निराश्रय एवं शोषित लोगों की आशा सिस्टर लुसी कुरियन
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, शनिवार, 18 नवम्बर 2019 (रेई)˸ "प्रेम ही मेरा धर्म है। व्यक्ति कौन-सा जात का है, धर्म का है अथवा वर्ग का है ये मैं कभी नहीं पूछती। मैं केवल उसे मनुष्य के रूप में देखती हूँ। अगर उसे मेरी सेवा की आवश्यकता है तो मैं उसे उठा लेती हूँ।" ये कहना है भारत में "माहेर" संस्था की संस्थापिका एवं निदेशिका सिस्टर लुसी कुरियन का। उन्होंने गरीबों के लिए विश्व दिवस के पूर्व वाटिकन में संत पापा फ्राँसिस से मुलाकात कीं।
"माहेर" संस्था की संस्थापिका एवं निदेशिका सिस्टर लुसी कुरियन ने 1991 में एक प्रताड़ित महिला की दर्दनाक मौत से प्रभावित होकर तमाम तिरस्कृत, पीड़ित और निराश्रय महिलाओं, बच्चों और पुरूषों के लिए एक संस्था की स्थापना की। आज वे महाराष्ट्र, केरल और झारखंड में हजारों लोगों के जीवन में आशा की नई ज्योति जला रही हैं।
केरल में जन्मी सिस्टर लुसी कुरियन एक हॉली क्रॉस धर्मबहन हैं जिनके कार्य को धर्मबहनों ने स्वीकार तो नहीं किया है किन्तु वे एक धर्मबहन के रूप में ही निराश्रय, पीड़ित, लाचार और मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों की सेवा कर रही हैं।
माहेर की शुरूआत
"माहेर" का अर्थ है माँ का घर। इसकी शुरूआत एक दर्दनाक घटना से हुई। सिस्टर लुसी जब पुणे स्थित एक गाँव के कॉन्वेंट में थी तब एक दिन एक महिला उनके पास रात बिताने के लिए जगह मांगने आयी। वह महिला परेशान थी क्योंकि उसका पति नशे था और दूसरी औरत से गलत संबंध होने के कारण उसे घर से निकल जाने को कहा था। वह औरत गर्भवती थी। उसने सिस्टर लुसी से कहा, "दीदी मुझे एक रात सोने के लिए जगह दे दीजिए।"
सिस्टर लुसी कॉन्वेंट के नियम अनुसार उस महिला को कॉन्वेंट में जगह नहीं दे सकी, अतः दूसरे दिन मदद करने का आश्वासन देकर उसे वापस भेज दिया। महिला गर्भवती थी इसलिए दूसरी धर्मबहनों को डर लगा। उसी रात बाहर खूब हल्ला सुनाई देने लगा आवाज सुनकर सिस्टर लुसी बाहर निकली। उसने किसी को आग की लपटों से घिरा देखा जब वह नजदीक गई तो हैरान रह गयी। जिस महिला को उसने दिन के समय कॉन्वेंट से घर वापस भेज दिया था वह वही महिला थी। उसके पति ने उसपर केरोसिन तेल डालकर आग लगा दिया था। सिस्टर ने किसी तरह आग बुझाकर बड़ी मुश्किल से उसे अस्पताल पहुँचाया। औरत करीब 90 प्रतिशत जल चुकी थी, अतः अस्पताल पहुँचते ही दम तोड़ दी। सिस्टर लुसी ने डॉक्टर को बतलाया कि वह महिला गर्भवती थी अतः उसका ऑप्रेशन किया गया किन्तु शिशु को भी मृत ही पाया गया। सिस्टर लुसी को बहुत दुःख हुआ। वह इसके लिए अपने आपको दोषी मानने लगी। इस घटना ने उसे झकझोर कर रख दिया।
ईश्वर की पुकार
इसके बाद जब भी वह सड़क पर या गली में किसी महिला या बच्चे को भीख मांगते देखती थी तो उसे बहुत दुःख होता था। वह उनकी मदद करना चाहती थी किन्तु समझ नहीं पाती थी कि क्या करे। उसने अन्य धर्मबहनों के पास अपना ये प्रस्ताव रखा किन्तु धर्मबहनों ने इसे एक मुश्किल भरा काम बताकर पैसों के अभाव के कारण अस्वीकार कर दिया। धर्मबहनों का सहयोग न मिलने पर भी, सिस्टर लुसी आत्म-निर्णय लेते हुए हर प्रकार की तकलीफ उठाने को तैयार हो गयी। पैसों का अभाव उसके लिए भी एक बड़ी समस्या थी। सिस्टर लुसी बतलाती हैं कि जब वह इस काम के लिए आगे बढ़ी तब उनके पास मात्र 20 रूपये थे।
ईश्वर की योजना को समझना आसान नहीं है। धर्मबहनों ने सिस्टर लुसी को साथ नहीं दिया पर, उसे कॉन्वेंट से नहीं निकाला, जहाँ रहकर वह कुछ काम करके पैसा जमा करने लगी। इसी क्रम में उसकी मुलाकात ऑस्ट्रिया के एक उदार उपकारक से हुई जिन्होंने उसे एक लाख रूपये दिये। इसी रूपये से सिस्टर लुसी ने जमीन खरीदा और किसी तरह एक घर का निर्माण किया।
चुनौतियाँ
शुरू के दिनों में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पैसों का आभाव एक बड़ी समस्या थी। भोजन के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए सब्जी बेचने वालों के द्वारा फेंकी गई सब्जियों और चिड़ियों को देने के लिए अलग किये गये चावल एवं दाल को लेकर खाना बनाया जाता था एवं किसी तरह पेट भरने की कोशिश की जाती थी। स्थिति बहुत खराब थी किसी तरह गुजारा चल रहा था पर बाद में लोग मदद करने लगे।
लाचार एवं निराश्रय लोगों को अपने घर में लाते देख कुछ लोगों को संदेह हो रहा था कि वह उन्हें ईसाई बनाने के लिए ले रही है अतः उन्हें गालियाँ सुननी पड़ीं, उनपर पत्थर फेंके गये, लोग उनपर थूकते भी थे। कई बार लोग उन्हें मारने भी आये किन्तु धीरे-धीरे उन्हें समझ में आ गया और वे शांत हो गये।
आज भी सिस्टर लूसी सड़क पर पड़े लाचार, निराश्रय, शोषित और वंचित लोगों को उठाकर अपने पास ले आती हैं। वे उनसे कभी नहीं पूछतीं कि वह किस जात, धर्म अथवा वर्ग का है। वे कहती हैं कि "मैं महसूस करती हूँ कि उन्हें मेरी सेवा की जरूरत है और उन्हें उठा कर घर ले आती हूँ। मैं उन्हें सिर्फ एक मनुष्य के रूप में देखती हूँ। घर में हर रोज सुबह शाम प्रार्थना की जाती है पर किसी भगवान का नाम नहीं लिया जाता है। हम सर्वधर्म सद्भाव के साथ काम करते हैं।" उन्होंने करीब 10 हजारों लोगों को माहेर केंद्र में रखकर मदद दी है और स्थिति में सुधार होने पर उन्हें घर वापस पहुँचा दिया है। जिनके लिए वापस जाने का रास्ता नहीं दिखाई पड़ता, उन्हें वहीं रखकर कुछ काम दे दिया जाता है ताकि वे अपने लिए कुछ पैसा अर्जित कर सकें। अभी केंद्र में कुल 940 बच्चे हैं जिन्हें अलग-अलग घरों में रखा गया है। ऐसी महिलाओं को भी माहेर में शरण दी जाती है जिनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। उन्हें अस्पताल लिया जाता है और ठीक होने पर वापस घर भेज दिया जाता। ठीक नहीं होने पर उसे अपने ही पास रख लिया जाता है। जो लोग अपंग हैं उनके लिए भी एक घर खोला गया है। बूढ़ी औरतें जिनको मंदिर या गिरजाघरों के पास छोड़ दिया जाता है उन्हें भी वे उठा कर ले आतीं और उनकी देखभाल करतीं हैं। अभी बूढ़ी महिलाओं के लिए कुल सात घर खोले गये हैं। मानसिक रुप से प्रभावितों के लिए पाँच घर हैं। बेघर पुरूषों के लिए भी तीन घर खुले हैं और बच्चों के लिए 37 घर हैं।
झारखंड में माहेर केंद्र
झारखंड में माहेर के चार केंद्र हैं। मानसिक रूप से अस्वस्थ महिलाओं, लड़कियों, लड़कों और पुरूषों के लिए केंद्र खोले गये हैं। लाचार महिलाओं एवं बच्चों के लिए भी घर खोले गये हैं। हजारीबाग में सेल्फ हेल्प ग्रुप का निर्माण कर, लाचार महिलाओं को ट्रेनिंग देने की कोशिश की जा रही है ताकि वे कुछ पैसे कमा सकें और माहेर से निकलकर परिवारों में जी सकें।
झारखंड की स्थिति बतलाते हुए सिस्टर लुसी कहती हैं कि वहाँ अत्यन्त गरीबी है अतः वहाँ बहुत अधिक काम करने की जरूरत है। उनका उद्देश्य है वहाँ लोगों को शिक्षित करना, ट्रेनिंग देना और प्यार देना।
सरकार का रूख
सिस्टर लुसी ने बतलाया कि इन सारे लाचार लोगों की सहायता में उन्हें सरकार से कोई मदद नहीं मिलती है। उन्होंने सरकार से मदद पाने की बहुत कोशिश की है पर उन्हें अभी तक इसमें कोई सफलता नहीं मिली है।
देशवासियों से उम्मीद
वे देशवासियों से यही कहना चाहती हैं कि संत पापा फ्राँसिस के कथन अनुसार वे अंदर बंद न रहें बल्कि बाहर निकलें और दूसरों की मदद करें। न धर्म के लिए, न जात के लिए बल्कि इंसान के लिए काम करें। उनकी आशा है कि भविष्य में अधिक से अधिक लोग आगे आकर, चंगाई एवं प्रेम के समुदाय का निर्माण करने में अपने आपको सचमुच समर्पित कर पायेंगे।
संत पापा फ्राँसिस से मुलाकात, अनुभव
सिस्टर लुसी कुरियन ने सोमवार को संत पापा फ्राँसिस से वाटिकन में मुलाकात की और उन्हें अपनी संस्था एवं कार्यों की जानकारी दी। उन्होंने वाटिकन रेडियो को बतलाया कि संत पापा से मुलाकात कर उन्हें बहुत खुशी हुई। वे उनसे उस समय अधिक प्रभावित हुई जब संत पापा ने खुद उनसे प्रार्थना और आशीर्वाद की मांग की। इस बात से उन्हें बहुत अधिक घबराहट हुई। वे बतलातीं हैं कि उनके पास शब्द ही नहीं हैं कि उस अनुभव को किस तरह व्यक्त करें। मुलाकात के बाद वे कृपा एवं प्रेरणा से भरकर वापस जा रही हैं।
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