सेवानिवृत्त सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें सेवानिवृत्त सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें  

दुराचार को पराजित करने के लिये ईश्वर के प्रति लौटना ज़रूरी

सेवानिवृत्त पूर्व सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कलीसिया पर आच्छादित यौन दुराचार के संकट पर अपने चिन्तनों को प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने कहा है ईश्वर में प्रगतिशील रूप से धुँधले पड़ते विश्वास के कारण दुराचारों को प्रश्रय मिला है।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019 (रेई, वाटिकन रेडियो): सेवानिवृत्त पूर्व सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कहा है कि यौन दुराचार संकट पर विजय पाने के लिये यह ज़रूरी है कि ईश्वर के प्रति पुनः अभिमुख हुआ जाये।

सेवानिवृत्त पूर्व सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कलीसिया पर आच्छादित यौन दुराचार के संकट पर अपने चिन्तनों को प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने कहा है ईश्वर में प्रगतिशील रूप से धुँधले पड़ते विश्वास के कारण दुराचारों को प्रश्रय मिला है।    

जर्मनी के साप्ताहिक क्लेरुसब्लाट में पुरोहितों द्वारा बच्चों के विरुद्ध यौन दुराचार के अभिशाप पर चिन्तन करते हुए सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें लिखते हैं,  "बुराई की शक्ति ईश्वर से प्रेम करने के इंकार से उत्पन्न होती है ... इसलिये ईश्वर से प्रेम करना सीखना मानव मुक्ति का मार्ग है।"

फरवरी माह में सन्त पापा फ्राँसिस द्वारा नाबालिगों की सुरक्षा पर "कड़ा संदेश" देने तथा "कलीसिया को फिर से लोगों के बीच बुराई को अभिभूत करनेवाली शक्ति और प्रकाश रूप में  विश्वसनीय बनाने के लिए बुलाई गई बैठक के संकेत पर बेनेडिक्ट सोलहवें ने अपने चिन्तन लिखे हैं।

सन्त पापा फ्राँसिस के प्रति आभार

बेनेडिक्ट 16 वें पर हालांकि, अब ज़िम्मेदारी नहीं है तथापि कलीसिया के मिशन में योगदान देने की वे इच्छा रखते हैं। वे लिखते हैं, "भले ही, सेवा निवृत्त रूप में, मैं अब सीधे जिम्मेदार नहीं हूं, मैं कलीसिया में अपना योगदान देने की इच्छा रखता हूँ और सन्त पापा फ्राँसिस के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ जो बार-बार हमें यह दर्शाने का प्रयास करते हैं कि ईश्वर का प्रकाश आज भी ग़ायब नहीं हुआ है।"

चिन्तन के पहले भाग में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वे बताते हैं कि साठ के दशक के सामाजिक सन्दर्भ में यौन क्रान्ति के नाम पर बहुत कुछ को उपयुक्त एवं सही मान लिया गया था जिससे इस पीढ़ी के पुरोहित भी प्रभावित हुए और इस भ्रम के शिकार हुए कि उनके यौनाचार में कोई बुराई नहीं थी। यहाँ तक कि कलीसिया की भी कटु आलोचना की जाती रही तथा कहा गया कि कलीसिया समाज से अलग अपने नैतिक मानदण्डों का निर्माण नहीं कर सकती।

पौरोहित्य प्रशिक्षण पर दुष्प्रभाव

चिन्तन के दूसरे भाग में बेनेडिक्ट 16 वें ने कहा कि इन्हीं भ्रामक विचारों के चलते यौन दुराचार को प्रश्रय मिला और इसके दुखद परिणाम कलीसिया को भी भोगने पड़े। वे लिखते हैं, "विभिन्न गुरुकुलों में समलैंगिक गुट स्थापित किए गए, जो कम या अधिक खुले तौर पर कुकर्म में लगे रहे।"

उन्होंने कहा कि द्वितीय वाटिकन महासभा के बाद कलीसिया में स्थापित उदारवादी नियमों का ग़लत अर्थ लगा लिया गया और कुकर्मों को प्रोत्साहन मिला और इसी को हम विश्वास का अभाव कह सकते हैं। उन्होंने कहा कि आधुनिकता लाने के नाम पर कुछेक धर्माध्यक्षों एवं पुरोहितों द्वारा  "एक नई, आधुनिक 'कैथोलिकता' लाने का भ्रम उत्पन्न किया गया।"

उचित प्रतिक्रिया पर परिप्रेक्ष्य

चिन्तन के तीसरे भाग में सन्त पापा बेनेडिक्ट कलीसिया द्वारा उचित प्रत्युत्तर हेतु कुछ परिप्रेक्ष्यों का प्रस्ताव करते हैं। लिखते हैं, "बुराई सम्पूर्ण विश्व पर बना महान ख़तरा है और केवल ईश्वर के प्रति प्रेम ही बुराई के खिलाफ प्रतिकारक शक्ति है। ईश्वर रहित विश्व केवल एक अर्थहीन विश्व हो सकता है, जिसमें भलाई और बुराई के मानदण्ड का कोई अस्तित्व नहीं होता और न ही सत्य का कोई अस्तित्व होता है।"    

सन्त पापा बेनेडिक्ट लिखते हैं कि संकट का सर्वश्रेष्ठ उत्तर ईश्वर के प्रति अभिमुख होना है, ईश्वर को जीवन का आधार स्वीकार करना है।

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12 April 2019, 11:54