ओडिशा के कंधमाल कांड में जेल गए सात ख्रीस्तीयों में से एक रिहा
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
नई दिल्ली, बृहस्पतिवार, 23 मई 2019 (एशियान्यूज)˸ भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में हिंदू स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के आरोप में 2008 में कैद किए गए सात ख्रीस्तीयों में से एक, गोरनाथ चलनसेथ को मुक्त कर दिया है।
हिन्दू चरमपंथियों ने स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या का आरोप ख्रीस्तीयों पर लगाया था तथा कई गिरजाघरों समेत लोगों के घरों को जला दिया था। इसे ओडिशा तबाही के नाम से भी जाना जाता है। कटक भुनेश्वर के महाधर्माध्यक्ष जॉन बरवा ने एशियान्यूज से बातें करते हुए कहा, "ईश्वर की महिमा हो, मैं अत्यन्त खुशी हूँ। हम जानते थे कि कभी न कभी वह दिन जरूर आयेगा और हम जीत जायेंगे। यही हमारा विश्वास था।"
गोरनाथ का गाँव में स्वागत
गोरनाथ कल जेल से रिहा हुए और अब अपने प्रियजनों से पुनः मिल पाये हैं। जेल से रिहा होने पर गाँव में उनका स्वागत करने के लिए जमा लोगों के सामने उन्होंने अपनी खुशी का इजहार करते हुए कहा, "मेरी खुशी को बयाँ करने के लिए कोई शब्द ही नहीं है। एडीएफ इंडिया (एलायंस डिफेंडिंग फ्रीडम), संस्था जो सताए गए ख्रीस्तीयों के बचाव के लिए कार्यरत है, उसके वकीलों द्वारा प्रस्तुत अपील के बाद, 9 मई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत पर उनकी रिहाई का फैसला किया गया है।
गोरनाथ ने जेल में कैद अन्य छः लोगों की याद की जो 2008 से ही जेल में हैं और 2013 में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी है। उनके नाम हैं भास्कर सुनामाझी, विजय सनसेथ, बुद्धादेव नायक, दुरजो सुनामाझी, सानातान बाड़ामझी और मुण्डा बाड़ामाझी। उन्होंने कहा, "मैं अपनी आजादी को पुनः प्राप्त कर खुश हूँ किन्तु कुछ निर्दोष लोग अब भी जेल में हैं।"
ओडिशा की कलीसिया ने उन लोगों के निर्दोष होने का दावा हमेशा किया है तथा उनके झूठे आरोपों का विरोध किया है। नई दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता एवं एडीएफ के विकास निदेशक ए सी मिखाएल के अनुसार गोरनाथ को मुक्त किया जाना एक अच्छी बात है किन्तु अभी भी बहुत दूर चलना है। छः व्यक्ति अब भी सलाखों के पीछे हैं। हमें उन्हें भी मुक्त कराना है और अन्याय द्वारा जेल की सजा से रिहाई दिलाना है। हम उन सभी का शुक्रिया अदा करते हैं जिन्होंने हमें अपना समर्थन दिया है।
ओडिशा कांड
ओडिशा में अगस्त 2008 में हिंदू चरमपंथियों ने भारत के ख्रीस्तीयों के खिलाफ बहुत क्रूर उत्पीड़न किया था। तबाही के अंत में परिणाम गंभीर थे: इसमें 120 मौतें हुई थीं; लगभग 56 हजार विश्वासी भाग जाने को मजबूर थे; 415 गांवों में 8 हजार घर जलाए गए या लूटे गए थे; 300 चर्च ध्वस्त किये गये थे; 40 महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ था (जिनमें सिस्टर मीना बरवा, महाधर्माध्यक्ष की भतीजी भी शामिल है); 12,000 बच्चे विस्थापित होने के कारण उनकी पढ़ाई में बाधा हुई थी।
महाधर्माध्यक्ष बरवा बताते हैं कि "भयानक हिंसा ने ईसाई समुदाय के विश्वास को विचलित नहीं किया है। कंधमाल में विश्वासी खुश हैं: उन्हें काथलिक और ख्रीस्तीय होने पर गर्व है। हमारा मानना है कि कठिनाइयों का सामना करने के लिए केवल एक चीज जो हम कर सकते हैं, वह है ईश्वर पर भरोसा, खुद को उसके हवाले करना। हम इस सच्चाई पर भरोसा करते हैं कि ईश्वर हमारे साथ हैं, वे हमें त्यागते नहीं और कठिनाइयों को दूर करने में हमारी मदद करते हैं।"
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