संत दोमनिक मसीह के विश्वासी सेवक और हमारे लिए आदर्श
माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बुधवार 8 अगस्त 2018 (रेई) : रोम स्थित अवेलिनो के संत सबिना महागिरजा के रेक्टर फादर फिलिप वाग्नर ने आज संत दोमनिक के नाम दिवस पर दोमेनिकन धर्मसमाज की भूमिका पर प्रकाश डाला। एक ख्रीस्तीय का पूरी तरह से ख्रीस्त का अनुसरण करना, दिन-रात होठों में येसु का नाम जपना, प्रार्थना में तल्लीन रहना एक असंभव आदर्श लग सकता है। फिर भी कलीसिया के इतिहास में हम पाते हैं कि असीसी के संत फ्राँसिस ने इस आदर्श को गंभीरता और बहुत निकट से जीया था। संत दोमनिक गुजमान भी फ्राँसिस के समान गरीबी को स्वीकार करते हुए येसु का अनुसरण करने की कोशिश की।
वचन उपदेशक
दोमनिक का जन्म 1170 में स्पेन के कालेरुगा गाँव में एक धर्मनिष्ट ख्रीस्तीय परिवार में हुआ था। अपने पुरोहित चाचा जी से प्रेरणा पाकर उन्होंने धर्मसमाजी जीवन जीने का निर्णय लिया। 24 वर्ष की उम्र में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ। जल्द ही ओस्मा के महागिरजाघर के धर्मशास्त्री बन गये। वे धर्माध्यक्ष, डिएगो डी एसेबो के बहुत करीब थे और उन्होंने डेनमार्क के राजनायिक मिशन पर धर्माध्यक्ष का साथ दिया था। रोम के रास्ते से अपने मिशन से लौटते हुए उन्होंने उत्तरी गैर-ख्रीस्तीय राज्यों में सुसमाचार प्रचार करने की अनुमति मांगी।
लेकिन घर के नजदीक, कैथारिज्म नामक एक खतरनाक हेरेसी टूलूज़ शहर के आस-पास के क्षेत्रों में लोगों के बीच फैलने लगी। उस समय के संत पापा इन्नोसेंट तीसरे ने उनके उत्साह को पहचानते हुए उन्हें अपनी भूमि के हेरेसियों के बीच विश्वास का प्रचार करने भेजा।
मिलनसारिता
फ्रांस लौटने के कुछ ही समय बाद, धर्माध्यक्ष डिएगो की मृत्यु हो गई, और दोमनिक को बढ़ते विद्रोह का सामना करने के लिए अकेला छोड़ दिया गया। उन्होंने ईमानदारी से सुसमाचार प्रचार का काम शुरू किया, अल्बिजेंसियों (हेरेसी) के साथ बैठकें कीं। उनके साथ निजी तौर पर और सार्वजनिक रूप से बहस की और उन्हें प्रोत्साहित किया। यह काम कठिन था, लेकिन दोमनिक का उत्साह कभी कम नहीं हुआ।
दोमनिक अपनी मिलनसारिता के माध्यम से अल्बिजेंसियों के साथ बातों में जीतने के लिए सक्षम था क्योंकि उसकी जिंदगी उसके सुसमाचार प्रचार में परिलक्षित होती थी। दृढ़ संकल्प और मिलनसारिता के कारण उन्हें अपने विरोधियों से भी सम्मान मिलता था।
एक मां के समान कोमल और हीरे के समान कठोर
1215 रोम में आयोजित चौथी लातेरन महासभा में फादर दोमनिक ने टूलूज़ के धर्माध्यक्ष फुलक के साथ भाग लिया। महासभा के दौरान, उन्होंने संत पापा होनोरियस से एक परियोजना को लेकर संपर्क किया, जिसे उन्होंने कई साल पहले कल्पना की थी। 22 दिसंबर 1217 को, संत पापा होनोरियस ने एक नए धर्मसंघ, प्रवचन दाताओं के धर्मसमाज या दोमिनिकन समाज को मंजूरी दे दी।
संत पापा की मंजूरी का प्रभाव विस्फोट की तरह था क्योंकि महाद्वीप प्रचारकों ने पूरे यूरोप में उत्साह और जोश से सुसमाचार की घोषणा की। नव स्थापित दोमिनिकन समाज तेजी से फैलता गया, क्योंकि प्रचारकों ने यूरोप भर में उत्साह के साथ सुसमाचार की घोषणा की।
अब फादर दोमनिक अपने जीवन के अंतिम दौर में थे। 6 अगस्त 1221 को, अपने धर्मसमाज के अनुमोदन के कुछ ही साल बाद, बोलोग्ना में दोमिनिकन कॉन्वेंट में आखिरी साँस ली। तेरह साल बाद, उन्हें संत पापा ग्रेगरी 9वें द्वारा संत घोषित किया गया। वे संस्थापक और प्रचारक को व्यक्तिगत रूप से जानते थे। सालों बाद, संत दोमनिक को उनके आध्यात्मिक बच्चों द्वारा "मां के समान कोमल और एक हीरे के समान कठोर" की संज्ञा दी गई।
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