सबके लिए खुली बाहें, सच्ची गवाही के संकेत
माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, सोमवार 18 मई 2020 (वाटिकन न्यूज) : यह 27 अक्टूबर 1986 था जब इतिहास एक नाटकीय मोड़ पर खड़ा था। परमाणु युद्ध की संभावना वास्तविक थी। फिर भी, संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने साहसपूर्वक विश्व के धर्मों के प्रतिनिधियों को असीसी आने के लिए आमंत्रित किया। इसके लिए उन्हें कलीसिया के भीतर भी काफी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। असीसी की प्रार्थना सभा के दौरान उन्होंने कहा, “प्रार्थना करने के लिए धर्मों के कई प्रमुखों का एक साथ इकट्ठा होना आज की दुनिया के लिए एक निमंत्रण है कि शांति का एक आयाम और इसे बढ़ावा देने का एक और तरीका मौजूद हैं। यह प्रार्थना का परिणाम है, जो धर्मों की विविधता के बावजूद, एक सर्वोच्च शक्ति के साथ एक संबंध व्यक्त करता है जो हमारी मानवीय क्षमता से परे है।”।संत पापा जॉन पॉल ने कहा, "हम यहां हैं, क्योंकि हमें पूरे विश्वास के साथ गहन और विनम्र प्रार्थना करने की आवश्यकता है, तभी दुनिया सच्ची और स्थायी शांति का स्थान बनेगी।"
आज 18 मई को हम उस महान परमाध्यक्ष की सत वर्षीय जुबली मना रहे हैं जिनका नाजी शासनकाल के समय इस दुनिया में पदार्पण हुआ। जिन्होंने अपने परमाध्यक्षीय काल के दौरान कलीसिया को नई सहस्राब्दी में लाया था, जिन्होंने यूरोप को दो भागों में विभाजित करने वाले बर्लिन की दीवार को गिरते देखा, जिन्होंने शांति के नए युग को देखने की आशा की थी। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, जब वे बीमारी से जूझ रहे थे, तब भी उन्हें नए युद्धों और अस्थिरता और क्रूर आतंकवाद का सामना करना पड़ा, जहाँ ईश्वर के नाम का उपयोग मृत्यु और विनाश को बोने के लिए किया गया। संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने इसका प्रतिकार करने के लिए, जनवरी 2002 में असीसी में विश्व के धर्मों के प्रमुखों को फिर से संगठित किया। उन्होंने लोगों, संस्कृतियों, धर्मों का सम्मान करते हुए उनके बीच वार्ता पर हमेशा अपना ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने अपने ठोस विश्वास, रहस्यवादिता और मानवता के प्रति अपने महान प्रेम को प्रदर्शित किया। उन्होंने संघर्ष के विचलन से बचने के लिए हर संभव प्रयास किया। उन्होंने सभी से बातें करने की पहल की। इस तरह शांतिपूर्ण बदलाव का पक्ष लिया एवं शांति और न्याय को बढ़ावा दिया।
संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने दुनिया के सभी लोगों को सुसमाचार की घोषणा करने के लिए दुनिया भर में दूर-दूर की यात्रा की। उन्होंने प्रत्येक मानव जीवन की गरिमा की रक्षा के लिए संघर्ष किया। उन्होंने रोम के यहूदी प्रार्थनालयों की एक ऐतिहासिक यात्रा की। मस्जिद की दहलीज को पार करने वाले इतिहास में पहले परमाध्यक्ष थे। उन्होंने दूसरी वाटिकन महासभा द्वारा बताए गए तरीकों का संचालन करते हुए नए रास्ते खोले। वे नए और अनजाने रास्तों पर चलना जानते थे। उनका साक्ष्य हमेशा की तरह वर्तमान है।
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