संत मैक्सिमिलियन कोल्बे संत मैक्सिमिलियन कोल्बे 

प्रेम के लिए शहीद, संत मैक्सिमिलियन कोल्बे

आज कलीसिया संत मैक्सिमिलियन कोल्बे का पर्व मनाती है। वे फ्रायर माईनर ऑर्डर के पुरोहित थे। उनकी मृत्यु 14 अगस्त 1941 को ऑस्वीच मौत शिविर में, एक कैदी के बदले हुई थी। कैदी एक परिवार का पिता था।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

ऑस्वीच के मौत शिविर में वह एक परिवार के पिता को भूख से मरते हुए नहीं देख सका और उसके स्थान पर खुद मरना स्वीकार किया। इस तरह पोलैंड के इस पुरोहित का निधन उदारता का एक महान साक्ष्य है। उनका जन्म सन् 1894 में हुआ था। उन्होंने 1917 में मिलितिया इमाकुलेट एवंजेलाईजेशन आंदोलन की शुरूआत की थी। वे 1930 के दशक में जापान में एक साहसी मिशनरी रहे तथा संचार संसाधनों के माध्यम से दुनिया में ईशवचन को फैलाने का प्रयास किया। वे अमातूर रेडियो के संरक्षक भी बन गये।

फादर कोल्बे 1971 में धन्य घोषित हुए तथा 1982 में संत पापा जॉन पौल द्वितीय द्वारा संत घोषित किये गये।

मिलितिया इमाकुलेट पत्रिका के निदेशक फादर रफायले दी मूरो वाटिकन रेडियो को दिए एक साक्षात्कार में संत मैक्सिमिलियन कोल्बे के बारे बतलाया।   

उन्होंने कहा, "संत मैक्सिमिलियन ने ऑस्वीच में भूख और प्यास से मरने की सजा काट रहे एक कैदी, जो एक परिवार का पिता था उसके स्थान पर मृत्यु स्वीकार किया था। उन्होंने नौ अन्य कैदियों के साथ, इस कैदी को अपने परिवार को छोड़ते हुए निराश और अत्यन्त दुःखित देखा जिसने उन्हें उसके स्थान पर अपना जीवन अर्पित करने की प्रेरणा दी।" फादर रफायले ने कहा कि हम उन्हें केवल इसी घटना से याद नहीं करते किन्तु उनके सम्पूर्ण जीवन को याद करते हैं। उन्हें निष्कलंक के पुरोहित की संज्ञा भी  दी जाती है क्योंकि उन्होंने मिलितिया के निष्कलंक आंदोलन की स्थापना की थी।     

कुँवारी मरियम के साथ मैक्सिमिलियन कोल्बे का क्या संबंध है?

मैक्सिमिलियन कोल्बे कुँवारी मरियम को अपनी माता मानते थे। अपने लेख में वे उन्हें माँ पुकारते हैं। वे मरियम की उपस्थिति पर विश्वास करते थे।  

विश्वास को जीने में उनकी कौन-सी बात प्रभावित करती है?

संत पापा जॉन पौल द्वितीय का हवाला देते हुए फादर रफायले ने कहा कि संत मैक्सिमिलियन को तीन लोगों से बहुत अधिक प्रेम था पहला, येसु ख्रीस्त, दूसरा कुँवारी मरियम और तीसरा संत फ्राँसिस असीसी। इसी में उनकी आध्यात्मिकता का सार है।

संत पापा पौल ने उन्हें प्रेम के शहीद कहा था, क्या उनके जीवन से आज के युवाओं को प्रेरणा मिल सकती है?

फादर रफायले ने कहा कि सन् 1971 में संत पापा पौल छटवें ने उन्हें धन्य घोषित किया और उनके सदगुणों को प्रकाशित किया। उन्होंने उन्हें आनन्द के संत की संज्ञा दी। इसका अर्थ है अपने आपको खुशी से अर्पित करना। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया के लिए भी संत मैक्सिमिलियन का आदर्श अत्यन्त प्रेरणादायक है। युवा उनके अकथनीय प्रेम से प्रेरणा ले सकते हैं। घृणा, दुःख और हर प्रकार की दुष्टता के बीच भी प्रेम की जीत हो सकती है।  

 

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14 August 2019, 16:35