भारत के दलित अपने अधिकारों की मांग करते हुए भारत के दलित अपने अधिकारों की मांग करते हुए 

दलित ख्रीस्तियों के लिए राजनीतिक दलों से धर्माध्यक्षों की अपील

चुनाव मई महीना में होने वाला है। भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के दलित और वंचित जातियों की मदद करनेवाले विभाग ने सभी राजनीतिक दलों से 1935 में स्थापित आरक्षण कोटा प्रणाली में ईसाई और मुस्लिम दलितों को जोड़ने का आह्वान किया है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

नई दिल्ली, शनिवार, 2 मार्च 2019 (एशियान्यूज)˸ काथलिक कलीसिया के धर्मगुरूओं ने राजनीतिक दलों से अपील की है कि ईसाई और मुस्लिम दलितों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा देने वाले अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करें।

बुधवार को दिल्ली में हुई भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के दलित एवं वंचित लोगों की मदद करने वाले विभाग की एक सभा में, सीबीसीआई के महासचिव धर्माध्यक्ष थेओदोर मसकरेनहास ने कहा, "यह दूसरों की तरह राजनीतिक एवं वैधानिक रूप से अधिकार पाने का एक उपयुक्त समय है। हम इसे जाने नहीं दे सकते और इस प्रयास में हिन्दू दलित भी शामिल हैं।"   

सीबीसीआई के दलित एवं वंचित विभाग के अध्यक्ष मोनसिन्योर सरत चंद्र नायक ने गौर किया कि ख्रीस्तीय एवं मुस्लिम दलितों को मौलिक अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है और यह अधिकार है नौकरी एवं शिक्षा का अधिकार।

कानूनी दृष्टिकोण से, भारत के ईसाई और मुस्लिम दलित अन्य धार्मिक समुदायों के दलितों को दिए गए लाभ से वंचित हैं। जाति की सदस्यता के आधार पर भेदभावपूर्ण प्रथाओं को ठीक करने के प्रयास में 1935 में ब्रिटिश शासन के तहत कोटा प्रणाली की स्थापना की गई थी।

बाद में, 1950 में लागू हुए भारतीय संविधान ने दलित सशक्तीकरण के उन्हीं रूपों को अपनाया। हालांकि, राष्ट्रपति के एक आदेश ने उसी वर्ष ईसाई और साथ ही मुस्लिम दलितों (जिन्हें अछूत भी कहा जाता है) को आरक्षित कोटे से बाहर कर दिया था।

भारत की कलीसिया ने भेदभाव के इस "शर्मनाक" रूप का हमेशा विरोध किया है और समाज में सबसे गरीब वर्गों को सार्वजनिक रोजगार एवं शिक्षा में आरक्षित स्थिति के विस्तार के लिए बार-बार संघर्ष किया है जो लोगों को ईसाई धर्म अपनाने हेतु प्रेरित करता है।

हाल में, उच्च जातियों के गरीबों के लिए आरक्षित कोटा की मंजूरी के कारण लोगों में नाराजगी है और ईसाई दलितों को शामिल करने का आह्वान करते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में कम से कम 15 याचिकाएँ दायर की गई हैं।

धर्माध्यक्ष नायक ने कहा, "हम देश के नागरिक होने का सामान्य न्याय चाहते हैं। एक प्रजातंत्र देश में धर्म के नाम पर लोगों से भेदभाव किया जा रहा है। संविधान के अधिकारों का हनन किया जा रहा है। दो अल्पसंख्यक समुदाय (ख्रीस्तीय और मुस्लिम) सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास के शिकार बन रहे हैं।"

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02 March 2019, 14:30