ नहीं कर पाता जो सफलताओं एवं असफलताओं, उदारता एवं स्वार्थ, आँसू एवं सांत्वना की कहानी है।" उन्होंने बीमारी की इस स्थिति में पृथ्वी पर जीवन के अंत पर भी चिंतन किया तथा खुद को करुणावान ईश्वर को समर्पित किया। इस समय में प्रार्थना करने एवं ईश वचन का पाठ करने की अधिक आवश्यकता महसूस की, क्योंकि यही वह प्रकाश है जो हमें राह दिखाता है, हमारे अस्तित्व पर ध्यान देने एवं विश्व जिसमें हम रहते हैं ईश्वर की नजर से देखने हेतु प्रेरित करता है।   

उन्होंने कहा कि आंतरिक जीवन को प्राथमिकता देते हुए जीवन की पुनः शुरूआत करना आवश्यक है जबकि हम अपने जीवन को अन्य चीजों में व्यस्त कर देते हैं। इस अवास्तविक, अस्वस्थ दुनिया जिसमें हमने महामारी के पहले जिया, चिंतनशील आयाम ही इसका उत्तर है जिसने हमारी क्षणभंगुरता एवं भ्रम को स्पष्ट कर दिया है। महाधर्माध्यक्ष के अनुसार यह आवश्यक है कि चीजों के दबाव से अलग चिंतन के लिए समय निकालने की आवश्यकता है, ताकि विश्वास के प्रकाश में वास्तविकता पर मूल्यांकन किया जा सके जो दिनचार्य के भार से दबे रहने से बचायेगा। इस तरह हम, ख्रीस्तीय विश्वास के प्रकाश एवं प्रज्ञा में विश्व के लिए अपनी जिम्मेदारी को देख पायेंगे तथा दूसरों की खुशी, आशा, दुःख एवं चिंता में सहभागी हो पायेंगे।  

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12 December 2020, 13:13