एस्टोनियाई काथलिकों ने स्टालिनवाद और नाजीवाद पीड़ितों की याद की
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
वाटिकन रेडियो, गुरूवार, 27 अगस्त 2020 (रेई) नाजीवाद और स्टालिनवाद के शिकार हुए लोगों की याद कर एस्टोनियाई ख्रीस्तियों समुदाय का छोटा समुदाय भाव-विहाल हो उठता है। देश की राजधानी टैलीन ने रविवार को एक बड़े समारोह का आयोजन करते हुए अपने शहीदों की याद की। एस्टोनिया के प्रेरितिक प्रशासक धर्माध्यक्ष फिलिप जुआदन ने वाटिकन रेडियो से वार्ता करते हुए कहा कि शहीदों की याद नये स्मारक स्थल साम्यवाद के शिकार में एक समारोह का अयोजन करते हुए किया गया। वहाँ बाईस हजार शहीदों के नाम अंकित किये गये हैं जिन्हें सन् 1942 के निर्वासनों में मौत का शिकार होना पड़ा।
धर्माध्यक्ष जुआदन ने कहा, “एस्टोनिया जैसे छोटे देश के लिए यह एक बड़ी संख्या है। प्रायः हर परिवार से कम से कम एक व्यक्ति को शहाहत की शिकार होना पड़ा।” सोवियत संघ ने जून सन् 1940 को एस्टोनिया को अपने अधिकार में कर लिया जिसके फलस्वरूप बहुत से लोगों को निर्वासन का शिकार होना पड़ा क्योंकि उनमें बहुत से जर्मन जातीय के थे।
प्रवासियों का पलायन
धर्माध्यक्ष एडवर्ड प्रोफिटलिक उनमें से एक दुर्भाग्यपूर्ण व्यक्ति थे। उन्होंने सोवियत अधिकारियों से अपने देश लौटने का अदेश मिला था। उन्होंने अपने ख्रीस्तियों के रेवाड़ को छोड़ना अस्वीकार किया और जोखिमों के बावजूद तैलीन में रहना स्वीकार किया। उन्हें 27 जून सन् 1941 को गिरफ्तार किया गया और सोवियत के कैदखाने में रखा गया। उनकी मृत्यु भूखमारी के कारण किरोव के जेल में 22 फरवरी सन् 1942 को हो गई। धर्माध्यक्ष ने इस बात की जानकारी दी कि उनके पूर्वाधिकारी को धन्य घोषित करने की प्रक्रिया रोम में जारी है।
उन्होने कहा, इसके बहुत से कार्य पूरे हो चुके हैं क्योंकि हमें संत प्रकारण हेतु स्थापित धर्मपीठ की ओर से जून के महीने में स्वीकृति के अभिलेख प्राप्त हुए हैं। इसका अर्थ यह है कि विगत 17 सालों से ईश सेवक प्रोफिटलिक से संबंधित बहुत से जरुरी लेखों को जो अपने में पूर्ण हैं संग्रहित कर लिया गया है।
दुःखद इतिहास की याद
धर्माध्यक्ष ने इस बात की आशा व्यक्त की कि संत पापा प्रोफिटलिक को एक दिन धन्य घोषित करेंगे। “यह एस्टोनिया की काथलिक कलीसिया के लिए आवश्यक है क्योंकि वे हमारे पहले संत होंगे।” उनकी धन्य घोषणा एस्टोनिया के सभी संप्रदाय के लोगों के लिए बहुत मायने रखता है क्योंकि उन्होंने दुःख की घड़ी में लोगों का साथ दिया।
“इस भांति हम वैश्विक कलीसिया में इस घटना को एक पहचान प्रदान करते हैं कि उस सालों में हमारे साथ क्या हुआ। यह हमारे देश के सभी परिवारों के लिए आवश्यक है कि इतिहास के इस भाग को एक पहचान मिले।”
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